सेल्युलर जेल
सेल्युलर जेल
साक्षीधर हूँ अन्याओं का
दे न सका अपनों को छाया
पीपल का हूँ वृक्ष अभागा
सूखे नयनन कृश है काया।
जेल बनाने अंग्रेजों ने
सब वृक्षों को तोड़ा
पता लगा था अशुभ दिनों का
जब मुझको था छोड़ा।
यक्ष प्रश्न है मेरे भाग्य में
प्रवेशद्वार क्यों आया
पीपल का हूँ वृक्ष अभागा
सूखे नयनन कृश है काया।
दस साल लग गये बनाने
सेल्यूलर था नाम जेल का
स्वतंत्रता सेनानी लाकर
दंडित करना नाम खेल का।
दर्द भरी पीड़ा का भोजन
सबने हँसते था खाया
पीपलका हूँ वृक्ष अभागा
सूखे नयनन कृश है काया।
स्वतंत्रता की आशा लेकर
सेनानी आया करते थे
हर कोने से आने वाले
जवान मुझको भाते थे।
कितनी माँ बहनों ने होगा
राग विरह का गाया !
पीपल का हूँ वृक्ष अभागा
सूखे नयनन कृश है काया।
मूंछ ना फूटी ऐसे सेनानी
जवान बच्चे आते थे
प्रखर राष्ट्र भक्ति से प्रेरित
जेल में हँसते जाते थे।
हर कमरे के अंधियारों में
तपता सूरज था पाया
पीपल का हूँ वृक्ष अभागा
सूखे नयनन कृश है काया।
पीड़ाओं का स्त्रोत था यहाँ
कर्ण बधीर थी चीखें
कैसे देखे बुलंद सपने
इन युवकों से सीखे।
आहट दरवाजा खुलने की
अब किसको है लाया ?
पीपल का हूँ वृक्ष अभागा
सूखे नयनन कृश है काया।
सावरकर था नाम शख्स़् का
चेहरे पर था तेज
शायद अंग्रेजों को हिलाने
नियती ने दिया था भेज।
जहालता का जुनून उनका
सबके मन को था भाया
पीपल का हूँ वृक्ष अभागा
सूखे नयनन कृश है काया।
महासागर पीड़ाओं के
हँसते हँसते तरते थे
आजा़दी की प्यारी बातें
दृढ निश्चय से करते थे।
उनकी बातों से लगता था
मुहूर्त अजा़दी का आया
पीपल का हूँ वृक्ष अभागा
सूखे नयनन कृश है काया।
स्वतंत्रता का यज्ञ चला है
प्राण आहूति देंगे हम
काला पानी कहो ना इसे
बनकर शहीद रहेंगे हम।
फिरंगियों के जुल्म में झलके
अपने ही डर का साया
पीपल का हूँ वृक्ष अभागा
सूखे नयनन कृश है काया।
आजा़दी ना आये जब तक
बहे हमारी खून की धारा
जंग हमारी; जीत हमारी
चाहे बीते जितनी सदियाँ।
जुनून जब है आजा़दी का
क्यों सोंचे क्या पाया ?
पीपल का हूँ वृक्ष अभागा
सूखे नयनन कृश है काया।
जेल बना है मंदिर जिसमे
गूंजे आजा़दी की कहानी
राष्ट्रभक्ति से प्रेरित श्रोता
होते सुनकर मेरी बयानी।
देश प्रेम का दीया जलाना
जुनून मुझ पर है छाया
पीपल का हूँ वृक्ष अभागा
सूखे नयनन कृश है काया।