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Vimla Jain

Action Inspirational

4.5  

Vimla Jain

Action Inspirational

मेरा स्वयं से साक्षात्कार

मेरा स्वयं से साक्षात्कार

3 mins
55


आज जब मैं सो रही थी।

अपने सपनों में खो रही थी। कुछ कुछ अपना विचार कर रही थी।

मुझे लोगों  के शोर अवचेतन मन में बहुत सुनाई दे रहे थे।

मन में बहुत बातें चल रही थी।

अवचेतन मन के वातावरण में कुछ गुंज चल रही थी।

 मैंने आज यह तपस्या करी मैंने आज यह अठाई करी व्रत साधना करी।

 मैंने आज 15 सामयिक करी,

मैंने इतने मंदिरों के दर्शन करें।

मेरा मन मुझे कुछ कह रहा था।

कि तू ऐसा क्यों विचारती है

 कि तू तपस्या नहीं किया करती।

आत्म साक्षात्कार करते हुए मन ने मुझे यह बताया।

 धर्म दिखावे की वस्तु नहीं जितना चाहिए उतना करो।

 जो चाहिए वह करो,

 दूसरों को क्या है दिखाना।

अपनी आत्मा के कल्याण के लिए क्यों दूसरों के सामने डफली है बजाना।

क्यों दूसरों को यह एहसास दिलाना।

 कि तुम नहीं करते हो तो हम तुमसे काम बेहतर है।

और तुम हमसे कमतर हो।

अरे भाई तुम जो धर्म करते हो वह तुम्हारी आत्मा के लिए करते हो ।

समाज के लिए नहीं ।

समाज के लिए तो अपने काम करते समय तुम वही काम करते हो

जो कभी-कभी अनैतिकता में आता है।

 बेईमानी में आता है।

क्या माला फेरने से जो तुमने गलत काम करा है वह कम हो जाएगा।

 क्या कालाबाजारी करी है वह सही कहलाएगा ।

ऊपर से धर्म कर लेने से क्या होता है।

इसी पर मुझे महाप्रज्ञ जी की एक कहानी याद आ गई है।

उस कहानी ने मुझे बहुत कुछ समझा दिया है।

 दो लाइनों की यह कहानी अपनी बहुत कुछ कथा का गई है।

और मुझे जिंदगी का मर्म समझा गई है।

"संवाद था यह बाप बेटे का‌।

बाप बेटे से क्या तूने दाल में कंकर मिला दिए।

बेटा हां बापूजी

बाप बेटा तूने गेहूं में मिलावट कर दी। 

घास फूस कचरा सब मिला दिया।

बेटा हां पिताजी।

आप निश्चिंत रहो मैंने सब में जहां मिलावट करनी थी सब कर दी।

बाप निश्चिन्तता से तो चल बेटा मेरा सामयिक और माला का सामान लेता आ।

चल मंदिर चलते हैं थोड़ा धर्म भी कर लेंगे ।

थोड़ी माला फेर लेंगे।

 तो अपने कर्म कट जाएंगे धर्म भी तो जरूरी है।

 और मिलावट भी जरूरी है।" इसको हम क्या कहेंगे।

धर्म सुदखोरी, मिलावट करने वालों को धर्मात्मा कहेंगे।

भले ही वो पैसों के बल पर धर्म में आगेवान बनते हैं और बहुत पूजाते हैं।

मगर मैं तो उनको ढोंगी बाबा ढकोसले ही कहूंगी और अधर्मी ही कहूंगी।

मेरा मन तो मेरे आत्म साक्षात्कार में यह कहता है।

 तुम तुम्हारी नियत अच्छी रखो नेकनीयत और भल मनसाहत लोगों की मदद में

कुछ अच्छा करने की भावनाओं को रखो।

यह भी तो एक धर्म ही है।

 तू यह क्यों सोचती है कि तू तपस्या नहीं करती

 तो तू धर्म नहीं करती।

 आत्म साक्षात्कार में मुझे यह समझ में आया मैंने अपने आप को समझाया।

अपनी जवाबदारियों से 

ना भागकर कर्मकांड ना करते हुए भी मैंने मेरी जिंदगी में कोई अधर्म का काम नहीं है करा।

अपने घर परिवार बच्चों को मैंने संभाल कर अच्छा इंसान है बनाया।

कुरीतियों को हटा समाज सुधार के कुछ काम कर अपनी जिंदगी को है महकाया।

तो कौन कहता है कि तू धर्म नहीं करती।

 भले तूने कर्मकांड नहीं करें मगर अनीति अधर्म तो नहीं करा।

किसी को दुखी और परेशान तो नहीं किया।

इसीलिए विमला तू इस गलतफहमी में मत जी की तूने कुछ नहीं करा 

तेरी जिंदगी का है यह सार तूने अच्छी तरह से निभाया और जिया

सोचते सोचते मेरी आंख है खुल गई, और सुबह का सपना

आत्म साक्षात्कार के साथ में मन में हल्का पन भी दे गया।

और अपने आप को प्यार करने का सबक भी दे गया।



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