पहाड़ का दर्द!
पहाड़ का दर्द!
तुमने ऊँचे-ऊँचे पहाड़ तो देखे ही होंगे। जिनकी खूबसूरती से तुम भी आकर्षित हुए होंगे। ऐसा महसूस भी हुआ होगा, जैसे मैं तुम्हें शिद्दत से बुला रहा हूँ।
पहाड़ हूँ मैं! मेरी खूबसूरती तुम्हें न छू पाये, यह असम्भव है। जब तुम मुझे दौड़कर गले लगाना चाहते हो, तुम्हारी वो चमकीली आँखें मुझे अगाध ख़ुशी से भर देती हैं। जब मेरी चमकती बर्फ़ीली, सुनहरी चोटियों को एकटक ख़ुशी से तुम निहारते हो, तो मेरा हृदय तुम्हारे प्रति स्नेह से भर उठता है।
जब तुम मेरे लहलहाते सीढ़ीदार खेतों में दौड़कर आते हो, उसके सौंदर्य को देख-देख कर मोहित होते हो। तो उस समय मैं अति प्रसन्नता के अतिरेक होकर तुम्हें आशीष देता हूँ।
जब तुम दूर तक जाती मेरी टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडियों से चलकर, तेज़ी से गिरते झरनों, कल-कल कर इठलाती नदियों को छूकर नाचने-गाने लगते हो। जब तुम मीठे पानी के स्रोतों के ठंडे-ठंडे पानी को पीकर अपनी प्यास बुझाते हो, तो मेरी आँखें ख़ुशी से झिलमिलाने लगती हैं। तुम्हारी आँखों में मुझे अपना अक्स देख कर एक अलग एहसास होता है।
इस दुनिया में शायद ही ऐसा कोई हो, जो मेरे सौंदर्य का दीवाना न हो। मेरा प्यार तुम्हें मीलों का रास्ता तय कर मुझ तक पहुँचने की लालसा जगाता है। जब तुम मेरे पास आ, मेरी गोद में बैठ, मेरे ही सौंदर्य में डूब जाते हो; तो वह पल मुझे मेरे वज़ूद का एहसास कराता है।
वो तुम ही तो हो जो मेरे अनुपम सौंदर्य के साक्षी बनकर पर्यटक/ सैलानी के रूप में घरों से दूर आकर मेरे सौंदर्य का अमृत पान करते हो। वो तुम ही तो हो, जो मेरे प्यार में इस तरह पागल हो, कि तुम अनेकों कष्टों को झेलते हुए भी, फ़िर से प्रसन्न होकर नई ऊर्जा के साथ अपने घरों को लौट जाते हो।
जहाँ मैं, अपनी सुंदरता से तुम्हें रोमांचित करता हूँ। वहीं अपने अनेक रहस्यों से तुम्हें आकर्षित भी करता हूँ। मैं अनेकों रहस्यों को ख़ुद में सजोये हुए हूँ, जो आज भी शोध का विषय हैं। तथा मैं तुम्हारे लिए शोध का एक ज़रिया हूँ।
मेरा और तुम्हारा प्यार! सबको जीना सिखाता है। जहाँ मैं तुम्हारे लिए रोज़गार उपलब्ध कराता हूँ, वहीं तुम्हें सिर उठाकर जीने की प्रेरणा देता हूँ।
ये मेरा, तुम्हारे लिए प्यार ही तो है, जो मैं, तुम्हें शांति की खोज में अपनी ओर खींचता हूँ। ईश्वर की प्राप्ति हेतु तपस्या के लिए अपनी गुफ़ाओं में शरण देकर तुम्हें एक नया मार्ग देता हूँ। कई विलक्षण औषधियों को तुम्हें सौंपकर प्रसन्न होता हूँ।
'मेरा और तुम्हारा प्यार!अंतहीन है। जिसे शब्दों में ढालना लगभग असंभव है। फ़िर भी तुम्हारा स्वभाव! जो हार मानना ही नहीं चाहता। जीतना तुम्हारा स्वभाव है। अपने प्यार से तुम्हारे प्यार को जीतने की चाह में आज मैं किस क़दर झुलस रहा हूँ।
ऐ मानव! इश्क है मुझे तुझसे। तेरी चाहत में आज मैं जल रहा हूँ। मेरा वज़ूद खो रहा है। तेरी ग़ुस्ताख़ियाँ, मुझे तिल-तिल मार रही हैं। तुमने अपने आराम के लिए मेरे सीने को छलनी कर डाला।मेरा अस्तित्व! मेरा सौंदर्य खत्म हो रहा है।
तुम्हारी लायी गयीं पॉलीथीन की थैलियाँ, प्लास्टिक की बोतलें मुझे हर क्षण मिटा रही हैं।
मेरे ग्लेशियर पिघल रहे हैं। मैं तड़पकर उन्हें पल-पल मरते देख रहा हूँ। मेरी नदियाँ दूषित हो रही हैं।
मैं तन्हा-सा, तेरी नादानियों को निहार रहा हूँ। न जाने तुम कब मुझे मिटाने लगे!
और मै! तुम्हारे प्यार में पागल, तुम्हें चाहकर भी रोक नहीं पा रहा हूँ। हे मानव! मेरे लिए नहीं, तो ख़ुद के लिए मेरे अस्तित्व की रक्षा करो। मैं तुमसे विनती करता हूँ कि तुम मेरे सौंदर्य को बचा लो। ताकि मेरा सौंदर्य तुम्हें नित नये-नये आयाम दे।
"बस एक कदम, मेरे क़रीब आकर देख।
तेरी आरज़ू में, ख़ुद को मिटाने चला हूँ।
तन्हा हो गया हूँ मैं, तेरी नादानियों से।
तेरी ज़ुस्तज़ू में ख़ुद को, बहाने चला हूँ।"