तुम आयीं कुछ इस तरह
तुम आयीं कुछ इस तरह
माया बँध.. बंदी सभी..
हैं अमर्त्य भावनाएं ,
अभियुक्त तुम इस जीवन की,
आत्महंता लालसायें ।
मैं जिये बस जा रहा था,
मंजिल थी न विराम था।
आग थी न चांदनी थी..
दिल को न आराम था।
हे प्रिय!
आना तुम्हारा ...
दुःख मेरा सब सोखता ।
है विरोधाभास जीवन..
जीवन ताराजू तोलता।
बहती हो अंगार जिसमें
बिजली के से फूल की,
हैं चमकती ऑंखें हिरनी..
तड़ित सी है देह भी।
नाद हो अनहद ह्रदय की
मौन का संगीत सी।
बज उठी हो झाँझ जैसे,
आत्मा के गीत सी।
फेन बिखरा दूधिया..सागर का...
जगमग रात सी ।
रात में.. खिलती कली तुम...
चंपा की.... बरसात सी।
रातभर बरसी हो बदली,
जैसे रेगिस्तान में,
तुम आयी कुछ इस तरह..
अँधेरे में रोशनदान सी।