आधा सच/वह जो अधूरी सी बात बाकी है
आधा सच/वह जो अधूरी सी बात बाकी है
कभी-कभी हम अपनी बात अच्छी तरह से पूरी कहना चाहते हैं, मगर सामने वाला उस बात को सुनने को तैयार ही नहीं होता।
और उसमें तुम ही तुम रह जाता है और हम गायब हो जाता है और बात
और बात इतनी बढ़ जाती है कि पति-पत्नी में दूरियां जाती हैं ।तलाक की नौबत आ जाती है। भाई बहनों में दूरियां जाती है। रिश्तो में दूरियां आ जाती है ।
क्योंकि सामने वाला अधूरी बात को ही सच मान लेता है और आधा सच ही जान पता है पूरा सच क्या है उसके पीछे का वजह क्या है वह नहीं जान पाता/या जानना नहीं चाहता।
इसी तरह की कहानी पत्र की जुबानी।
एक पत्नी अपने पति को कुछ ऐसी ही घटनाओं के शिकार होकर पत्र लिख रही है।
प्रिय रोहित
उस दिन तुमने मेरी पूरी बात सुने बिना ही मुझे बहुत भला बुरा कहा। घरवालों की बातों में आकर तुमने एक बार भी मुझसे पूछना जरूरी नहीं समझा। मेरी जिंदगी में तो तुम ही थे जिस से बहार थी। मैंने सोचा था तुम मुझे समझोगे
और मुझसे इतना खराब व्यवहार करके मुझे घर से बाहर निकाल दिया।
और बोल दिया कि तुम मेरी शक्ल भी नहीं देखना चाहते ।
अब कोर्ट में मिलेंगे।
अगर तुमने एक बार मुझसे पूछा होता तो मैं तुमको तुम सारा सच जो घर वाले तुम्हारे विरुद्ध में बुन रहे थे वह बताती।
तुमसे मुझे अलग करने की साजिश कर रहे हैं,और तुम्हारे दूसरी शादी के लिए बहुत दहेज लाने वाली लड़की जो उनके पसंद की है उसके लिए जगह खाली कर रहे हैं।
इसलिए वे तुमको मेरे विरुद्ध में बहुत भड़काते हैं ।
तुम्हारी जिद के आगे उनकी एक नहीं चली।
इसलिए तूमने मुझसे से प्रेम विवाह कर लिया।
मगर बाद में तुम भी कान के कच्चे निकले।
कम से कम इतना तो विश्वास कर लेते।
कम से कम मेरी बात तो सुन लेते, तो तुमको पता लग जाता कि क्या चल रहा है ,और पूरा सच क्या है
आज भी ऐसा कुछ नहीं हुआ था ।
मेरी कोई गलती नहीं थी। मैंने कुछ नहीं किया था तो भी तुम्हारी मां बहन मेरे माथे पड़ी। तुम्हारी नजरों के सामने मुझे नीचा दिखाने की और बड़ा दिखाने की कोशिश करती रही
और बहुत भला बुरा बोला और मेरी मां बाप तक को गालियां दे दी।
मेरे दहेज न लाने पर बहुत प्रताड़ित करा।
और फिर तुम आए तो तुमको मेरे विरुद्ध भड़काया, जब मैं तुम को कहना चाह रही थी। तुमने अधूरी सी बात सुनी। पूरी करने भी नहीं दी और बिना सच जान अधूरी बात सुनकर प्रताड़ित करके घर से निकाल दिया।
कहां गया तुम्हारा प्यार, क्या यही तुम्हारा प्यार था अगर यही तुम्हारा प्यार था तो पहले घरवालों को पूछ लेते, फिर प्यार करने लगते फिर शादी करते ।
ऐसे दहेज भूखे लोगों के बीच में मुझको ले जा करके उनको सौंप दिया।
और तुम भी उनके हो गए।
जो बहुत गलत है।
कम से कम मेरी अधूरी सी बात को पूरा तो करने दिया होता। तुमने पूरी बात सुनी होती और पूरा सच जाना होतातो मुझे आज यह पत्र लिखने की नौबत नहीं आती ।
अब भी अगर तुम में थोड़ी सी गैरत और मेरे प्रति प्यार बचा है तो आकर मुझसे मिलो ।
और मुझे मेरे घर लेकर जाओ।
अब मैं इन लोगों के बीच में नहीं रहना चाहूंगी और मैं यह चाहूंगी कि तुम हमेशा मेरी पूरी बात सुनो अधूरी बात पर, अधूरे सच पर और सुनी सुनाई बात पर लड़ाई झगड़ा ना करो।
तुम्हारी रेखा