तू क्यों सुनता है !
तू क्यों सुनता है !
तू क्यों सुनता है,
तू क्यों मजबूर है
हर काम से पहले
इजाज़त के लिए।
और तू क्यों उनकी
मान के बैठ जाता है।
अरे बंदी वो जो कर नहीं पाए,
कहते हैं, तुम कर नहीं सकते
वो बैठ गए हार मान कर,
कहते है तुम लड़ नहीं सकते।
वो जिनका नहीं मुक़म्मल हुआ,
कोई इश्क़ ना कोई काम,
वो तुम्हारा होता है,
तो जल से जाते हैं।
वो जब उगता है ना सूरज,
अंधेरे के सामने,
सब ढल से जाते हैं।
पत्थर बहुत है राहों में,
पर रास्ता बदलना भी तो
कोई हल नहीं है।
और जो वापस हो लिए राहों से,
उनका आने वाला
कोई कल नहीं है।
और क्या हुआ
आज सब खिलाफ है तो,
जब मिलती है ना मंजिल,
तो सबके रंग बदल से जाते हैं।
वो देख के नजर जो फेर लेते थे,
आज पास आकर,
मिल के जाते हैं।
तू क्यों सुनता है,
ये दुनिया है
यहाँ ऐसे ही चलता है।
जहाँ तुम उम्मीद करते हो,
साथ की किसी के,
वही हाथ छोड़कर
आगे बढ़ चलता है।
तू क्यों सुनता है किसी की,
कर ना अपने मन की।।