रेसेन्टली कॉल से ब्लॉक लिस्ट तक का सफर .....
रेसेन्टली कॉल से ब्लॉक लिस्ट तक का सफर .....
कॉलेज का पहला दिन जल्दबाज़ी का एक
नया सफर मेरी जैसे कोई राह देख रहा था.....
सारी सहेलीयों के साथ बस कि राह देखी
जा रही थी सामने से एक अंजान शख्स
मुडकर छुपकर देख रहा था ........
दिन बीता बडी खुशी से रास्ता मिला कुछ अलग
ऐसा अंजान शख्स मेरे साथ चाल रहा था.....
सोचा पूछ लूँ क्या आप हमें जानते हैं
लेकिन दिल मान नही रहा था......
कुछ दिन ऐसे ही बीत गये रिश्ता दोस्ती
में बदल गया था......
दिन ब दिन बाते बढती गई आप कौन का
रिश्ता हर रोज बात करने तक पहुंच गया.....
न वो मेरे पहचान का था और न हम उनके पहचान
के थे लेकिन कुछ अपनापन महसूस हो रहा था......
दिल उसका बहला था और हजरते मेरी किये
जा रहा था .......
ख्वाहिशें मेरी थी और वो पूरा किये जा रहा था....
खुशी के इस पल को कही रोक लगाऊ ऐसा
माहोल हो रहा था......
अंजान शख्स से शुरु हुआ सफर हमसफर
तक का समझा जा रहा था......
किस्मत की डोर कुछ ऐसी खिंचि कि
अंधविश्वास का धागा ये रिश्ता तोड रहा था.....
दिमाग से दिल तक का सफर कुछ ऐसा हुआ था.....
ठीक उसी तरह वक्त के चलते बदलते समय के
साथ रेसेन्टली कॉल वाला ब्लॉक हो गया था.....