YUG PURUSH

Romance Tragedy Fantasy

5.0  

YUG PURUSH

Romance Tragedy Fantasy

निशा

निशा

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निशा। यह शब्द जब मैं प्लेन में बैठा तब से मेरी जेहन में था और जब एयरपोर्ट से बाहर आया तब भी इसी एक शब्द ने मेरे दिल और दिमाग को जकड कर रखा हुआ था। प्लेन में चढ़ने से पहले से लेकर अभी एयरपोर्ट से बाहर निकलने के बाद तक मैं सिर्फ और सिर्फ यही सोचता रहा कि मैं क्या जवाब दूंगा निशा को। कि मैं क्यों एक हफ्ते बाद आया, कहां था मैं इतने दिन और यदि कोई जरूरी काम पर भी गया था तो मैंने उसे कॉल करके क्यों नहीं बताया कि मैं 1 हफ्ते बाद आऊँंगा। मेरा मोबाइल क्यों बंद था। ऐसे कई सवाल, उस एक शब्द के साथ मेरे अंतर्मन को छल्ली कर रहे थे।

निशा से मेरी इंगेजमेंट मेरे बिजनेस टूर के पहले ही हुई थी। वो सब मामलों में मेरे लिए ठीक थी वह एक अच्छे खानदान से थी। मुझसे प्यार करती थी और हम दोनों एक दूसरे को बचपन से जानते भी थे और सबसे खास बात ये कि निशा के पिताश्री का मेरे बिजनेस में बैकग्राउंड सपोर्ट होना और यदि निशा के पिता श्री का सपोर्ट हमें हमेशा के लिए चाहिए था तो उसके लिए मुझे निशा से शादी कर लेनी चाहिए थी। मेरे और निशा, दोनों के घर वाले इस रिश्ते से बहुत खुश थे सभी बेसब्री से उस दिन की राह देख रहे थे, जिस दिन निशा लाल जोड़े में सज संवर कर मेरी जिंदगी और मेरे घर में आने वाली थी।

पहले पहल तो मुझे भी कोई एतराज नहीं हुआ, शुरू शुरू में तो मैं भी यह मानता था कि निशा मेरे लिए एक परफेक्ट वाइफ साबित होगी। लेकिन इंगेजमेंट के बाद मैं जैसे बदल गया। मुझे निशा में कई कमियां नजर आने लगी। मैं उसकी छोटी से छोटी खामियों को लेकर दिल ही दिल यही सोचता कि यदि ऐसा ही इसने आगे भी किया तो मैं कैसे इसके साथ अपनी पूरी जिंदगी बिता पाऊँंगा ? और जैसे जैसे दिन बीतते गए ये ख्यालात मुझ पर हावी होते गया और इसी बीच मुझे एक हफ्ते के बिजनेस टूर के लिए देहरादून जाना पड़ा। जिस काम के लिए मैं देहरादून आया हुआ था वह काम अपने समय पर निपट गया लेकिन इसी दौरान मैं निशा से पूरे एक हफ्ते दूर रहा। मुझे इस बात का पक्का आभास हो गया कि निशा मेरे लिए किसी भी मायने में फिट नहीं बैठती। सिवाय एक के और वो था उसके पिताजी का हमारे बिजनेस को सपोर्ट।

" क्या मैं अपने बिजनेस के लिए अपनी पूरी जिंदगी एक ऐसी लड़की के साथ गुजार दूँ, जिसे मैं प्यार ही नहीं कर सकता ?

" यह सवाल इस टूर में मैं ना जाने कितनी बार खुद से कर चुका था और हर बार मेरा जवाब ना में होता।

"भाड़ मैं जाए निशा, उसका पैसे वाला बाप और यह बिजनेस। " जिस दिन मुझे वापस लौटना था उस दिन कुछ ऐसे ही ख्यालात मेरे सीने में चुभ रहे थे।

दिल कर रहा था कि कहीं दूर चला जाऊँं। निशा से दूर, उसके पैसे वाले बाप से दूर, इन सब से दूर। इतना पैसा तो मैंने कमा ही लिया था कि अपनी पूरी जिंदगी आराम से गुजार सकता हु। लेकिन घर वाले क्या कहेंगे ? वो लोगों को क्या जवाब देंगे, ऐसे ना जाने कितने सवालों ने मुझे घेर कर रखा हुआ था।

"तुम आ रहे हो ना। "एक हफ्ते पहले जब मुझे वापस आना था, तब मेरी फ्लाइट के लिए घंटा ही बचा था, जब उसने मुझे कॉल किया था।

" हां आ रहा हूं। "मैंने बेरुखी से जवाब दिया।  नफरत सी हो गई थी मुझे उससे, उसकी आवाज से, हर उस चीज से। जिसे वह पसंद करती थी। लेकिन क्यों। ?

इसका कारण शायद मैं खुद भी नहीं जानता था। दिल ही नहीं कर रहा था वापस दिल्ली जाने का। और इसी दौरान मैंने एक बड़ा फैसला लिया। मैंने अपना मोबाइल बंद किया और जिस होटल में रुका हुआ था वहां से अपना सब सामान लेकर निकल गया। वैसे प्लान के मुताबिक मुझे जाना तो एयरपोर्ट था लेकिन मैं गया नहीं। कई बार यह ख्याल आया कि घर वाले परेशान होंगे। पुलिस में रिपोर्ट दर्ज होगी वगैरह -वगैरह । उस वक्त मैंने सिर्फ खुद के लिए सोचा और वही किया जो मुझे ठीक लगा।

मैं पूरे 1 हफ्ते तक देहरादून की गलियों में यूं ही भटकता रहा और हर पल यही सोचता रहा कि कैसे मैं निशा से अपना पीछा छुड़ाऊँ। कैसे मैं, मेरी और निशा की शादी होने से रोक दूँ। पूरे एक हफ्ते देहरादून में भटकने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा कि मैं दिल्ली जाकर निशा और उसके रईस बाप को साफ कह दूंगा कि मैं निशा से शादी नहीं कर सकता। और इसके बाद उनकी जो भी प्रतिक्रिया होगी वह सह लूंगा। लेकिन अब मैं निशा से किसी भी हाल में शादी नहीं करूंगा, यह मैंने तय कर लिया था।

" अरमान।  "एयरपोर्ट से बाहर निकलते ही किसी ने मेरा नाम पुकारा

" निशाआआआ। तुमममम। "उसको एयरपोर्ट के बाहर यूं अचानक देखकर मैं बुरी तरह चौका।

जिस नाम ने, जिस शब्द ने कई दिनों से मेरे अंदर तूफान मचा रखा था।  वह आज मेरे सामने खड़ी थी और मुझे वापस दिल्ली मे देख कर, उसकी आंखों में खुशी थी। लेकिन मेरी आंखों में दुख और नफरत के सिवा कुछ भी नहीं था और मेरी लाचारी इस हद तक थी कि मैं उससे किसी पर जाहिर तक नहीं कर सकता था।  मुझे एयरपोर्ट के बाहर देखते ही वह दौड़ कर मुझसे लिपट गई।

" कहां थे इतने दिन।  "वो जोर से लिपट कर मुझसे पूछी। उसकी आंखों में मेरे लिए फिकर और प्यार दोनों था।

लेकिन मेरी आंखों में उसके लिए सिर्फ नफरत थी। गुस्सा तो उस पर बहुत आया, लेकिन मैंने अपने गुस्से का गला घोट कर उसे शांतिपूर्वक खुद से अलग किया।

" तुम्हें कैसे मालूम हुआ कि मैं आज। अभी आने वाला हूं। मैंने तो किसी को खबर तक नहीं दी थी। "

" वो मैं अपने एक दोस्त को छोड़ने आई थी और यहां तुम्हें देख लिया। " वापस मुझसे लिपटकर वह बोली। "लेकिन तुम थे कहां इतने दिन। ? तुम्हें जरा भी अंदाजा है कि तुम्हारे ऐसे गायब होने से घर वाले कितने परेशान हुए। मेरी तो जैसे जिंदगी गुजर गई थी तुम्हारे बिना। मैं हर एक पल यही दुआ करती रही कि तुम वापस आ जाओ। पुलिस ने भी बहुत कोशिश की लेकिन तुम्हारा कहीं कुछ पता नहीं चला और अपना मोबाइल क्यों बंद कर रखा है।"

वो और भी बहुत कुछ बोलती उस वक़्त, यदि मैंने उसे रोका ना होता तो।

"हो गया।  अब मैं आ गया हूं ना। बस बात खत्म। "

मेरे बात करने के लहजे से वह थोड़ा हैरान हुई और मेरी तरफ देख कर बोली

"कोई प्रॉब्लम है क्या। "

" प्रॉब्लम तो तू ही है, तू चली जाए तो सारी प्रॉब्लम के आगे दि ऐंड का बोर्ड लग जाएगा। "दिल किया कि गला फाड़ कर उसे सब बोल दू। लेकिन मैं बोल नहीं पाया। क्योंकि उसके रईस बाप का मुझे सपोर्ट जो चाहिए था

" कोई प्रॉब्लम नहीं। सब ठीक है"

" फिर घर चलो जल्दी से।  सब बहुत खुश होंगे तुम्हें देखकर। "वह एक बार फिर खुशी से चहकी

" तुम्हारी कार कहां है। ?"

" मैं और मेरी फ्रेंड टैक्सी में ही यहां तक आए हैं मैंने अपनी फ्रेंड को कहा भी कि मैं उसे अपनी कार में छोड़ दूंगी लेकिन वह थोड़े पुराने किस्म की मानसिकता वाली है। कहती है कि उसे, मेरी तरह बडी -बड़ी गाड़ियों में बैठने का शौक नहीं है और यदि मुझे उसके साथ एयरपोर्ट तक आना है तो उसके साथ टैक्सी में आना पड़ेगा। वैसे अच्छा हुआ जो मैंने उसकी बात मान ली। तुम भी तो आ गए।  मैं बता नहीं सकती कि मैं कितनी ज्यादा खुश हूं तुम्हें वापस देखकर। अरमान !"

" काश कि मैं भी तुझे बता सकता कि मैं कितना दुखी हूं तुझे देखकर। "एक बार फिर मन में आया कि यह सब उसे बोल दू, लेकिन जुबान ने इस बार भी साथ नहीं दिया।

मैंने अपना मोबाइल ऑन किया और ऑफिस पर एक मैसेज छोड़ दिया कि मैं वापस आ गया हूं और फिर मैंने अपना मोबाइल वापस बंद कर दिया। मैं जान गया था कि अब सब का क्या रिएक्शन होने वाला था।  सभी तरह तरह के सवाल पूछ कर दिमाग की दही कर देते। इसलिए मैंने फोन बंद कर दिया। मैंने एक टैक्सी वाले को बुलाया और उसे दिल्ली के बाहर बने अपने फॉर्म हाउस का पता देकर निशा के साथ टैक्सी में बैठ गया।

" घर क्यों नहीं चलते, कितना इंतजार कर रहे होंगे तुम्हारा। "एक बार फिर वही आवाज मेरे कानों में पड़ी जिसे मैं सुनना पसंद नहीं करता था।

" मैं कुछ समय अकेले बिताना चाहता हूं। "

" अरमान , आखिर बात क्या है। ? तुम इतने मुरझाए हुए क्यों हो"

" मैंने कहा ना। कोई बात नहीं है। "अबकी बार मैंने थोड़ा गुस्से में बोला। जिससे निशा चुप हो गई और खिड़की के बाहर देखने लगी।

इसके बाद पुरे रास्ते निशा कुछ नही बोली। वो खामोश ही रही। मैने एक - दो बार उससे अपनी दिल की बात कहनी भी चाहिए, पर उसकी बेरुखी देख मैने अपना मन बदल लिया। और सोचा की फार्महाउस में ही सीधे कह दूंगा। वरना अभी यदि यही मेरे मन की बात सुन यदि वो रोने लगी तो। ? हल्ला करने लगी तो। ? इसे कौन संभालेगा। इसे छूना तक पसंद नही है अब मुझे।

" यह फार्महाउस मुझे भूतिया लगता है। " टैक्सी से उतरते ही वह बोली और एक बार फिर मैं गुस्से में भर गया और एक बार फिर सोचने लगा कि जिसके साथ मै एक पल शांति से नहीं बिता सकता उसके साथ मैं अपनी पूरी जिंदगी क्या खाक बिताऊँंगा।

टैक्सी वाले को पैसे देकर मैं फार्महाउस के गेट की तरफ बढ़ा। निशा ने फिर वही बात दोहराई कि उसे यह फार्महाउस भूतिया लगता है।

" निशा। बस भी करो। अब। " मैंने तेज आवाज में कहा।

और मेरे कड़े बर्ताव से वो एक बार फिर चुप हो गई और चुपचाप मेरे साथ फार्म हाउस के अंदर आ गई। फार्महाउस के अंदर आने के बाद मैं एक कुर्सी पर बैठा, पर निशा वही मुझसे थोड़ी दूर में खड़ी रही। वो अब शायद मुझसे नाराज़ हो चली थी और यदि मेरा वश चलता तो वो सारी उम्र मुझसे नाराज़ ही रहे। वैसे भी उससे बात कौन करना चाहता है। ? मैं तो बिलकुल भी नही।  पर फिर भी बात तो करनी ही थी। उसे ये तो बताना ही था की। भाड़ में जाए वो और उसका रहीस बाप। श्री अरमान को अब उनसे कोई मतलब नही। इसलिए एक आखिरी बार बात तो करनी थी, उससे। इसलिए अपने शरीर की पूरी हिम्मत जुटाकर मैने उससे फाइनली वो कहने का निर्णय लिआ। जो मुझे बहुत पहले कह देना चाहिए था।

" निशा। "धीमें स्वर में सिगरेट जलाते हुए मैने उसका नाम पुकारा।  

" बोलो। "वो भी धीमें स्वर में बोली।

मैंने, निशा को सब सच बताने का ठान लिया था । यही सही मौका था, जब मैं उसे सब बता देता कि मैं उससे ना तो प्यार करता हूं और ना ही शादी कर सकता हूं।  मैं उसे अपने एक हफ्ते तक गुमनामी में रहने का कारण बताना चाहता था। बिना इसकी परवाह किए की उसकी क्या प्रतिक्रिया होगी। बिना इसकी परवाह किए कि यह सब जानने के बाद निशा का अमीर बाप।  मुझे और मेरे बिजनेस का क्या हाल करेगा। बेशक वो मुझे कंगाल कर देगा। लेकिन फिर भी मैंने सच बताने का निर्णय लिया।

" अरमान। " मेरे कंधों को पकड़कर हिलाते हुए वो बोली। "तुम कुछ कहने वाले थे। "

" बात यह है कि। " इतना कहकर मैं थोड़ी देर के लिए रुका और फिर खुद को मजबूत करके एक सांस में बोला।

"निशा, मैं नहीं जानता कि तुम्हें सुनकर कैसा लगेगा और ना ही मुझे इसकी कोई परवाह है कि तुम पर क्या बीतेगी। पर सच तो ये है कि मैंने तुमसे कभी प्यार नहीं किया और ना ही मैं तुमसे शादी करूंगा।  मैं 1 हफ्ते देरी से दिल्ली इसीलिए आया। कुछ देर पहले तुमने मुझसे पूछा था कि मेरा चेहरा मुरझाया हुआ क्यु है।  मैं इतना उदास क्यों हूं। अब शायद तुम्हें मालूम चल गया होगा कि तुम ही उसकी वजह हो। तो प्लीज, तुम मेरी जिंदगी से दूर चली जाओ। ताकि मैं खुश रह सकूं। "

इतना बोल कर मैं चुप हो गया और निशा के जवाब का इंतजार करने लगा। पर वो कुछ नहीं बोली और ना ही अब मेरे पास कुछ बोलने के लिए बचा था। हम दोनों के बीच खामोशी छाई हुई थी।

" अरमान । "तभी, फार्महाउस के बाहर किसी ने मेरा नाम पुकारा। मैं अब भी निशा के जवाब का इंतजार कर रहा था।

मैने सोचा था की उसकी आँखों में आंसू होंगे, उसका चेहरा गुस्से से लाल होगा और वो मुझे हज़ारो गालिया देगी की। मैने उसका इस्तेमाल किया। लेकिन ऐसा कुछ भी नही हुआ। बिलकुल भी नही। वो पहले की तरह ही शांत खड़ी मुझे निहार रही थी। इतने में किसी ने फिर से मेरा नाम पुकारा।

"मैं बाहर देख कर आता हूं। "निशा को इतना बोलकर मैं बाहर जाने लगा, इस दौरान निशा वहां एक सोफे शांत बैठ गई

" सॉरी निशा, पर यही सच है। "बाहर जाते हुए पलटकर मैं निशा से बोला।

" अरमान । कहां था इतने दिन। मुझे कुछ बताना है तुझे। " निशा का भाई डेविड फार्म हाउस के बाहर था।

"मुझे भी कुछ बताना है, तुझे। पर तुझे कैसे पता चला की मै यहाँ हु?"

"ऑफिस में तूने मेसेज छोड़ा था वही से। "

"तु कुछ बताने वाला। "

मुझे बीच में ही रोक कर, निशा का भाई मुझसे लिपट गया और रोते हुए बोला।

""अरमान , निशा। अब इस दुनिया में नही रही। "

"क्याआआआ। बोल रहा है। "तुरंत उसे दूर करते हुए मै बोला।

"जब तूने ऑफिस में अपना मेसेज छोड़ा की तु वापस आ गया है तो, मैं तुरंत यहां तुझे बताने आ गया। निशा का एक्सीडेंट हुआ था, एयरपोर्ट से कुछ दूर। एक हफ्ते पहले, ठीक उसी दिन जिस दिन तू देहरादून से वापस आने वाला था।  वो तुझे एयरपोर्ट लेने जा रही थी, उसकी कोई फ्रेंड भी साथ में थी।  जिसे निशा एयरपोर्ट छोड़ने जा रही थी। "इतना बोलते हुए डेविड फिर मुझसे लिपट गया

"चुतिया है तु। दिमाग़ मत ख़राब कर। "

उसे खुद से दूर करके मैं अपनी पूरी ताकत लगाकर फार्म हाउस के अंदर भागा, और उस सोफे की तरफ देखा जहां कुछ देर पहले निशा थी, पर अब वहां कोई नहीं था। मैंने पागलों की तरह निशा को आवाज दी। कि देखो तुम्हारा भाई क्या बोल रहा है। मैंने पागलों की तरह निशा को पूरे फार्म हाउस में ढूंढा।

लेकिन वह नहीं मिली। मानो वो,कभी वहां थी ही नहीं। दिल में अब उसके लिए दर्द था, जिसके लिए कुछ देर पहले नफरत थी। मैं उसे अब अपने करीब देखना चाहता था जिसेसे मैं कुछ देर पहले दूर जाना चाहता था। पूरे फार्म हाउस में पागलों की तरह ढूंढने के बाद भी जब वह नहीं मिली तो मै वापस उस सोफे के पास पहुंचा, जहां मैंने आखरी बार उसे देखा था। फिर मेरी नज़र सामने उस दीवार पर पड़ी। जहा कुछ लिखा हुआ था। पहले तोह मैने ध्यान नही दिया पर। फिर जब मैने दीवार में लिखें उन शब्दों को पढ़ा तो।

" तेरी उस हाँ में भी मैं खुश थी, और तेरी इस ना में भी मैं खुश हूं।

जब जिंदगी थी तब भी तुझसे मोहब्बत थी, और आज मरने के बाद भी तुझसे मोहब्बत है। "

दिल में, दिमाग में, पूरे जेहन मे। एक बार फिर वही नाम था जो पिछले कई दिनों से मेरे अंदर घूम रहा था। फर्क सिर्फ इतना सा था कि पहले मुझे उस नाम से नफरत थी और आज एक पल में उसके लिए। दुनिया भर का प्यार उमड़ आया था। मैं अब उसे अपने करीब पाना चाहता था, मैं उसे बताना चाहता था कि मैं उससे कितना प्यार करता हूं। मैं उससे माफी मांगना चाहता था। मैं उसके साथ अपनी पूरी जिंदगी बिताना चाहता था। मैं उसे एक बार फिर से छूना चाहता था, उसको देखना चाहता था। अपनी पूरी ताकत के साथ इस आस में कि वह फिर वापस आ जाए मैं चिल्लाया।

"NISHAAAAAAA। "



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