Renu Poddar

Inspirational

4.2  

Renu Poddar

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एक झलक ख़ुशी की

एक झलक ख़ुशी की

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शिखा अपने घर का दरवाज़ा बंद करने जा ही रही थी, तभी मेज़ पर रखे हुए बैग पर उसकी नज़र पड़ी...जिसमें उसने अपनी मैड संतोष और उसके परिवार के लिए खाना और केक पैक कर के रखा था क्यूंकि आज उसकी बेटी मिष्ठी का जन्मदिन था, जो कुछ ही देर पहले वो धूमधाम से मना कर हठे थे।


शिखा मन ही मन बड़बड़ाती हुई सोचने लगी "लगता है संतोष खाना ले जाना भूल गयी और आज मुझसे बोल कर भी नहीं गयी कि 'मैं जा रही हूँ'। अभी शिखा ये सब सोच ही रही थी, तभी उसकी निगाह बॉलकनी के दरवाज़े की तरफ गयी। वो यह सोचती हुई चल रही थी कि पता नहीं किसने दरवाज़ा खुला छोड़ दिया..."मच्छर आ जायेंगे जल्दी से बंद कर देती हूँ"। अभी वो दरवाज़े के पास पहुंची ही थी कि उसे संतोष कि बातें करने की आवाज़ आयी। शिखा ध्यान लगा कर बातें सुनने लगी। संतोष अपनी आठ वर्षीय बेटी रेवा से बातें कर रही थी। शिखा ने खिड़की से पर्दा हटा कर देखने कि कोशिश कि तो उसने देखा रेवा मुंह बनाये एक कोने में बैठी है और संतोष उसे जल्दी घर चलने को कह रही थी। रेवा रुआंसी आवाज़ में कह रह रही थी "तू मेरा जन्मदिन क्यों नहीं मनाती? देख आंटी ने मिष्ठी दीदी का कितना अच्छा जन्मदिन मनाया। उनके सब दोस्त लोग आये थे, सबने मिलकर कितना मज़ा किया"।


संतोष उसे समझाते हुए कह रही थी कि "ये जन्मदिन पनंदिन बड़े लोगों के चोंचले हैं। हम गरीब दो वक़्त की रोटी खा ले लें, वो ही हमारे लिए जन्मदिन है। तू समझती क्यों नहीं, मैं अकेली कमाने वाली तुम चार बहन-भाइयों का पेट पाल रही हूँ, वो ही क्या कम है। तेरा बापू तो बिलकुल निठल्ला है, कुछ कमाता-धमाता नहीं उल्टा रोज़ मुझसे लड़-झगड़ के दारू के पैसे ले जाता है"। वो बड़े लोग हैं, उनसे क्यूँ मिलाती है अपने को? रेवा ने बड़ी मासूमियत से पूछा "वो बड़े लोग कैसे हुए, आंटी की लम्बाई तो तुझसे कम है"।


संतोष का सब्र अब जवाब दे रहा था, उसने रेवा पर गुस्सा करते हुए कहा "तू यही बैठी रह मच्छरों के बीच में, मैं घर जा रही हूँ। हम सब मिलकर केक खायेंगे और बढ़िया खाना खायेंगे जो आंटी ने दिया है"।


रेवा अपनी मम्मी कि बात सुन कर भर्राये गले से बोली "अच्छा मेरे लिए वो टॉफी वाला गुब्बारा ला देना और हो सके तो केक ला देना"।


शिखा उन दोनों की बातें सुन कर बहुत दुखी हो गयी...तभी संतोष रेवा को लेकर जल्दी से अंदर आयी, मेज़ पर से बैग उठाया और शिखा से ये कहती हुई बाहर निकल गयी "भाभीजी जा रही हूँ, दरवाज़ा बंद कर लो"। 


संतोष के जाने के बाद शिखा अपने कमरे में जाकर लेट गई और सोचती रही कि उसे अपनी ज़िन्दगी की छोटी-छोटी मुश्किलें ही इतना परेशान कर देती हैं और एक तरफ संतोष है, जिसको ज़िन्दगी से एक-एक कतरा खुशियां चुरानी पड़ती हैं। शिखा रात भर करवटें बदलती रही और सोचती रही कि वो ऐसा क्या करे जिससे रेवा खुश हो जाये।


अगले दिन संतोष जब शिखा के घर आई तो कुछ एडवांस मांगने लगी। शिखा ने मज़बूरी जताते हुए कहा "महीने का आखिर है, अभी तो एडवांस देना मुश्किल हो जायेगा। तू 2-4 दिन बाद पैसे ले लियो"। शिखा की बात से संतोष का मुंह बन गया पर वो अनमने मन से काम करती रही। 3-4 दिन बाद संतोष ने शिखा से कहा कि वो कल नहीं आएगी क्यूंकि रेवा का जन्मदिन है, तो शिखा ने कहा कि "तू शाम को कुछ देर के लिए आजाइओ, मुझे एक ज़रूरी काम है।संतोष ने कहा कि "देखूंगी, आ सकी तो आ जाऊंगी"। अगले दिन शाम को जब संतोष आयी तो उसने देखा साहब (शिखा के पति संजय) बहुत सारे बच्चों को गाड़ी में बिठा कर लाये हैं और गाड़ी अपने घर के बाहर खड़ी कर के बच्चों को नीचे बेसमेंट में ले जा रहे हैं।


संतोष भी उनके पीछे-पीछे बेसमेंट में गयी, जहाँ मिष्ठी का जन्मदिन मनाया गया था। आज भी वहां अच्छी-खासी सजावट कर रखी थी। छत से लटकते हुए टॉफियों के गुब्बारे, दीवारों पर रंगीन झालर और उनके बीच-बीच में लगे कार्टून के स्केच बहुत ही सूंदर लग रहे थे....तभी शिखा के साथ रेवा सफ़ेद गाउन पहने हुए नीचे उतरती हुई किसी परी से कम नहीं लग रही थी। संतोष कि तो निगाहें ही रेवा पर से नहीं हट रही थी। वहां खड़े रेवा के भाई-बहनों और दोस्तों को सब कुछ एक सपना सा लग रहा था....तभी एक तरफ से मिष्ठी अपने पापा के साथ एक ट्राली में बड़ा से केक लेकर आ आते हुए दिखी।


रेवा की ख़ुशी का तो कोई ठिकाना ही नहीं था। केक काटते समय उसकी आँखों कि चमक देखकर लग रहा था, जैसे उसे दुनिया कि सारी खुशियां मिल गयी हों। सबने मिलकर रेवा का जन्मदिन पूरे उत्साह से मनाया। शिखा ने सब बच्चों को गिफ्ट भी बाटें। संतोष कि आँखों में ख़ुशी के आंसू छलक गए....वो शिखा के पैर पकड़ने लगी तो शिखा ने उससे कहा "ये क्या कर रही है, उस दिन मैंने तुझे एडवांस देने से इसलिए ही मना किया था क्यूंकि मैंने रेवा के जन्मदिन के लिए सब तय कर लिया था और मैं चाहती थी तू अपने पैसों से अपने बाकी के ज़रूरी खर्चे कर ले। मेरे लिए तुम्हारी कॉलोनी के हर बच्चे का जन्मदिन मनाना तो मुश्किल है पर तू मुझे अपनी कॉलोनी के बच्चों के जन्मदिन की तारिख एक कागज़ पर लिख कर ला दियो। मैं कोशिश करुँगी कि हर बच्चे के जन्मदिन पर एक केक बना कर भेज सकूँ और साथ में टॉफियों का गुब्बारा भी। तुझे या तेरी किसी भी सहेली को केक या मिठाई बनानी मुझसे सीखनी हो तो मैं उन्हें अपने घर के बाहर लॉन में फ्री में सिखाऊंगी ताकि सबको कुछ ख़ुशी दे सकूँ"।


रेवा ने आकर शिखा कि साड़ी का पल्ला पकड़ कर धीरे से उसे "थैंक्यू" कहा, तो शिखा ने उसे प्यार से गले लगा लिया।



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