वह अर्थी उठाए चल रहा
वह अर्थी उठाए चल रहा
जब से किसी ने उसे बता गया
तेरे जीने की सारी उम्मीद
अब तो गल गई है
उसने जीने का तरीका बदला
वह अर्थी उठाए चल रहा है I
जीवन भर सिर्फ अपने
तन ज़न पर
ध्यान दिया लाख
कुटिल जतन कर
अब हाथ खोल कर
बैठता है गैरों के पास
झुठला गया तन ज़न
और अपने धन विश्वास
जा बैठता दीन दूरियों के संग
कभी उनसे पूछता कुशलात
कभी करता अपनी बात
कोई तो बैठा पास
दर्द सुनने के लिए
दीन शरीर खिंन शरीर
दोनों के बीच कुशल रहा है
जब से किसी ने उसे बता गया
तेरे जीने की सारी उम्मीद
अब तो गल गई है
उसने जीने का तरीका बदला
वह अर्थी उठाए चल रहा है।