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Viren Dargar

Abstract Tragedy Inspirational

4  

Viren Dargar

Abstract Tragedy Inspirational

मन का दर्द

मन का दर्द

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रातों को नींद आती नहीं थी

दिन में ग़मों के बारे में और

ना सोचूँ इसलिए सो जाता था


दोस्तों के सामने इतना हँसता था

मानो दुनिया का सबसे ख़ुश इंसान हूँ

जैसे ही कमरे में जाता तकिए को

सिरहाने रख आँसुओ का झरना बहा देता


माँ को फ़ोन न करता पर

माँ तो माँ है आगे से कर देती

खाना खाया - हा माँ

पानी पिया - पी लिया माँ

सर दर्द की दवाई ली- ले ली माँ

ये कहकर कभी कभी झुंझला जाता था


माँ को लगता पढ़ाई का स्ट्रेस है,

माँ को कौन बताए की सर के दर्द की

नहीं मन के दर्द की दवाई चाइए

बताना भी मुझे ही था


पर क्या बताता - मुझे ख़ुद

नहीं पता था मुझे हुआ क्या है

और ...और किसे बताता, माँ तो समझ

ही न पाती, दोस्त मज़ाक़

उड़ाते इसका डर था

और लोग क्या सोचते


माँ न समझ पाती - है -

ये वही माँ है जिसे पता लग जाता था

कि तुझे भूखार हुआ है घर बेठे बेठे

दोस्त मज़ाक़ उड़ाते- ह -

ये वही दोस्त है जो बिना मिले

पहचान जाते थे की तेरा दिल

आजकल किसके लिए धड़क रहा है


लोग क्या सोचेंगे - है -

ये वही लोग है जो आज तुम्हें

याद कर कल तुम्हें भूल जाएँगे।


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