ऐतराज़
ऐतराज़
"सुनो, तुम्हें पता था कि मैं तुम्हारी अनुपस्थिति में रवि से मिलती हूँ, फिर भी तुमने कभी ऐतराज़ नहीं किया." रीटा ने हेयर ड्रायर से अपने बाल सुखाते हुए रंजन से पूछा.
"उससे शादी नहीं हुई तो क्या हुआ. रवि तुम्हारा पहला प्यार था,कॉलेज में साथ पढ़े हो तुम दोनों. मिलने में क्या हर्ज़ है?" रंजन ने शांत स्वर में कहा.
"पर तुम्हारी कोई गर्लफ़्रेंड तुमसे मिलती तो मुझे ऐतराज़ होता."
"मैंने कभी तुम्हें 'आई लव यू' नहीं कहा तो तुम्हें लगता है कि मैं न जाने किस किस्म का आदमी हूँ।शायद इसलिये तुम अभी भी रवि से मिलती हो।"
"हाँ कमी तो महसूस होती है तुम्हारे प्यार में।"
रीटा की बात सुन कर रंजन ने गंभीरता से कहा, "जिस दिन तुम मेरे प्यार की गहराई को समझ जाओगी, तुम मेरे पास लौट आओगी।ऐसा मेरा विश्वास है, इसलिये कभी ऐतराज़ नहीं किया।"
"रवि से मैं प्यार अवश्य करती हूँ।पर हमने कभी रिश्तों की मर्यादा नहीं तोड़ी।"
"जानता हूँ।तुमने शादी की पहली रात ही बताया था। किसी से पवित्र प्यार करना और मिलना-जुलना कोई अपराध तो नहीं।तुम्हारी इसी खूबी पर मैं फ़िदा हूँ।रवि अब तुम्हारा ही नहीं मेरा भी दोस्त है।"
"ओह! रंजन तुमने मेरे मन का बोझ हल्का कर दिया।"
"मेरी प्यारी रीटा, क्यों दिल में बोझ लिये फिरती हो? चलो आज मैं तुम्हारे मन की बात कह ही देता हूँ।" "क्या?" रीटा ने आश्चर्य भरी नज़रों से रंजन को देखा।
"आई लव यू रीटा। मैंने अब तक इसलिये नहीं कहा था क्योंकि तुम चिंता और दुविधा के पाश में जकड़ी हुई थी।"
"तुमने अपने धैर्य और समझदारी से मुझे इस बंधन से मुक्त कर दिया। आई लव यू टू रंजन।" कहते हुए रीटा रंजन के गले लग गई।