रिश्तेदारी
रिश्तेदारी
आजकल की नहीं बहुत
पहले की है ये जिम्मेदारी,
बड़े अच्छे तोह्फ़े देने से
चलती है रिश्तेदारी !
जिसकी जित्ती हैसियत
उसकी अपेक्षा भले उत्ती ना हो,
पर तोहफ़े दूसरों को हैसियत
देख के ही दिए जाते हैं !
आप भले ना बोले कित्ता भी,
पर तोहफ़े आपको मिलने ही चाहिए !
कही ये साख की बात
तो कही बदसलूकी वाले रश्मो रीवाज !
बात तो ये है कि अपनी सुनाने मे अक्सर लोग
खुद का किया भूल जाते हैं,
जैसे आज ही है जो है और
उपहार से ही अमीर हो जाते हैं !
फिर मेँ सोचती हूँ जिनके
पास मुझसे ज्यादा है
उन्हें मैं क्या दूँ
इससे फर्क नहीं
बस खुश तभी होंगे
ज़ब कुछ दे दूँ।
भले खुद ना दे कुछ भी
फिर भी अपेक्षा रहती ही है,
कित्ता भी खुश हो
तोहफ़े ना मिलने से निराशा होती है !
मैं बहुत पहले से समझ चुकी थी
कि बचपना है ये सब
ना तो हर कोई तुम्हें
मनचाहा उपहार दे सकता है
नाही वो उपहार तुम्हें
हमेशा सुख दे सकता है !
ये क्षण भंगुर ख़ुशी के लिए
मन नहीं दुखाना चाहिए,
जिसको जो मन हो
उपहार मे देना चाहिए
और जो भी मिले या ना मिले
उसे व्यवहार बनाये रखना चाहिए !
दुनिया लाख दिखावे पे चलती है
असल चलती तो इंसानियत से ही !
चलिए हम इंसानियत के रिश्ते बनाये,
हमारी दुनिया को खुशनुमा बनाये !