रात
रात
हिर्ज के बाद जब उसे नींद आयी
परवाना बेसुध हुआ, शमा को नींद आयी।
मुझे अय़याम के हाथों में तो न छोड़ाकर
ऐ ख़ुदा दोज़ख ऐ इबलीस में न नींद आयी।
अब दवा है ज़बर मेरी कुव़्वते जिस़्मानी पर
जिस़की ज़ेरे शिफ़ा से भी न नींद आयी।
मैं मुसाफ़िर हूँ एक बात से वाबस्ता हूँ
आख़री मऩ्ज़िल से पहले कहाँ नींद आयी।
यूँ रुख़सत न हो मेरे दिल से मेरी उम़्मीद
तेरे शानों पे ही तो मुझे नींद आयी।
जावेद तुमको तो न होगी कभी तहाजुद नसीब
तुम्हारी नफ़स को कहाँ रात भर नींद आयी।