Pratima Devi

Children Stories Drama

4.8  

Pratima Devi

Children Stories Drama

बचपन

बचपन

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560


बंटी--- फ़िर गये तुम पानी में !

सारे कपडे़, जूते ---

कौन धोयेगा रोज-रोज।

इस लड़के ने तो ----परेशान करके रख दिया है।

कितना भी कहो, कुछ समझता ही नहीं।

मालिनी अपने बेटे, बंटी का हाथ पकड़े बड़बड़ाती हुई चली जा रही थी। पकड़े हुए क्या! लगभग खींचते हुए--।

जब से बारिश होनी शुरू हुई थी, मालिनी अपने बेटे बंटी की इस आदत से बहुत परेशान हो गई थी। सुबह स्कूल छोड़ने जाते हुए ढेरों हिदायतें देतीं और वापसी पर पानी से बचाते हुए एक-एक कदम रखते हुए लाती। पर उनका सात साल का बेटा बंटी, माँ की नज़र बचाते ही पास में सड़क के छोटे गड्ढे पर छपाक से छलांग लगा देता और खूब खुश होता। जब माँ डाँटती, तो अपनी तिरछी निगाहों से किसी दूसरे गड्ढे को ढूँढने लगता और फ़िर मौका मिलते ही- एक और छपाक!

 तब उसके गालों पर सटाक से मालिनी की उँगलियाँ छप जाती। बेटा तो डर से सहम जाता, पर मालिनी अपने बेटे बंटी के गालों पर छपी उँगलियों को देख तड़प उठती और रोने लगती।

अगली सुबह तक तो उसका असर बंटी पर दिखता। लेकिन सुबह स्कूल जाते हुए पानी के गड्ढे देख, मन मचल उठता और लौटते हुए फ़िर वही सब क्रिया दुबारा दोहराई जाती।

ऐसे ही कई दिन गुजर गये। मालिनी रोज ही बंटी से नाराज होती और कभी-कभी थप्पड़ मार देती। पर बंटी! जैसे चिकना घड़ा। मार खाता, डाँट सुनता। पर पानी पर छपाक करना नहीं भूलता।

ऐसे ही एक दिन मालिनी, बंटी का हाथ खींचते हुए चली जा रही थी। तभी उनकी बचपन की सहेली दिशा ने उन्हें देखकर आवाज़ दी। मालिनी, दिशा को देखकर सब भूल गई और ख़ुश होते हुए दिशा के गले लग गई।

दिशा की पाँच साल की बेटी आहना, बंटी को देखने लगी। उसके जूते, कपड़े, बस्ता, सभी कीचड़ से सना हुआ था। यह देख आहना ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगी। मालिनी को बड़ी शर्मिंदगी महसूस हो रही थी। तभी दिशा ने मालिनी का ध्यान अपनी बातों पर लगा दिया। बातें करते हुए दोनों यह भी भूल गई कि उनके हाथों को थामे दोनों छोटे बच्चे भी चल रहे हैं। अचानक मालिनी ने सड़क किनारे पानी से भरा छोटा-सा गड्ढा देखा और फ़िर दिशा को। दोनों मुस्करायी और हाथ पकड़कर गड्ढे में कूद पड़ी। एक आवाज़ आयी- छपाक ! और दोनों उछलते हुए हँस पड़ी।


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