Ganesh Chandra kestwal

Tragedy Inspirational Children

4.3  

Ganesh Chandra kestwal

Tragedy Inspirational Children

नया पाठ

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    जेठ की तपती दुपहरी में जैसे ही माँ काम निपटा कर साड़ी के पल्ले से मुंह ढककर लेटी और थकान के कारण नींद की आगोश में लिपटी वैसे ही सोनू दबे पाँव पूर्व निर्धारित योजनानुसार घर से निकला और अपने दोस्त मोनू के साथ थैला और कुदाल लेकर नदी की ओर चल पड़ा। गर्मियों की छुट्टी पढ़ते ही उसके मन में मछलियाँ पकड़ कर उन्हें पत्तों के अंदर नमक मिर्च के साथ बाँधकर और पकाकर खाने का विचार हिलोरें मार रहा था। वे बड़ी तेजी से नदी की तरफ चले। नदी तट पर पहुँचते ही दोनों आँखें तरेर कर बहते पानी में मछलियाँ ढूंढने लगे। इसी क्रम में मछलियाँ ढूँढते हुए वे नदी के गहरे तालाब के पास पहुँचे जो काफी गहरा प्रतीत हो रहा था। उसका पानी हरा लग रहा था। नदी के पत्थरों पर जमी काई पर चौड़ी-चौड़ी पट्टियाँ देखकर दोनों ने यह सुनिश्चित कर लिया कि तालाब में बड़ी-बड़ी मछलियाँ हैं।

   अचानक तालाब में पानी के अंदर एक इंद्रधनुषी छटा तैरने लगी, जिसने अनायास ही दोनों का ध्यान आकर्षित कर लिया था। वास्तव में वह बड़ी ही खूबसूरत बहुरंगी बड़ी मछली थी। उसे पाने की उनकी लालसा चरम पर पहुँच चुकी थी। उन्होंने ध्यान से देखा कि वह मछली तालाब के किनारे जमे पत्थर के नीचे चली गई। दोनों ने इशारों ही इशारों में बातें की। फिर सोनू उस खूबसूरत मछली को पत्थर के नीचे दबोचने के लिए धीरे से पानी में उतरा और सावधानीपूर्वक पत्थर के नीचे हाथ फेर कर मछली की ढूँढ करने लगा। इस कार्य में उसका हाथ संकरे से बिल के पास पहुँचा। जैसे ही मछली को पकड़ने के उद्देश्य से उसने बिल में हाथ डाला, सहसा उसे अत्यंत तीव्र खिंचाव महसूस हुआ और पलक झपकते ही बड़ी तीव्रता से बिल में समा गया। घबराहट से उसके हृदय की धड़कन बहुत तेज हो गई थी। बिल से अंदर जाते ही उसकी आँखें फटी की फटी रह गई। वह एक नई दुनिया में पहुँच चुका था। भयभीत होकर एक पत्थर की ओट से जल के अंदर के सुंदर नजारे देखने लगा। सब और निर्मल जल भरा हुआ था, जिसके अंदर विभिन्न रूप-रंग और आकार के पेड़ पौधे अपनी छवि से उसे लुभा रहे थे। इन्हीं पौधों के बीच विविध प्रकार के अति सुंदर जीव-जंतु और छोटी-बड़ी मछलियाँ जल क्रीड़ा कर रही थीं। खूबसूरत पत्थरों के बीच उनके बहुमंजिली घर थे। वह इस अत्यंत मोहक सुंदरता को देखने में खो गया। अचानक पत्थर की ओट में उसके समीप तैरते हुए एक विशालकाय मत्स्य पहुँचा। उसे देखकर मनुष्य की वाणी में चिल्लाते हुए बोला- "अरे! हमारे मत्स्य नगर में यह मनुष्य कैसे पहुंचा?"

    सोनू कुछ बोलता उससे पहले ही उस मत्स्य ने बाईं मूंछ (शृंग) से उसे लपेटा और बड़ी तीव्रता से तैरते हुए विशालकाय भव्य महल में प्रविष्ट हुआ, जहाँ एक अद्भुत सिंहासन पर मत्स्यराज और उनकी रानी विराजमान थीं। अन्य मछलियाँ और जलीय जीव उनकी सेवा में तत्पर थे। उसने राजा को प्रणाम कर निवेदन किया कि न जाने कैसे मछलियों का यह शत्रु मत्स्य नगर में प्रवेश कर गया है। आप इस से पूछताछ कर उचित निर्णय लें महाराज!

    मत्स्यराज ने सोनू को प्रेम से पुचकारते हुए पूछा- "बेटा! तुम यहां कैसे पहुंच गए?

    सोनू ने आदि से लेकर अंत तक सारा वृत्तांत मत्स्यराज को सुनाया। मत्स्यराज ने जोर से ठहाका लगाते हुए सोनू से पूछा- "आखिर तुम लोग पानी के अंदर रहने वाली चंचल मछलियों को कैसे पकड़ लेते हो?

    गर्व पूर्वक सोनू ने बताना आरंभ किया- "महाराज! हम कई तरीकों से मछलियों को पकड़ते हैं।"

    मत्स्यराजज ने आश्चर्य जताते हुए फिर पूछा- "वे तरीके कौन-कौन से हैं? 

    महाराज! जहाँ पर जल-बहाव के दो या अधिक मार्ग होते हैं वहाँ किसी एक मार्ग का जल रोककर पानी के बिना तड़पती हुई मछलियों को हम उठा लेते हैं।  

   मत्स्यराज ने जिज्ञासा प्रकट कर और तरीके जानने चाहे तो सोनू ने बताया कि कभी दबोच कर, कभी पत्थरों पर घन की चोट मारकर, कभी जाल में फँसा कर, कभी जंगली फलों छाल और जड़ों को कूटकर नदी के पानी में मिलाकर, कभी नदियों में रासायनिक विस्फोट कर, कभी काँटा डालकर, कभी बिजली के करंट से और कभी पानी में जहर मिलाकर भी हम मछलियों को मारते हैं। यह सब बताते हुए सोनू स्वयं को महा प्रतापी समझ रहा था। सोनू की बातों को राजमहल की सभी मछलियाँ ध्यान पूर्वक सुन रही थीं। सोनू की बात समाप्त होते ही एक वृद्ध मत्स्य गंभीर वाणी में बोला- "महाराज! हम सदैव ही मानव जाति सहित समस्त सृष्टि पर उपकार करते रहते हैं। जल में पड़ी समस्त गंदगी को खाकर हम निर्मल करते हैं। हमारी कुछ जातियाँ हानिकारक मच्छर आदि के लारवों को खा कर उन्हें नियंत्रित करते हैं। फिर भी मानव आदिकाल से ही हमारा वध विविध षड्यंत्र रचकर करता आ रहा है। पानी से बाहर की दुनिया से हम कुछ भी नहीं चाहते हैं फिर भी मनुष्य हमारी दुनिया में प्रवेश करके हमारा संहार करता है। इस प्रकार अपने कुकर्मों से मानव हमारा शत्रु बन गया है। महाराज! यह मानव भी निश्चित तौर पर हमारा शत्रु है। हमें हानि पहुँचाने के उद्देश्य से ही यह यहाँ आया है। इसे दंड दीजिए महाराज! दंड दीजिए।"

    अन्य सभी मछलियों ने भी वृद्ध मत्स्य की बात का समर्थन एक स्वर में करते हुए कहा- "इसे दंड दीजिए महाराज! दंड दीजिए।"

    "हाँ इसे अवश्य दंड दिया जाएगा। वह भी मृत्युदंड।" मत्स्यराज ने कहा। "फिर इसके मृत शरीर से शाही भोज तैयार किया जाएगा और समस्त नगर की सभी मछलियाँ उस भोज का आनंद लेंगी।" 

   मत्स्यराज ने अपनी बात आगे बढ़ाई और फिर सोनू से पूछा- "बताओ, तुम्हें मारने के लिए कौन सी तकनीक का प्रयोग किया जाए? तुम्हारी इच्छानुसार ही तुम्हें मृत्युदंड दिया जाएगा।"

    सोनू बहुत घबरा चुका था। वह पसीने पसीने हो चुका था। हाथ जोड़कर मत्स्यराज के समक्ष गिड़गिड़ाते हुए बोला- "क्षमा करें महाराज! मुझे जीवनदान दें। महाराज भविष्य में मत्स्य जाति के प्रति कभी भी दुर्व्यवहार नहीं करूँगा।"

    इतने में उसे लगा कोई उसे झकझोर रहा है। अब उसे माँ के शब्द भी सुनाई पड़ने लगे। "क्यों रो रहे हो बेटे? क्या कोई डरावना सपना देखा है?"

   सोनू ने आँसू पोंछते हुए कहा नहीं माँ आज मैंने एक नया पाठ सीखा है।



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