अपरिचित
अपरिचित
अहाना दसवीं कक्षा मे पढ़ने वाली छात्रा थी। उसके घर से विद्यालय बहुत दूर था, लगभग दो घंटे लगते थे एक दिन जब वो विद्यालय से घर आ रही थी, रास्ते मे एक कपड़े की दुकान थी जहा उस दिन भयानक आग लगी थी, आग इतनी भयानक लगी थी की सारे यातायात के साधन उधर से गुजरने से रोक दिए गए थे।
जब आग थोड़ी शांत हुई तब जाकर गाड़ी - बस चलना शुरू हो गया, उस दिन घंटों इंतजार के बाद एक एक बस आ रही थी। एक व्यक्ति बहुत देर से अहाना को देख रहा था, उस दिन अहाना के दोस्त भी नही थे उसके साथ, अक्सर उसके दोस्त उसे बस स्टैंड तक पंहुचा कर उसे बस में बैठा कर जाते थे, मगर उस दिन वो विद्यालय आये ही नहीं थे, तो अहाना को अकेले ही जाना था।
जो अनजान व्यक्ति अहाना बहुत देर से देख रहा था, वो अहाना के पास आया और उससे उसके बारे मे पूछने लगा तो अहाना ने बस अपना नाम और उसका विद्यालय है यहाँ यही बताया, फिर उसने उसका पता पूछा, और कहा मैं तुम्हे तुम्हारे घर पंहुचा दूंगा। अहाना उस व्यक्ति को जानती नहीं थी तो नहीं बताया और बोला अंकल मै चली जाउंगी, आप आपको जहां जाना है चले जाओ, पर वह व्यक्ति गया नहीं, जब तब बस नहीं आयी वह वही खड़ा रहा।
अहाना को वो व्यक्ति ठीक नहीं लग रहा था तो उसने गलत बस को रोका उस बस मेंमे चढ़ गयी ये देखने के लिए कि वो व्यक्ति भी उस बस मे चढ़ता है की नहीं, वो व्यक्ति भी उस बस में चढ़ गया और ठीक अहाना के पीछे खड़ा हो गया फिर उसने बोला "बेटा मैं तुम्हारी भी टिकट कटा देता हूँ तुम्हें उतरना कहां है?" अहाना ने कहा अंकल मै अपना टिकट काटा लूंगी आप अपना काटा लो।
फिर अहाना ने टिकट वाले से पूछा भैया यहाँ बस जाएगी, टिकट वाले ने बोला नहीं, फिर अहाना ने कहा फिर हमें यही उतार दो और वो वही उतर गयी। वो व्यक्ति उसी बस में ही रह गया।