मृगतृष्णा
मृगतृष्णा
जो भी जिया है सब सपना सा लगता है
मन नहीं भरा , जैसे पानी नहीं पानी की परछायी पी हो ..
कल जो जियेंगे , परसों सपना लगने लग जाएगा ..
याद तो साथ चल लेती हैं लेकिन अहसास नहीं ..
बार बार की प्यास और बार बार की पुनरावर्ती..
सारे ही सुख मन के रहे हो या शरीर के ..
उनको याद तो किया जा सकता हैं . लेकिन अहसास सपना जैसा ही हैं .
तभी शायद इसको माया जगत और मृगतृष्णा कहा गया हैं .
पानी को पाने की लालसा में किए गये कृत्य ही आपको थका देते हैं
और प्यासे ही बिना पानी के प्राण छूट जाते हैं..