फ़रिश्ते कहलाएंगे
फ़रिश्ते कहलाएंगे
कोई कैसे ये कहे, कि गम से रिश्ता नहीं
इंसान ही हैं हम कोई फरिश्ता नहीं,
कुछ पल की खुशी इतराती है बड़ी,
छूट जाए हाथ से तो सताती है बड़ी ।
खुशी गम की राह कमसिन है बड़ी,
एक पहले तो एक ना रह पाए खड़ी।
खुशी तो बँट जाती है, संभलती नहीं
गमों को बांटो तो कोई लेता ही नहीं,
ओढ़ लो इसे तो ये सोने देता ही नहीं
किसी का गम बन जाती है किसी की खुशी।
बिछा देंगे गमों को पन्नों पर तो संभल जाएंगे,
नींद भी आएगी और फरिश्ते भी कहलाएंगे।