सुशान्त तू कैसे चला गया
सुशान्त तू कैसे चला गया
अरे सुशान्त तू आख़िर कैसे चला गया
लाखों आंखों को तू यूँ ही अक्षु दिला गया
ऐसा भी क्या तेरे जीवन मे हो गया था,
तू इतनी बुज़दिली से कैसे चला गया
अभी तेरी उम्र इतनी ज्यादा थोड़ थी,
तू अपने से हार कर यूँ ही कैसे चला गया
माना इस जीवन मे लाखों ग़म आते है,
पर आत्महत्या कर थोड़े चले जाते है,
तू कैसे तेरी मां की लाठी तोड़ चला गया
लाखों चराग़ जल रहे थे तेरे जीवन मे तो,
पर तू खुद का ही चराग़ कैसे बुझा गया
तेरी सौम्यता,सदा इस हृदय मे बसी रहेगी
पर तू कैसे सबका ही दिल तोड़ चला गया
तेरी अदाकारी हम कभी भूल न पाएंगे
तू रोशनी होकर कैसे अंधेरे में चला गया
अरे सुशांत तू आख़िर कैसे चला गया