मिट्टी से सने हुए हाथ
मिट्टी से सने हुए हाथ
पूजन भजन व साधना सत्कार में,
क्यों फँसा आराधना विस्तार में !
हृदय के गहरे अँधेरे भवन में,
कौन सी पूजा मगन तू सृजन में !
बंद पलकों के तुम्हारे नयन में,
देवता नहीं है तुम्हारा, सदन में !
कर रहे हलधर जहाँ श्रम खेत में,
श्रमिक पाहन तोड़ता जहाँ डगर में !
हाथ मिट्टी से सने तपते हैं दिन में,
जलते-झुलसते काम करते हैं तपन में !
वे अनन्त नभ के नीचे मुक्त पवन में,
श्रम करते सर्दी-गर्मी जर्जर जीवन में !
देवता बसता श्रमिक के बाजुओं में,
और बसता खेत और खलिहान में !
देवता बसते हैं हृदय भाव निर्माण में,
आशीर्वाद मिलता है बुजुर्गो के सम्मान में!
~V. Aaradhyaa~