शोर में खामोशी
शोर में खामोशी
शोर मच रहा है चारों तरफ पर पसरी हुई खामोशी है
ये जो दुर्घटना घटी , कौन है वो जो इसका दोषी है
क्यों एक नन्ही जान दब गई किताबों के बोझ में
दुनिया के बारे में पढ़ते पढ़ते , नहीं रही खुद के होश में
मेज़ पर पड़े एक कागज ने उसकी व्यथा को सुनाया था
वो सारी बाते कही जो वो खुद न कह पाया थे
उम्मीदों की करारी धूप से किसी आंगन का फूल सूखा है
खुशियाँ छीन ली थी उससे , ये समाज क्यों नंबरों का भूखा है
अब नीर बहा रहे सब पर वक्त रहते गले लगा न पाए थे
ये कैसी विडंबना है , बच्चे अपनी चिंता माँ बाप को न बताए थे
जब मन की बाते वो करना चाहता , कहते तेरा दिमाग खराब हो गया है
अरे जाकर पढ़ाई कर , तू इन बेकार की चीज़ों में क्यों खो गया है
दुख है सबको एक तारा आसमान को प्यारा हो गया
पर अपना जीवन लेकर उसके जीवन में उजियारा हो गया
पर बच जाता वह अगर ना टालते माँ बाप मज़ाक में उसकी बातों को
आज हमारे बीच होता वो अगर माँ बाप समझ सकते उसके जज़्बातों को।