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Anupma Prakash Srivastava

Inspirational

4.0  

Anupma Prakash Srivastava

Inspirational

मन

मन

1 min
504


चपल, चंचल मन,

नदी की गति से तेज़,

कुछ थोड़ा सा उत्साह लिए तो,

तो थोड़ा सा भ्रम।

मन में कौंधते विचार,

बदलते है वेग से।


नदी की धारा बहती है जैसे बारिश में तेज़ से।

छपाक ! गिरा है कोई पत्थर,

बिना आगाह करे,

मगन मन हो गया है

आहत एक कर्कश आवाज़ से।


टहलता घूमता जैसे ही पहुँचता है स्वप्नलोक में,

वास्तविकता की धरातल पर

हो जाता है धराशायी पलभर में ,

खुश है यह मन की कोई गहरायी नहीं नापता ,

जो दिल में है वह कोई नहीं जानता।


मुस्कुराहट की सतह ने बनाया है खूबसूरत मिराज ,

कोई भेद नही सकता ऐसा कस रखा है बाँध।

बह चला है मन हसरतों की पंगडंडियों पे,

बेबाक, बेशर्म ,

कभी ठहरा , तो कभी उछला, कभी आया आवेग में।


अरे ओ मन किधर चला तू ,

मिलना नहीं तुझे क्या आकाश से।

बहता रह इस आस में ,

की ले जाएगा तू कभी मुझे उस पार

उद्वेलित, उच्श्रंखल,गंभीर, निष्पक्ष और साफ़।


बच तू शब्दों के कंकड़ से ,

टहल घूम बेफिक्र रह ऐ मन।


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