समुंदर की चहक
समुंदर की चहक
कभी कभी अंदर खामोशी सी होती है
पर बाहर भूचाल चल रहा होता है
कहता है मन कहूँ मन की बात
पर डर लगता है कि कोई फ़ायदा ना उठाये
किनारे पर बैठी हूं
सोचती हूं कि कब आएगी शांति
पर जैसे ही मन शांत होता है
नया राज खुल जाता कहीं पुरानी जख्मों का
ये तूफ़ानी मन थमने को ही नहीं है
की हवा का झोंका फिर आ जाता है
ले जाता है किसी काली रात की डगर में
भागने को मन करता है वहाँ से
पर फिर पकड़ लेती है ये बंदिशें।