छुटकल
छुटकल
एक प्यारी सी लड़की थी उसका नाम छुटकल था वह सारे घर की प्रिय बेटी थी। उससे ही सारे घर की रौनक थी। घर के सदस्यों का इशारा हुआ नहीं कि छुटकल ने पलक झपकते ही वो काम पूरा किया। पूरे घर में दिनभर छुटकल का नाम ही गूँजता था दादा ने कहा छुटकल मेरा चश्मा ढूँढ कर दो तो छुटकल फौरन दादा जी का चश्मा ढूँढकर उन्हें देती थी।
दादी ने कहा बेटा छुटकल हमें पूजा के लिए फूल तोड़ लाओ। तो छुटकल तुरन्त ही जाकर फूल तोड़कर ले आती थी। पापा ने कहा बेटा छुटकल मुझे एक गिलास ठंडा पानी तो ले आओ तो छुटकल शीघ्र ही जाकर ठंडे पानी का गिलास भर लाती थी। मम्मी ने कहा छुटकल देखो तो जरा बाहर कौन आया है तो छुटकल झट से बाहर जाकर मम्मी को आगन्तुक के बारे में बता देती थीं। भाई ने कहा छुटकल मेरे साथ गेंद खेलो तो वह भाई के साथ गेंद खेलने लग जाती थी। काम वाली बाई आते से ही छुटकल का नाम पुकारा करती थी और उससे मीठी - मीठी बातें किया करती थी जैसे कि छुटकल क्या बना बेटा क्या खाया बेटा , कितना पढ़ा बेटा इत्यादि - इत्यादि। इन्हीं गुणों के कारण छुटकल पर उपहारों / खिलौनों की भरमार रहती थी। इस कहानी से हमें निम्न शिक्षा मिलती हैं
( 1 ) बच्चों को आज्ञाकारी होना चाहिए। ( 2 ) सेवाभावी बच्चों को सभी चाहते हैं। ( 3 ) आज्ञापालन के बल पर सबका चहेता बना जा सकता है।