रहस्यमयी रास्ते
रहस्यमयी रास्ते
इन टेढ़े-मेढ़े रास्तों पे न जाने कितने राज छिपे हैं,
इतिहासों की पीढञी से लेकर नई सदियों के राज छिपे हैं।
न राजा न रंक जहाँ पे, न पशु-पक्षी,
जहाँ कोई भेद-भाव का नाम नहीं सबके गहरे राज छिपे हैं।
कहीं किसी की जोड़े मंजिल तो कहीं किसी का जोड़े प्यार,
ये रास्ते भी दिखलाते हैं रंग हजार।
इन टेढ़े-मेढ़े रास्तों पे ....।
कहीं पे है किसान की सरसों तो कहीं पे सैटेलाइट का अनुसंधान,
कही झोपड़ी तो कहीं महलों का रंग दिखता।
कहीं पे है मजदूरों का क्रंदन तो कहीं पे है माँ का प्यार,
तो कहीं पे का शोर तो कहीं जश्न मनाते यार।
कहीं पे हे मदिरालय, विश्यालय तो
कहीं गूंजते मंदिर में घंटों की नाद,
गुरूद्वारे में गुरुवाणी यार।
इन टेढ़े-मेढ़े रास्तों पे ....।
यहीं थे ईसा यहीं थे राम, यहीं मोहम्मद और गुरुनानक यार,
यहीं से गुजरी थी गाँधी और सुभास की आवाज़।
यही पे सारे टाटा-बिरला-अम्बानी से लेकर है प्यारे
भारत के मजदूर, किसान और वीर जवान।
इन्हीं पे कोई बना अंगुलिमाल सा आतंकी तो कोई लादेन,
तो कोई बुद्ध, कोई भगत और चन्द्रशेखर आजाद।
इन टेढ़े-मेढ़े रास्तों पे .....।
जो इन पर जल्दी कर जाता, जो न लेता विवेक से काम,
जो जैसे रास्ते को चुनता रास्ता उसको वैसी मंजिल पहुँचाता।
इन्हीं रास्तो में छिपा है रावण और इन्ही में छिपे है राम,
सही रास्ता राजा भोज बनाता और वही ग़लत गंगू तेली बताता।
रास्तों के रहस्य में मैं भी अपनी बात बताता
अभी बीट्स पीलानी में हूँ पढ़ता,
न खोज ख़बर ये मुझको यह रास्ता मुझको किस और बैठाएगा।
इन टेढ़े-मेढ़े रास्तों पे ....।।