मेरे एहसास
मेरे एहसास
सफ़र ही सफ़र राह में मंज़िल नही है।
ग़म के सिवा कुछ भी हासिल नही है।
उठती गिरती लहरों सा है मुकद्दर मेरा,
मैं वो दरिया हूँ जिसका साहिल नही है।
जो दर्द न पढ़ सके चमकती आंखों का,
जहालत में कोई उसके मुक़ाबिल नही है।
जो बना था कभी लिखने की वजह,
अब वो ही मेरे लफ़्ज़ों में शामिल नही है।
बांटने की चीज़ है मोहब्ब्त बांटो तुम,
होता नफ़रत से कुछ हासिल नही है।
किसकी मिसाल दूँ क्या केह के पुकारूँ
चांद आफ़ताब कोई तेरे मुक़ाबिल नही है।