अहसास
अहसास
बंद कमरे में एकांत ही कामना का एकमात्र साथी था।आँखों के आँसू हृदय की वेदना को सुन और सुना रहे थे।इसी एकांत में वह धीरे-धीरे यादों के सोपान से विगत समय में उतरी। वह गौरवर्णा सुंदर अंगों वाली बालिका जो कौमार्य के पश्चात किशोर अवस्था में प्रवेश कर चुकी थी, उसके सौंदर्य के आकर्षण से कई युवक उसे मित्रता का आग्रह प्रेषित कर चुके थे। युवा मित्रों के साथ घूमना-फिरना और रेस्त्रां में मित्रों द्वारा दी गई दावतें उसे अच्छी लगने लगी थीं। न जाने कब और कैसे उसका कुमुद के प्रति अतिशय आकर्षण होने लगा था। बारहवीं में पढ़ने वाली कामना के परिवर्तित व्यवहार को देखकर उसके एक शिक्षक को उसके जीवन में आने वाली काली विपत्ति दिखाई पड़ने लगी थी। शिक्षक ने उसे बहुत समझाया था कि आज के युग में प्रायः हर मनुष्य ही स्वार्थ की पराकाष्ठा को पार करने लगा है। घनिष्ठ मित्र भी स्वार्थ सिद्धि के लिए परम मित्र को अंधकार में भटकने के लिए मजबूर कर देता है। लेकिन अवस्था के प्रभाव और सौंदर्य के अहंकार में उसे शिक्षक की बातें बिल्कुल ही प्रतिकूल प्रतीत होती थीं। उसे लगता था कि शिक्षक उन्मुक्त गगन में उड़ने से पहले ही उसके पंखों को काट देना चाहता है। कुमुद से मिलना जुलना बहुत बढ़ चुका था। उस दिन उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा, जिस दिन कुमुद ने उसे उपहार में एक सुंदर स्मार्टफोन दिया। उसी दिन से ही वह कुमुद के साथ सुखमय सुंदर भविष्य के सपने सजाने लगी थी। रात भर कुमुद से चैटिंग चलती रहती। उसकी मीठी-मीठी बातों से उसका दिन का चैन और रातों की नींद खत्म हो चुकी थी। एकमात्र कुमुद ही उसके चिंतन का विषय बन चुका था।
इसी बीच परीक्षाएं आरंभ हो चुकी थी, उसका अनुत्तीर्ण होना कोई अप्रत्याशित भी नहीं था। आखिर उसके मन की छटपटाहट अपने चरम पर पहुँच चुकी थी। वह कुमुद के साथ घर से पैसे व आभूषण चुरा कर माँ-बाप की नाक कटवा कर घर से भाग गई थी। कुमुद उसे मुंबई ले आया था, जहाँ पर एक छोटा सा कमरा किराए पर लिया और उसमें दिन गुजारने लगे थे।वहाँ कुमुद के नए-नए दोस्त आते और दावते उड़ाते। आखिर जेब का धन कितना चलता ? अभाव के दिन शुरू होते ही कुमुद ने उसे बिना बताए उसका सौदा कर लिया। अपने नए मित्र को बुलाकर स्वयं किसी बहाने सदा के लिए कमरा और कामना को छोड़ कर उसके जीवन से दूर जा चुका था। नए मित्र ने उसे प्रतिबंधों में कैद कर लिया था। उसका फोन भी तोड़ डाला था। जब कभी भी वह बाहर जाता तो कमरे पर बाहर से ताला लगा लेता। कामना को जिंदगी बोझ लगने लगी थी, उसे एहसास होने लगा कि उसने अपने शिक्षक के अमृत तुल्य वचनों की अवहेलना करके अपनी सुखी जीवन को उजाड़ दिया है। उन्होंने ठीक ही कहा था कि गलत मार्ग पर चलने के बाद लौटकर आना असंभव सा हो जाता है। श्वेत वस्त्र के समान उज्ज्वल चरित्र पर यदि दाग लग जाता है तो उसे हटाना असंभव हो जाता है। पारंपरिक सामाजिक व्यवस्था पर अविश्वास करने के बाद वह ऐसे दोराहे पर आकर खड़ी हो गई है, जहाँ से न तो आगे बढ़ा जा सकता है और नहीं पीछे लौटा जा सकता है। आज के समाज में स्त्री जहाँ सशक्त होकर उभर रही है वह केवल दूसरों पर आश्रित मात्र एक 'अबला' बनकर रह गई है।