सनम ना समझ
सनम ना समझ
प्यार का इज़हार किया जिस पल
खुशियों ने मेरी लिया मुँह मोड़ उस पल
फ़रमाइशों और शिकायतों के बीच
दफ़न हो गई खु़शियाँ सारी
नासमझ मैं समझ बैठी
शायद ये दौर है मदहोशी का।
गिले शिकवे शिकायतें रुकी नहीं आज तक
ना ही फ़रमाइशें हुईं कम अब तक
अब हुआ एहसास खु़शियों की नाकामयाबियों का मुझे
लेकिन मुझसे कहीं ज़्यादा हैं नासमझ सनम मेरे
वो समझते हैं वो करते हैं प्यार मुझसे।