निश्छल बचपन
निश्छल बचपन
थोड़े हठीले थोड़े चंचल,
थोड़े होते हैं ये नादान,
थोड़ी शरारत थोड़ी मस्ती,
दिन भर का है ये काम।
अपनी ही दुनिया में ख़ुश रहते,
खिलौनों से है बेहद प्यार ,
मिल जुल साथ सभी खेलते,
नहीं रखते कोई तक़रार।
नन्हे नन्हे कदमो से,
नाप आते खलिहान,
तृण भी खिल उठता तब,
कदमो की कर पहचान।
इनसे बच कर रहना भैया,
राज ये सारे खोलें,
जब हो सामने ये जासूस बच्चे,
तो कुछ हौले ही बोले।
खुश हो उठता है मन,
जब बच्चों संग हम खेले,
छूमंतर हो जाते संकट,
न कोई झेल झमेले।
कोमल और भावुक होते हैं,
झट डाँटो डर जाएं ,
अंजानो के सामने वो,
नॉटंकी कर शरमाएं।
इनसे गर हम सीख लें,
अपनापन जग का सारा,
नहीं होगा फिर क्लेश कोई,
अद्भुत होगा फिर नज़ारा।