अब पछताये होत क्या जब चिड़िया
अब पछताये होत क्या जब चिड़िया
अविरल शुरू से ही पढ़ने लिखने में तेज़ था। अपनी प्रतिभा के बल पर वो अब एक एम.एन.सी. में अच्छे पद पर कार्यरत था। कंपनी में उसकी दोस्ती भास्कर से हो गई थी जो उसकी हर काम में मदद कर दिया करता था। भास्कर से काम की बारीकियां सीखकर वो जल्दी ही प्रमोशन पाता गया, और अब कंपनी के चुनिंदा लोगों में उसकी गिनती होती थी। बहुत जल्दी ही उसने सब कुछ पा लिया था।पर अब उसने अपने आस-पड़ोस एवं रिश्तेदारों से मतलब रखना बंद कर दिया था क्योंकि वह उसे अपनी हैसियत से कम ही नज़र आया करते थे। वह अब अपने को भगवान से कम नहीं समझता था । धीरे धीरे वो भास्कर से भी कन्नी काटने लगा क्योंकि वो अब उससे ऊंचे पद पर पहुंच गया था ,पर समय बदलते देर नहीं लगती। कंपनी में अचानक से घाटा होने लगा तो जांच बिठाई गई जिसमें अविरल वित्तीय घोटालों में लिप्त पाया गया। तुरंत ही उसे नौकरी से निकाल दिया गया, और उसे जेल की हवा खानी पड़ी वो अलग। कोई रिश्तेदार या पड़ोसी उसकी सहायता को आगे नहीं आए।वो अर्श से फर्श पर आ गया था। उसे अब पता चला अपनी जिस उड़ान पर वो इतना इतरा रहा था वो कितनी बौनी निकली।जिस उड़ान पर वो अपना अधिकार समझ रहा था उस उड़ान की डोर तो विधाता के हाथ में थी। आज उसे अपनी मां की बात रह-रहकर याद आ रही थी जो कहा करती थीं कि दुनिया तो एक रंगमंच है और हम सब विधाता के हाथ के खिलौने हैं। हमें बस अपना रोल अच्छे से निभाना है। आज उसे अपनी मां की बात का मर्म समझ में आया कि अच्छे कर्म करके ही अपने रोल को अच्छे से निभाया जा सकता है,और अपनी ऊंची उड़ान पर कभी घमंड भी नहीं करना चाहिए। पर अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत।