बेटी प्यारी लेकिन बहु नही.
बेटी प्यारी लेकिन बहु नही.
आज भी अपने समाज मे दोहरी सोच है बहू और बेटी मे l दोनो में सिर्फ शब्दों का ही अंतर नही हें l विचारो मे भी है l बहू को बेटी की नजर से नही देखा जाता है, बहू को हमेशा संस्कार की बेडियो मे बांधा जाता है, और बेटी को बिना रोखठोक के स्वतंत्रता दी जाती हैl फिर बहू को क्यू नही ? बेटी की गलती को जैसे माफ किया जाता हैं वैसे बहू को गलती क्यू नही?
ऐसेही एक छोटीशी घर घर कहानी हें,शालिनी की शादी हो गई नई नई वो जब वो बहु बनके आई थी तब उसको घुंघट पल्लू की आदत डालने में बहुत परेशानी हुई l बडे बुजुर्ग के सामने बिना सर पर पल्लू वो नही जा सकती थीl कपडे के पहनावा मे भी बंधन थे l
कुछ गलत हो उसके बारे मे बोलने के लिए किसी का पक्ष लेना न्याय के लिए उसको इजाजत नही थी बल्की शालिनी एक पढि लिखी की आझाद विचार वाले थी, शालिनी के माता पिता खुले विचारोके थें l
फिर भी उसने ससुराल मे आके धीरे धीरे खुद को बदल लिया l कुछ अपनी पसंद से कुछ ना पसंद होके भी उसने अपना लिया l कुछ रूढी परंपरा बदलने की कोशिश उसने की, सबने विरोध जरूर किया तुम बहु हो बहु का फर्जं निभाना है, और घर की रूढी परंपरा को तुम्ही आगे बढाना है l पुराने सोच बदलना इतना आसानं नही था,
लेकिन जब शालीनीं की ननंद की शादी हो गई,तब शालिनी क ने ननंद को अपने ससुराल मे कोई रोक टोक नही थी l कोई दवाब नही था, और नही कुछ पहनावे पर... एक बहू नही बेटी बनकर ससुराल मे रहती थी ,तब शालिनी की ननंद अपनी माँ और बाबूजी को बोली ये दोहरी सोच क्यू???
जब मै स्वतंत्रता से रहती हूं आपको कोई परेशानी नही, तो भाभी लिये क्यू??भाभी को भी तो हक है अपने जिंदगी अपनी तरीके से जीने का l जैसे मुझे है l मेरी आधुनिकता से आपको कोई परहेज नही l तो भाभी के साथ असा व्यवहार क्यू ??
भाभी बेटी बनकर क्यू नही रह सकती? आप बहू को बेटी की नजर से क्यू नही देखती जो स्वतंत्रता मुझे अपने ससुराल मे मिली है, वो भाभी को अपने ससुराल में क्यू नही?? ये भेद क्यू? ये क्यू का जवाब आपको खुद कोई ढूंढना है l
माँ आप सास बनकर कर नही माँ बनकर कर रहोl तो भाभी बहू नही तो बेटी बनकर कर रहेगी l
तृप्ती देव
भिलाई छत्तीसगड