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नर्सरी कक्षा के गलियारे में

नर्सरी कक्षा के गलियारे में

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नर्सरी कक्षा के गलियारे में बैठी थी मैं,

ढेरों चिंताए और तनाव मन मे लिए  

एक प्यारा सा बच्चा मेरी ओर दौड़ कर आया,

हँसते हुए उसने, कुछ निर्दोष से प्रश्न कर दिए


आप लोगों के चेहरों पर उदसीनता क्यों है ?

जब मुस्कुराना इतना आसान है यहाँ

क्यों हर कोई थक गया है ?

जब हर काम इतना मजेदार है यहाँ 


आप अकेले क्यों चल रहे हैं ?

हम तो आज भी हाथ थामे हुए हैं

आप मानव मूल्यों केवल किताबों रखते हैं ?

जबकि हम रोज़ प्यार और स्नेह का अभ्यास करते हैं


किसी और की तरह क्यों बनना है?

जब आपने आप को पाना इतना आसान हैं

आप लोगो को अपने शब्दों पर भी भरोसा नहीं ?

जबकि हमे परीयों की कथाओं में भी विश्वास हैं


इतने बड़े बड़े क्यों सपने देखते हो ?

जब कुछ छोटी छोटी इच्छाएँ ही हमें खुश देती हैं

इतने लंबे समय तक नफरत क्यों पालते हो ?

हमारी लड़ाई तो केवल कुछ पल की होती हैं  


वो बालक अपनी टोली संग से यूँ ओझल हुआ,

मुझे अकेला छोड़कर, कुछ सवालों के साथ

क्या हमारे दिलों मे भी कभी वो खुशीयाँ लौटेंगी,

नादानी, सादगी और बचपन की उस मुस्कान के साथ।


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