थक कर जब शाम को बैठ जाया करो
थक कर जब शाम को बैठ जाया करो
थक कर जब शाम को बैठ जाया करो
इस ज़िन्दगी के लिए शुक्र-ए-ख़ुदाया करो।
नहीं मयस्सर बोहोतों को दो जून की रोटी भी
मिले सब को रिज़्क़ दुआ में हाथ उठाया करो।
है ख़ुदा सब्र करने वाले के साथ हमेशा
सब्र न पड़े तुम पे किसी का, हक़ूक़ अपने निभाया करो।
हो फ़कीर कोई या कोई बादशाह ही क्यों न हो,
कौन नहीं इस दुनिया मे ग़मज़दा,
हो परेशानी कोई भी ज़िन्दगी में,
उसे इम्तेहान समझ के अपनाया करो।
क्या रक्खा है बुग्ज़, नफ़रत-खोरी दुश्मनी या लड़ाईयों में,
हो कोई भी तुम से छोटा या बड़ा,
सभी को मोहब्बत से गले लगाया करो।