Krishna Khatri

Abstract

2.5  

Krishna Khatri

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दांत खट्टे ,,,,,,,,, !

दांत खट्टे ,,,,,,,,, !

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"अरे जगन भैया , कल सुबह से सो रहे हो ,,,,, आज दूसरे दिन की शाम के सात बजे हैं ,,,,, सब ठीक तो है ?" ललन दरवाजा पीटने के साथ बोले भी जा रहा था ,,,,, इतने में पास-पड़ोस के और लोग भी इकट्ठे हो गए ! गजेंद्र ने कहा - दरवाजा तोड़ देते हैं ,,,,, 

लेकिन ,,,,,

"लेकिन क्या,,,,, ? सब मिलकर बनवा देंगे ,,,, अभी जरूरी है जगन !" 

"हां गजेंदर भया सही कह रहे हो ,,,,, तोड़ देते हैं" ,,,,,,,,, अंदर जाकर देखा अंगूर की दो पेटी खुली पड़ी थी उनमें थोड़े कच्चे और सड़े हुए अंगूर पड़े थे ! पूरी खोली में खट्टा , सड़ा हुआ भभका फैला‌ हुआ था और जगन घोड़े बेचकर सो रहा था ! उसे झंझोड़कर उठाया , हड़बड़ाता हुआ उठा ,,,, कुछ देर तो सकते में रहा ,,,,, थोड़ा भान होने पर - "का हुआ ?पांच बज गए का ? ससुरी बड़ी नींद आ रही है ,,,,, चलो हटो , हमें काम पर जाना है !"

"कौन से काम पर ,,,, ? आज छुट्टी बा !"

"छुट्टी तो सुकरबार को होती है ना ,,,, आज काहे ?'"

"आज ही सुकरबार है ,,तो ,,,,,, !'

"अरे भैया , हम का दो दिन से सो रहे थे ?"

"हां ,,,,,, और नहीं तो क्या ,,,,,, ये सड़े अंगूर ,,,,,, ?"'

"हम परसों रात को काम से लौट रहे थे रास्ते में फरूट वाला आवाज लगा रहा था - सस्ते अंगूर ले लो , सस्ते अंगूर ,,,,, पहली बार बीस रुपए में पेटी ,,,,, कहां खा पाते हैं ,,,,, कभी पाव भर ले लिया तो छ लोगों में चार-चार दाने आते हैं , अभी तो बच्चे भी गांव गए हुए हैं जी किया - जी भर के खा लें ,,,,, लालच के मारे ले लीए दो पेटी ! सोचा इतने सस्ते फिर कहां मिलेंगे ,,,,, ! वो तो उसको नासिक के मामा ने अपनी खेती से भेजे थे ,,,,, सो बेच रहा था ! परसों रात दो बजे से खाना शुरू किया तो सुबह आठ बजे तक खाते रहे ,,,,, भैया , इतने खट्टे कि हमरे दांत अभी भी खट्टे हैं ,,,,,,,, कुछ खराब भी थे पर खाते गए ,,,,, जी भर गया ,,,,,, ऊब गया ,,,,, अब कभी नहीं खाऊंगा ,,,,,इन अंगूरों ने नशा भी दे दिया ,,,,, लेकिन"





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