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ये प्रेम प्यार में पगी रचनाएँ

ये प्रेम प्यार में पगी रचनाएँ

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ये प्रेम प्यार में पगी रचनाएँ

महज़ चंद शब्द नहीं हैं

ये तो सहज अभिव्यक्ति है

प्रस्फुटित होती रहती हैं जो

कभी भी, कहीं भी बेझिझकय़


दिन रात की परवाह किए बिना

कभी एहसासों के स्पंदन में

कभी विश्वास के गठबंधन में

और कहीं विरह की पीर से उत्पन्न

अश्रुविहीन आँखों के क्रंदन में..।


आसमान से उतरी गजल है समेटे

रदीफ और काफिए में बसा प्यार

या कलकल बहता गीत मधुर सा

छंद अलंकार जैसे नायिका का मनुहार।


कभी लघुकथा, कभी कहानी बन जाती

उपन्यास के पन्नों को कभी रंग जाती

रचनाओं के रूप भिन्न हो सकते हैं भले ही

पर भावों का उद्वेलन है सदा एक सा ही..।


इन रचनाओं के शब्द महज़ शब्द नहीं होते

हो सके, तो महसूस कर देखना कभी

ये भी साँस लेते हैं हम सबकी तरह

कभी रोते, कभी हँसते, खिलखिलाते

और तो और पीड़ा के अतिरेक में ये भी

मासूम बच्चे की मानिंद पल भर में रूठ जाते।


इन रचनाओं का वजूद क्या है आखिर ?

पाठक के लिए तो मात्र एक रचना है यह

खुशी या दर्द की एक इबादत रची हो जैसे

तारीफ की मोहताज नहीं होती कभी ये।


क्योंकि ये रचनाएँ पाठकों को

मोहित करने के लिए नहीं लिखी जाती

ये तो लिखी जाती हैं डूब कर आकंठ प्रेमरस में

तो पढ़ते हुए गोता लगाना पड़ता है

जज्बातों के सागर में क्योंकि

ये प्रेम प्यार में पगी रचनाएँ

महज चंद शब्द नहीं हैं...।।


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