Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Fantasy

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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

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अकाय - पार्ट 10

अकाय - पार्ट 10

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सत्यम और रवि के बातचीत का सिलसिला यों ही चल रहा था तभी सत्यम ने पूछा आप अकाय बनने के बाद मतंग बाबा से नहीं मिले?


रवि - "मिलने गया था लेकिन तबतक उनका देहावसान हो चुका था। उनसे मैं मार्गदर्शन लेना चाहता था कि उस शरीर की यात्रा तो डेड एंड पर आकर समाप्त हो गई लेकिन अब इस अकाय अवस्था का उपयोग कैसे किया जाए। उनसे मिलने के बाद मेरे स्वभाव में जो सकारात्मक बदलाव आया था वो अभी तक बना है। संयोग से मैं अभी तक किसी भी तांत्रिक के चंगुल में नहीं फंसा हूँ। उसका मूल कारण है कि मैंने अपने जीवनकाल की सभी आधी अधूरी इच्छावों को तिलांजलि दे दिया है। मतंग बाबा से मैंने जीवन को द्रष्टाभाव में जीना सिख लिया था।"


सत्यम - "यह द्रष्टाभाव क्या होता है ?"


रवि - "यह शरीर तुम्हारा है , तुम शरीर नहीं हो।यह शरीर तुमको नैसर्गिक व्यवस्था में एक साधन के रूप में प्राप्त हुआ है । भूख और सेक्स शरीर की जरूरत है आत्मा की नहीं । कोई भी पाप कर्म शारीरिक इच्छापूर्ति के लिए होता है आत्मा को उसमे संलिप्त मत होने दो। जो भी हो रहा है उसका मात्र साक्षी बनो सहयोगी नहीं ।"


सत्यम - "आपकी मृत्यु के बाद आपकी पत्नी और बच्चों का क्या हुआ?"


रवि - "मेरी पत्नी का मेरे जीवनकाल में ही मेरे जूनियर से अवैध संबंध था लेकिन मुझे ज्ञात नहीं था। अब वह उसका हमदर्द बनकर उसका सहयोग कर रहा है। अनुकंपा पर उसको उसी ऑफिस में नौकरी भी मिल गयी है।एक बेटा और एक बेटी अपने जीवन में सेटल्ड हो गए हैं। आज मेरी पत्नी का जो हमदर्द बना बैठा है उसी ने मुझे गोली मारी थी। जिंदा रहते मुझे नहीं मालूम था कि उन दोनों का कोई संबंध भी है। 

यदि मेरे अंदर द्रष्टाभाव नहीं उपजा रहता तो आज प्रतिशोध लेने के चक्कर में मैं किसी तांत्रिक के चंगुल में पड़ जाता । मेरे लिए आज मेरा परिवार भी अन्य जीवित मनुष्य की तरह है। शरीर समाप्त हो जाए और इच्छा अपूर्ण रह जाए तो वह मौत अधूरी है। शरीर जिंदा रहे और इच्छा समाप्त हो जाए तो समझो मोक्ष मिल गया,आप सफल मृत्यु के अधिकारी बन गए। वैसे इसकी संभावना नगण्य होती है क्योंकि इंसान को जबतक जीना है तबतक सीना है।

बातचीत में बोझिलता आ गयी थी । रवि के व्यक्तिगत सत्य को जानकर सत्यम भी उदास हो गया था । चारो तरफ घने बादल उमड़ घुमड़ रहे थे। बिजली भी चमक रही थी। बादल की तेज गर्जना माहौल को भयावह बना रही थी। उसमें तेज चलती हवा और रात का अंधेरा वातावरण को और डरावना बना रहा था। तभी सत्यम ने कहा चलो जरा वायु मार्ग पर चलकर इस वातावरण का आनंद लेते हैं क्योंकि जब जिंदा थे तो ऐसा माहौल बनते ही घर मे दुबक जाते थे। सत्यम का मन रखने के लिए रवि ने कहा चलो कुछ चहलकदमी करके आते हैं।"


दोनो अकाय हवा की लहरों पर तैर रहे थे। हवा की दिशा में दोनो भाररहित पंछी के छोटे पर की तरह उड़े चले जा रहे थे । इसी बीच झमाझम बारिस शुरू हो गई । इसने उनके रोमांचकारी उड़ान को और आनंद से भर दिया। दोनो अपनी मस्ती में आगे बढ़ रहे थे तभी रवि की नजर रेलवे ट्रैक पर गयी जिसके नीचे से मिटी बह चुका था और ट्रैक भी आगे टूट हुआ था। उसी ट्रैक पर सामने से ट्रेन आ रही थी। उसके पुलिसिया दिमाग ने अनुमान लगा लिया कि भयंकर रेल दुर्घटना होने वाली है यदि ट्रेन को नहीं रोक गया।


तभी उसके ध्यान में आया कि सत्यम तो किसी भी शरीर मे प्रवेश कर सकता है । उसने सत्यम का ध्यान टूटे ट्रैक की तरफ दिलवाया। फिर उससे कहा कि तुम ड्राइवर के अंदर घुसकर इस एक्सीडेंट को रोको नहीं तो सैकड़ो लोगों की जान जा सकती है। 

सत्यम ने ट्रेन की तरफ दौड़ लगा दी और ड्राइवर के शरीर में प्रवेश कर गया। फिर उसने इमरजेंसी ब्रेक लगाकर ट्रेन को रोक दिया। ट्रैन दुर्घटनाग्रस्त होने से बाल-बाल बच गया। अचानक बराक लगने से ट्रेन में से यात्री भी जग गए और सबको यह अनुमान हो गया कि कुछ तो बड़ी बात है नहीं तो ऐसा इमरजेंसी ब्रेक क्यों लगता ।


सत्यम ने तुरंत सतना स्टेशन मास्टर को घटना की सूचना दी । वहाँ से तत्काल आपातकालीन टीम घटनास्थल के लिए रवाना हो गई। कुछ जागरूक पैसेंजर उतरक ड्राइवर के पास यह जानने के लिए पहूँचे की ट्रेन रुकने का क्या कारण है। वहाँ का दृश्य देखकर सबका कलेजा मुँह को आ गया। यदि ट्रेन मात्र कुछ इंच भी बढ़ गई होती तो दुर्घटना होना तय था।उस समय ट्रेन का पाँच डब्बा नदी के पुल के ऊपर था । यदि दुर्घटना हो गयी होती तो पाँच डब्बे तो उफनती नदी में बह जाते। कुल मिलाकर एक बहुत ही भयंकर दुर्घटना टल गयी। मौका-ए -वारदात पर उपस्थित लोग भी और बाद में पहुँचे तकनीकी विशेषज्ञ भी इस घटना के टल जाने को एक चमत्कार या दैवी कृपा मान रहे थे। ड्राइवर प्रवीण यादव की हर तरफ जयजयकार हो रही थी। हर कोई उनकी समझदारी की तारीफ कर रहा था। उधर यादव जी को यह समझ में नहीं आ रहा था कि यह सब कैसे हुआ , उन्होंने क्यों ब्रेक लगाया ?

 तबतक सत्यम उनके शरीर से बाहर निकल गया था। रेलवे के ऊँचाधिकारी ने उसकी प्रशंसा की । मंत्रालय की तरफ से यादव के लिए इनाम की घोषणा हुई और अगले रोज सभी समाचार पत्र में यह खबर यादव के फोटो के साथ छपी। 


ड्राइवर के शरीर से बाहर निकलकर सत्यम रवि को ढूंढने लगा । लेकिन रवि का कहीं कुछ थाह नहीं मिल रहा था । वह हर डब्बे में उनको ढूंढने लगा। रवि सत्यम को S9 के बर्थ संख्या 45 पर मिला । वह अपलक एक बच्चे को निहार रहा था जिसकी उम्र तीन साल थी। रवि से सत्यम ने उस बच्चे में इतनी दिलचस्पी का कारण पूछा । रवि ने बताया कि यह मेरा नवासा है और खिड़की के तरफ मुँह करके जो औरत बैठी है वो मेरी बेटी है। फिर उसने सत्यम का आभार प्रकट किया कि उसके चलते यह ट्रेन दुर्घटनाग्रस्त होने से बच गयी। दोनो काफी देर तक वहीं पर चल रहे राहत कार्य को देखते रहे ।

रवि ने सत्यम को कहा तुम चले जावो मैं अभी कुछ समय अपने नवासे और बेटी के साथ बिताना चाहता हूँ। लौटते समय सत्यम के मन में यह विचार आया कि चलो मैं भी अपने घर और बस्ती को देखते चलूँ। एक बार देखूँ तो सही मेरे बिना मेरी वह दुनिया कैसे चल रही है, किसी को कोई फर्क पड़ा या नहीं ! 

सैलून वाले शर्मा जी प्यार भरी गाली सुनाने को खोजते होंगे । मुहल्ले के धोबी तो राहत मासूस करता होगा कि अब कोई आकर उसके सर पर नहीं बैठता है कि मेरा कपड़ा अभी का अभी आयरन करके दो। चौरसिया पान वाला सोंचता होगा एक उधार खाता की पनौती चली गयी। सबसे तो अपनी राधा को भर नजर देखूँगा आज उसको देखे लम्बा समय गुजर गया।

ऐसे ही बहुत सारी भूली बिसरी यादें और बातें उसको गुदगुदाकर गुजर रहीं थी। उस क्षण में वह भूल गया था कि वह अकाय है। उसको लग रहा था इतने दिनों बाद अपनों से मिलेगा तो कैसा लगेगा ! तभी चौराहे पर उसी रोड पर और लगभग उसी स्पॉट पर वह कार वाला उसी कार में आता दिखाई पड़ा जिसके टकर मारने से सत्यम की मृत्यु हुई थी।


क्रमशः ---------


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