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Manisha Kumar

Abstract Comedy

4  

Manisha Kumar

Abstract Comedy

सर्दी का सितम

सर्दी का सितम

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28


कोहरे की चादर में लिपटा 

काँप रहा है आलम सारा

कहां छुपे हो सूर्य देव तुम 

जाड़े ने जीवन किया दुश्वार

सुबह सुबह चाय की चुस्की 

वैसे तो खूब सुहाती है 

पर पड़े छोड़ना बिस्तर जब भी

नानी याद आ जाती है।  

तिल और गुड़ के व्यंजन ढेरों

जिह्वा का स्वाद बढ़ाते हैं 

पर हाड़ कंपाती सर्दी से

ये राहत न दे पाते हैं। 

ताजी हरी सब्जियां लाखों 

थाली को खूब सजाती हैं 

पर ये सर्द हवाएं जाने क्यों 

आंतों को अकड़ाती हैं।  

रंग बिरगें स्वेटर मफ़लर 

बाजार की शान बढ़ाते हैं 

पर कंबल और लिहाफ सी राहत

ये न कभी दे पाते हैं।

दर्शन दे दो हे! सूर्य देव अब

सारी धरती अलसाई है

सूज गईं अंगुलियां सारी

हड्डियां भी अब थर्राई हैं। 


  


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