Krishna Khatri

Others

4.6  

Krishna Khatri

Others

जज़्बा !

जज़्बा !

14 mins
903


                                                


         

 "लाडी इंयां कोनी चाले ,,,,,, बहु है तो बहु बण के रह , म्हारे जमाने में तो ऐसो कुछ नहीं थो ! लछु के बाबूजी के सामने कदी भी घूंघटो कोनी छोड्यो भले ही कोई टाबर ही क्यों नहीं होतो तब भी मैं तो घूंघटो काढ़के राख्यो और तू ,,,,,,,,ओहो रामजी,,,,,,, किंयां बोलूं ? के बोलूं ? मने तो लाज आवे ,,,,, अरे भाग री भरी ,,,,, थोड़ी तो लाज - सरम राख , थारी सासू हूं म्हारे सामने तो लछिया से घूंघटो काढके राख्या कर ,,,,, इंयां तो मने कोनी सावे बाई !"

"मासा मैंने देखा नहीं ,,,,, आपको तो पता ही है मैं तो हमेशा घूंघट निकालती ही हूं !"

"आगे से ध्यान राखे ,,,,,, तने पतो है जब लोग थारी तारीफ करे , म्हारी छाती फूल जाय ! जरे मैं ,,,,,,, मने किती नसीबवान समझूं और तू समझणी हो र गेलापणो करे ! खबड़दार जो और कदी इंयां करियो !"

" क्यों रे अम्मा , सुबह-सुबह इब के हो गया ? क्यों हल्ला कर रही हो ? तबीयत तो तेरी ठीक है ना ? "फिर पत्नी को आवाज देता है - "पूजा मेरे और अम्मा के लिए चाय बणादे , साथ में थोड़ा सा भुजिया भी ले आइयो और हां आज कंवरसा लाली व बच्चों के साथ आने वाले हैं ,,,, बस पहुंचते ही होंगें तो नाश्ते में बेसन का चीलड़ा बणा लियो , रबड़ी का मालपुआ मैं ली आऊंगो।"

"जी अच्छा पर आपने पहले नहीं बताया।"

"अम्मा , मैंने तुम्हें बताया था ना ,,,,,, तुमने नहीं बताया थारी लाडी को ?" 

 "अरे भाया रे मैं तो भूल गई ,,,,, आच्छी याद दिलाई । लाडी रात खातर दाल भिगोदे , दाल को सीरो और दालबड़ा बणा लियो ,,,,,, म्हारी लाली ने खूब भावे।"

"जी मासा , लाली बाईसा ने आपरे हाथ री आलू की सब्जी भी बहुत पसंद है वो आप बना लेना।" 

"ठीक है लाडी ,,,,, बणा लेसूं , आलू उबालकर छीलके , काटके राख दियो।"

 "मुझे भी आपके हाथ की धनिया - पुदीना की चटनी बहुत पसंद है आप बना देना ना मासा ,,,, मुझे बहुत भाती हैं ।

"अरे इती सारी चीजां बण रही है ,,,,, चटनी फेर कदी ।"

 "मासा , आ चटनी तो जीजूसा को भी बहुत पसंद हैं याद है ना उस दिन कम पड़ गई तो उन्होंने दुबारा बनवाई थी !"

 "हां -हां , याद आ गई ,,,,, चल धनिया - पुदीना भी साफ कर दिये , लसण छील दिये‌ , हरी मिर्ची भी धोकर काट दिये । आलू की सब्जी और चटनी के साथ पूरी-कचौरी आच्छी लागेगी !" बेचारी पूजा ये सब सुनकर होंठों ही होंठों में बड़बड़ाई - "चटनी तो एक चम्मच खाने को मिलेगी और ताम-झाम इतना ! ऊपर से मैंने अपने लिए कहा तो ,,,,, बहुत सारी चीजां है ,,, फेर कदी और ,,,,, 

के बड़बड़ा रही है ? बेहरी कोनी हूं सब सुणीजे , म्हारी छोरी लाण आवे तो तने नहीं सावे ,,,,,,, जब देखो तब बड़बड़ करती रवे । कदी भी कोनी सोचे के बिचारी दो-दो , तीन-तीन बरसां से तो आवे , जरे आच्छी तरां बात करूं उसकी मनपसंद चीजां बणाऊं ओ तो नहीं ऊपर से म्हारी छोरी की बराबरी करे , ईसका करे ,,,,,,, हे भगवानजी ,,,,,, के बताऊं !" 

"बाईसा से मुझे क्यों बराबरी होगी और क्यों ईस का होगा , वे लोग तो कितने कम दिनों के लिए आते हैं , मुझे तो बहुत अच्छा लगता है , सखी मिल जाती है बोलने-बतियाने को , साथ में घूमने-फिरने को और आप ऐसा कहते हैं , हां , उनकी एक बात अच्छी नहीं लगती जब वे वहां होती हैं तो भी फोन पर हमेशा एक ही बात बार-बार कहती रहती है मां के लिए ऐसा करना , वैसा करना , मां को ऐसा अच्छा लगता है , वैसा अच्छा लगता है मां का ख्याल रखना , मां की सेवा अच्छी तरह से करना , पता नहीं क्या -क्या कहती है ,,,,,,,,, कहती क्या ,,,,,, एक तरफ से हुक्म ही चलाती है।,,,,, अरे भाई आप अपने घर को देखो , अपने सास-ससुर की सेवा करो ! मासा आप ही बताइए क्या मैं आपकी सेवा नहीं करती ? आपका ख्याल नहीं रखती ? मासा आप गुस्सा मत करना , आपकी भी मुझे एक ये बात बहुत दुखी करती है अभी मैंने अपने लिए चटनी का कहा तो आपने ना कह दिया और जीजूसा के नाम पे बनाने को तैयार हो गये तब सच मन को धक्का लगता है क्या मैं आपके लिए कुछ नहीं ?"

 "क्यूं नहीं , तू तो म्हारी लाडकी लाडी है ,,,,, कांई तू समझेई कोनी कंई ,,,,,, गेली है ? गेली रे गेली कठेरी ! चटनी की तो मैं इंयां कह दी , तू म्हारी है जरेई तो तने मना करूं , डांटूं भी हूं , लाड भी करूं ,,,, तने की नी लागे ?"

"लगता है तभी तो आपका इतना कुछ भी बुरा नहीं लगता और फिर कुछ खराब लगेगा आपसे नहीं कहूंगी तो किसे ,,,,, ? पर बाईसा ,,,,,,, ? कितने साल हो गये है अब तक भी क्यों यही सब दोहराते रहते हैं ,,,,, क्या आपको मुझसे कोई शिकायत है ? आप मेरी सासूमां ही नहीं , मां हो ,,,, मां कहने के लिए नहीं बल्कि सच में दिल से मानती हूं ! जब बाईसा बेकार में ऐसी बातें करते हैं तो मन बहुत ही दुखी हो जाता है!"

 "अरे लाडी तू भी ना इंयानकी बातें कर रही है मने बेरो है तू म्हारी घणी सेवा करे , म्हारो ख्याल राखे , मने थारे से कोई शिकायत नहीं है लाडी ,,,,,,, वो तो कांई है के बिने म्हारी चिंता रवे ई वास्ते !"

"मासा मुझे भी अपने मां - पापा की चिंता होती है लेकिन उनका ख्याल रखने के लिए भाई - भाभियां है तो मैं बेकार ही में दखलअंदाजी क्यों करूं ! मैंने कभी भी नहीं कहा कि मां-पापा का ख्याल रखना ! लेकिन इस तरह ,,,,,,जाने दीजिए ,,,, अच्छा मासा बातें बहुत हो गई अब बढ़िया - सी चाय बनाती हूं आपकी पसंद की अदरक इलायची वाली।"

" मने चाय पीण री इच्छा हो रही है तने किंयां बेरो पट्यो ? "

"मासा , सिर्फ कहने के लिए आप मेरी मां थोड़े ही ना हो एकदम सच्ची और पक्की वाली मां हो !" 

"ठाली-भूली म्हारो इतो लाड ना कर तने बेरो है मैं कठेई जाऊं म्हारो जी कोनी लागे एकदम बेरो है ! किंयां ? "

 "इसलिए कि मेरा भी मन नहीं लगता आपके बिना , आपकी डांट के बिना एकदम खाली-खाली लगता है !" 

"दुरर ठाली-भूली ,,,,,, मैं तने डांटूं हूं कांई ? आज तो तने साची में डांट पड़सी !" इस तरह हंसी-हंसी में दोनों सास-बहू ने चाय पी , वाकई चाय बहुत अच्छी बनी थी , मासा को इतनी स्वाद लगी कि एक कप और मांगी - "और चाय है कांई ?"

"बिल्कुल ,,,,, ये लीजिए कहते हुए चाय उनके कप में डाली ।"

"अती ज्यादा कींके खातर बणाई ?"

"आपके खातर और किसके लिए ! मुझे पता था- आपको चाय बहुत पसंद आयेगी फिर आप दुबारा जरूर ही लेंगें इसलिए मैंने पहले ही ज्यादा बना ली थी !" 

 "तू तो बड़ी समझदार हो री है छोरी ,,,,, मासा को बहुत लाड आता तो वे उसे छोरी कहती , ठाली-भूली कहती" ,,,,, यह पूजा को भी बहुत अच्छा लगता ! इन प्यार भरे लम्हों में चाय खत्म हूई ! पूजा शाम के खाने की तैयारी करने लगी तो मासा ने कहा - ला , मैं सब्जी सुधार दूं ! 

"आप रहने दो , अभी आपका लाडला उठ जायेगा आपको थका देगा आपको तो पता ही है कितना शैतान है आप ही ने बिगाड़ रखा है !"

"अच्छा , तो तू म्हारे लाडले और म्हारे से जलती है !" सुनकर पूजा हंसती हुई काम में जुट गई । इस तरह की प्यारभरी नोक-झोक से प्रफुल्लित मासा अपने पोते के जागने का इंतजार करने लगी और पूजा तो किचन में लगी ही थी ।

शाम के छः बजे लाली अपने पति और छोटे दो बच्चों रिया - रितिक के साथ आई , बड़ा बेटा हरीश घर पर ही था । मासा ने पूछा - "हरीश को ना लाई ?" 

"हरीश अपनी दादा-दादी के पास है कोई उनके पास भी चाहिए फिर उसकी क्लास भी रहती है इसलिए पापाजी ने कहा - हरीश को यहीं छोड़ जाओ ,,,,, इसका भी नुकसान नहीं होगा और हमारा भी मन लगा रहेगा ।"

"तू भी छोरी भोली घणी है इंयां कोई छोड़र आइजे , गेली है ? कांई पतो बूढियो-बूढली कंई करसी ? साथे लावणो चाइजतो ,,,,,,,, कांई समझेई कोनी छोरी तू ,,,,,, तू भी ना गेली है ,,,, ! आंधो बिस्वास करे तू वो लोगां पर ,,,,,, "

 "मासा ,आप ऐसे-कैसे कह सकते हैं ? जैसे आपको अपना गुड्डू प्यारा लगता है वैसे ही ब्यांईजी-ब्याणजीसा को भी अपने पोते-पोतियां प्यारे लगते होंगे ,,,,, मैं कहीं जाती हूं तो गुड्डू आपके पास ही तो रहता है मेरे साथ रहता ही नहीं आपके साथ ही खुश रहता है और आपको भी अच्छा लगता है ऐसे ही उनको भी अच्छा लगता होगा ना !"

"तने बड़ो पतो है ,,,,, मैं जाणू सब वे लोग आच्छा कोनी ,,,,, इतने में लाली का पति राघव अंदर आते ही बोला - कौन लोग अच्छे नहीं हैं ?"

"आइये जीजूसा , आपके लिए आपकी पसंद की दालचीनी-इलायची वाली चाय बनाती हूं इधर हमारे साथ ही बैठिए ना कुछ बातें हो जायेगी !"

"जरूर ,,,,, पर यह तो बताइए कौन लोग अच्छे नहीं हैं ?"

"वो तो मेरी सहेली ने मुझे बुलाया था मैं मासा को पूछ रही थी बाईसा और मैं कल जाकर आते हैं , मासा को उन लोगों का स्वभाव पसंद नहीं इसलिए मासा कह रहे थे वे लोग अच्छे नहीं हैं।"सुनकर जीजूसा ने जोर का ठहाका लगाया और बोले , "मैं तो कुछ और ही समझा था ,,,,, " सबकी सवालिया निगाहें उनके चेहरे पर टिक गईं ,,,,,, "अजी कुछ नहीं , मुझे लगा मेरे मां-पापा के लिए कह रहे हैं ।" अब लाली बोली , "आप भी कैसी बातें कर रहे हैं मां को कितना खराब लगेगा ,,,,, मां क्या ऐसा ओछी बातें करेंगी ?"

 "अरे यार , मासा सिर्फ तेरी ही मां है ,,,,, मेरी नहीं ?"

अब जाकर मासा के जी में जी आया ,,,, चलो आच्छो हुयो जे कंवरसा ने कोनी सुण्यो । मन-ही-मन सोच रही थी आज तो मने लाडी और लाली ने बचाली । बोली कंवरसा इब जीमो , नरी देरी हो रही है ,,,,,,, "लछू ,,,,, आजा बेटा,थें लोग जीम लो तो ए लोग भी जीमा-जूठा कर के निपट जाय।"

"ए ले अम्मा मैं इधर तो खड़ा हूं ,,,, कबसे तुम लोगों की बातें सुन रहा था ! जीजूसा , सही है कि नहीं ?" 

" बिल्कुल साले साहब ,,,,, अब हमें पेटपूजा कर ही लेनी चाहिए , अपने राम के पेट में चूहे दौड़ रहे हैं ! फिर साले - जीजा के हंसी-मजाक के बीच खाना खत्म हुआ । खाने के बाद राघव ने कहा-पूजा भाभी इस गरीब की एक गुजारिश है ",,,, 

"जी फरमाइए , हम आपकी क्या सेवा कर सकते हैं ?"

" बस एक कप चाय का सवाल है।"

 "लीजिए , हाजिर है आपकी चाय !"

 "अरे यह तो जादू हो गया , आपने तो हमारे दिल की बात पहले ही समझ ली ,,,,, वैरी जीनियस !"

"तो क्या आप मेरी भाभी को कम समझते हैं ?"

 "ना -ना महारानी ना !"


दूसरे दिन राघव अपने घर गया , लाली और बच्चे एक सप्ताह बाद जाने वाले थे । लछु छोड़ने जाने वाला था , हालांकि पहले तो सब साथ ही जाने वाले थे लेकिन मासा ने रोक लिया तो राघव ने कहा "मैं अभी आ नहीं सकूंगा" ,,,,, तब लछु ने कहा - "ऐसी बात है तो मैं छोड़ने आ जाऊंगा ।" 

दूसरे दिन लछु ने कहा- "अम्मा , क्या बोलती हो ,,,, बोलते हुए कुछ भी नहीं सोचती हो , यह तो अच्छा हुआ जीजूसा उसी समय आये थे इसलिए उन्होंने उतना ही सुना ! नहीं तो ,,,,, "

"हां रे ,,,,,,,,,, लाली ने बचाली मने नहीं तो ,,,, "

"अम्मा ,,,,, सिर्फ लाली ने बचाया ? और जिसने अपने ऊपर लेकर तेरा मान रखा ,,,, उसे भूल गई ? " सुनकर लाली ने भी कहा - "हां अम्मा , अगर भाभी बात को नहीं संभालती तो मुझे कुछ भी नहीं सूझता इसलिए जो संभल गया वो सब भाभी की वजह से ही !सच कहूं अगर मेरी सासूमां ने तुम्हारी तरह किया होता तो मैं कभी बर्दाश्त नहीं करती ! यह तो तुम्हारी बहु बहुत अच्छी ,समझदार और विनम्र स्वभाव की है वरना ,,,,"

 "बाईसा प्लीज ,,,,,, यह हम दोनों के बीच का मामला है ,,,,,, मासा मुझे और मैं मासा को बहुत अच्छी तरह समझते हैं !"

 "अरे छोरी तू किंयांनकी माटी री है रे ? तने रिसता आच्छी तरां निभाणा और समझतां आवे और मैं इती-सी बात नहीं समझ पाई कि बहु भी तारीफ री हकदार होवे ! साची होवे के जूठी बेटी री तारीफ करियां जावे पण बहु री साची तारीफ रो एक आखर भी मूंडा से कोनी निकले ! मनेई देखो हरमेस हर बात में थारी किती गलतियां काडूं तू हस र टाल देवे और मासा मासा करती रवे दिखावो तो चिनी सो भी कोनी करे और आज मैं कांई करियो ,,,,, म्हारी लाज तो तू राखी और मैं ,,,,,,,,, ?

अपनी अम्मा की सारी बातें सुनकर लछु बोला - "अम्मा तने आज बहुत बड़ी बात कह दी सच में ऐसी सोच हर सास में और पूजा जैसी हरेक बहु भी होनी चाहिए ! सास -बहू में अगर तालमेल होगा तभी जिन्दगी आसन और सुरक्षित होगी सास-बहू में भेदभाव नहीं होगा बहु सास को मां की तरह माने और सास बहु को बेटी ,,,,,,, वो भी दिल से ! खैर देर आये दुरुस्त आये !"

"लछिया इब तू घणी ना अंग्रेजी झाड़ !"

"अंग्रेजी ऐसी थोड़े ही ना होती है वो गिटपिट होती है जो तो थारी समझ में ही नहीं आयेगी !"

"अररर लछिया ,,,,,, ‘ तू मने गुस्सो ना दिला , सारी अंग्रेजी जाणू ,,,, आई मारिंग तू रोइंग !" सब हंस पड़े और मासा ने सबपर झूठ-मूठ का गुस्सा किया ! रिया बेचारी कुछ भी समझी नहीं बोली - "नानीजी , ‘ ऐसे नहीं ,,,,, ऐसे होता है - आय विल बीट यूं , यूं विल क्राइ " सुनकर सब लोग और भी हंसने लगे रिया और भी रोने लगी पूजा ने उसे गोदी में लिया प्यार से समझाया - बेटा आप पर नहीं आपके मामाजी पर हंस रहे हैं ऐसे ही मज़ाक कर रहे हैं ना इसलिए ¡ ना ना मेरा बेटा चुप हो जा आज तेरे मामाजी को खाना भी नहीं मिलेगा ,,,,, सुबकते हुए - "मामाजी ने तो पापा के साथ ही का लिया था !" 

"अच्छा ,,,,, खा लिया था कोई बात नहीं तो अभी हम इनसे राजा वाली कहानी सुनेंगे !"

" हां बेटा इब तेरा मामाजी काहाणी सुणावगो ,,,, जा रे छोरा ली जा टाबरां ने और सुणा !"

पांच साल की रिया और सात का रितिक दोनों खुश कहानी सुनने के लिए ,,,,, वो भी मामा से ! मामा पता नहीं क्या ऊटपटांग सुनाता पर बच्चों को तो बड़ा मज़ा आता , हंसते-हंसते पेट में बल पड़ जाते,,,, "मामा की कहानी मतलब मज़ा ही मज़ा !" दोनों बच्चे मामाजी कहानी , मामाजी कहानी चिलाने लगे ! 

"अच्छा बाबा , चलो सुनाता हूं और जाते हुए बोला - "पूजा की बच्ची , देखूंगा तुम्हें !"और मासा ने हंसते-हंसते कहा - "खबड़दार जो म्हारी लाडी ने कांई भी कयो ,,, तू जाणेई मने ! लाडी , ईसूं माथो लगार म्हारो माथो दूखण लाग गयो ,,,,, तू चाय बणा ले !" बच्चों को सुनाते हुए लछु भी बोला - मेरे लिए भी ,,,,,,, मेरा भी माथा दुखने लग गया है तूने फंसा जो दिया है , बड़ी अपनी मासा की लाडली बनी - फिरती है ,,,, तुम्हें तो ,,,,,,"

"साची लछिया आज तू पिटेगो , छोरी लाण ने धमकावे ?" और सच में मासा लाठी लेकर जाने लगे तो सब फिर हंसने लगे खासकर बच्चों की हंसी तो पूछो मत ! हंसते-हंसते ही लछु ने कहा - "अरे अम्मा ,लाठी तो रख दे तेरे हाथों में दर्द होगा फिर तू मुझसे दबवायेगी पर आज मैं कहानी सुना- सुनाकरकर एकदम थक गया हूं तो आज मुश्किल है अम्मा !"

" हे रामजी कितो झूठों है छोरो सब तो म्हारी छोरी करे ,,,,,, ले छोरी चाय बणगी तो दे दे ,,,, ए तो इसोई है , साची म्हारो तो माथो दूखे !"

 "तो पहले झूठ-मूठ का दुखता था" और जोर का ठहाका ,,,, सबके साथ मासा भी हंसने लगी,,,, पूजा ने सबको चाय दी । चाय के दौरान बतियाना , हंसना खिलखिलाना चलता रहा , मासा सोच रहीं थीं - धन्य हूं इसी लाडी पाके ,,,,, आंखों में प्यार लबालब था अपनी लाडी के लिए ! बेटे-बेटी के लिए तो था ही मगर लाडी की बात तो अलग ही थी !

                                                                                    

                                            



      


Rate this content
Log in