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Mahavir Uttranchali

Tragedy

5.0  

Mahavir Uttranchali

Tragedy

प्रदूषण के दोहे

प्रदूषण के दोहे

1 min
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शुद्ध नहीं आबो-हवा, दूषित है आकाश

सभ्य आदमी कर रहा, स्वयं श्रृष्टि का नाश


ओजोन परत गल रही, प्रगति बनी अभिशाप

वक़्त अभी है चेतिए, पछ्ताएंगे आप


अंत निकट संसार का, सूख रही है झील

दूषित है वातावरण, लुप्त हो रही चील


हथियारों की होड़ से, विश्व हुआ भयभीत

रोज़ परीक्षण गा रहे, बर्बादी के गीत


नदिया क्यों नाला बनी, इस पर करो विचार

ज़हर न अब जल में घुले, ऐसा हो उपचार


आतिशबाजी छोड़कर, ताली मत दे यार

शोर पटाखों का बहुत, होता है बेकार


गलोबल वार्मिंग कर रही, सभी को सावधान

प्रदूषण पर लगाम कस, मत बन तू नादान


कुदरत से खिलवाड़ पर, बने सख़्त कानून

पहले दो चेतावनी, फिर काटो नाख़ून


ऊँचे सुर में लग रहे, जयकारे दिन-रात

शोर प्रदूषण हो रहा, भक्तो की सौगात


नियमित गाड़ी जांच हो, तो प्रदूषण न होय

अर्थदण्ड से भी बचे, सदा चैन से सोय


दूषित जल से हो रही, मछली भी बेचैन

हैरानी इस बात से, मानव मूंदे नैन


सूखा-बाढ़-अकाल है, कुदरत का आक्रोश

किया प्रदूषण अत्यधिक, मानव का है दोष


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