मिली साहा

Abstract

4.7  

मिली साहा

Abstract

एक प्याली चाय

एक प्याली चाय

7 mins
452


सुधा कहांँ हो, अभी तक चाय नहीं बनी क्या? कब से इंतजार कर रहा हूँ। तुम्हें पता है न जब तक चाय की एक घूंँट अंदर नहीं जाती तब तक दिन की शुरुआत करना मुश्किल है मेरे लिए। अब जल्दी ले भी आओ वरना यहीं बैठे बैठे मुझे नींद आएगी। ऑफिस भी तो जाना है।

अरे बस बस आ गई तुम्हारी चाय, कितना बेचैन हो जाते हो तुम चाय के लिए, पूरा घर सर पर उठा लेते हो।‌ थोड़ी देर सवेर तो हो ही जाती है। सुधा चाय की ट्रे पति के सामने रखते हुए कहती है।

ठीक है ठीक है अब और कुछ मत कहो चलो जल्दी से चाय पीते हैं वैसे ही बहुत देर हो चुकी है। फिर दोनों पति पत्नी साथ बैठकर चाय का आनंद लेने लगते हैं। चाय पीते पीते सुधा कहती है...... सुनो, आज हमारे बेटे के स्कूल में पी टी एम है तुम्हें याद है ना कल बताया था मैंने। हम दोनों को जाना है। राजीव.... तुम सुन भी रहे हो मैं क्या कह रही हूंँ?

पर सुधा का पति राजीव तो चाय पीने में इतना मग्न था कि उसने सुधा की कही बातों पर ध्यान ही नहीं दिया। सुधा ने दो-तीन बार उसी बात को दोहराया भी किंतु राजीव की तरफ़ से उसे कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली तो सुधा चाय ख़त्म होने तक इंतजार करने लगी। 

पर यह क्या राजीव तो चाय ख़त्म करके वहांँ से तुरंत उठ कर ऐसे चला गया जैसे उसे आभास ही नहीं कि सुधा भी उसके पास ही बैठी थी। फिर भी सुधा ने इस बात का बुरा ना मानते हुए राजीव के पास जाकर अपनी बात को फिर से दोहराया। सुधा की बात सुनकर राजीव गुस्से से कहने लगा....... यार ये सारे छोटे-मोटे काम ना तुम खुद ही कर लिया करो अभी-अभी चाय पीकर मूड फ्रेश हुआ था और तुमने काम बता दिया। सारा मजा किरकिरा हो गया। 

राजीव की बात सुनकर सुधा कहने लगी........ राजीव तुम्हें समझ भी आ रहा है तुम क्या कह रहे हो, पी टी एम में जाना कोई काम नहीं ये हमारी जिम्मेदारी है, सभी बच्चों के माता-पिता पी टी एम में सम्मिलित होते हैं। और यह कोई पहली बार तो नहीं है हर बार तो तुम साथ ही जाया करते थे, तो इस बार क्या हो गया?

राजीव गुस्से से..... इस बार क्या हो गया? क्या मतलब है तुम्हारा? अरे भाई मैं भी इंसान हूँ थक जाता हूंँ। और ज़रूरी तो नहीं है हर बार मूड एक जैसा ही हो। तुम्हें तो बस बात बढ़ाने का बहाना चाहिए। मैं आज किसी भी हालत में नहीं जा सकता तुम अकेले चले जाना।

राजीव की बात सुनकर सुधा से भी बोले बिना रहा नहीं गया..... राजीव आखिर तुम कहना क्या चाहते हो क्या सिर्फ तुम ही काम करते हो क्या मुझे थकान नहीं होती। ऑफिस मैं भी जाती हूंँ घर का सारा काम करती हूंँ पर फिर भी कभी तुमसे कोई शिकायत नहीं की। और अब से पहले तो तुम्हारा ऐसा बर्ताव कभी नहीं देखा। हमारे बच्चे के प्रति हमारी कुछ जिम्मेदारियांँ हैं जिसे हम दोनों को मिलकर पूरा करना चाहिए, न कि सिर्फ मुझे।

इसी बात को लेकर दोनों में जोर शोर से बहस शुरू हो गई। और अंत में राजीव सुधा से गुस्सा होकर ही सही पर पी टी एम में जाने के लिए तैयार हो जाता है। 

सुधा और राजीव की ज़िंदगी में रोज़मर्रा की दिनचर्या इसी प्रकार एक प्याली चाय से शुरू होती थी। थोड़ी अनबन थोड़ी बहसबाजी, यूंँ समझिए "चाय पर चर्चा और थोड़ा दिमाग का ख़र्चा"। और कुछ ही देर में फिर सब कुछ नॉर्मल भी हो जाता था। पर इस बार बात कुछ अधिक ही बढ़ गई थी। 

वैसे राजीव का स्वभाव बुरा नहीं था छोटी मोटी बहस उसकी सुधा के साथ हो जाया करती थी किंतु कभी उसने सुधा से चिल्लाकर बात नहीं की थी। दरअसल पिछले कुछ दिनों से राजीव ऑफिस के काम को लेकर बहुत परेशान चल रहा था उसने सुधा से इस बात का जिक्र नहीं किया इसलिए सुधा को इसकी कोई जानकारी नहीं थी। इसी तनाव के कारण बेकार में दोनों के बीच बहस बाजी शुरू हो गई।

खैर इतनी तनातनी के बावजूद भी दोनों पी टी एम के लिए अपने बेटे के स्कूल पहुंँचते हैं रास्ते भर दोनों इतने ख़ामोश थे कि वो साथ होते हुए भी एक दूसरे के साथ नहीं थे। पी टी एम के बाद बेटे को घर ड्रॉप कर दोनों अपने अपने ऑफिस चले जाते हैं। 

शाम को जब काम ख़त्म होने के बाद राजीव ऑफिस से घर जाने के लिए निकला तो उसे सुबह की सारी बातें याद आने लगी। जब गंभीरता से राजीव ने इस विषय में सोचा तो उसे अपनी गलती का एहसास हुआ। 

राजीव मन ही मन बड़बड़ाने लगा मैंने बेकार ही सुधा से इतनी बहस कर ली जबकि उसकी तो कोई गलती भी नहीं थी। वो तो अपनी सभी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाती है। ऑफिस के साथ-साथ घर भी संभालना मेरा और बेटे का पूरा ख्याल रखना इन सब बातों में सुधा ने कभी कोई लापरवाही नहीं बरती है।

मुझे इस तरह ऑफिस का तनाव घर पर नहीं ले जाना चाहिए था। आज से पहले मैंने कभी उससे ऐसे बात नहीं की पता नहीं वो मेरे बारे में क्या सोच रही होगी। मुझे घर जाकर सुधा से माफी मांगनी चाहिए। आखिर गलती भी तो मेरी ही है।

दूसरी ओर सुधा भी ऑफिस से निकलते वक्त़ यही सब सोच रही थी। उसे लग रहा था सारी गलती उसी की है, उसे चाय पीते वक्त राजीव से यह सब बातें नहीं करनी चाहिए थी जबकि वह अच्छे से जानती है कि राजीव को चाय पीते समय ज़्यादा बात करना पसंद नहीं। पहले कभी हमारे बीच ऐसा नहीं हुआ पता नहीं राजीव मेरे बारे में क्या सोच रहे होंगे। मुझे राजीव से माफ़ी मांगनी चाहिए।

सुधा यही सब सोचते सोचते शाम को घर पहुंँचती हैं। राजीव पहले से ही घर आ चुका था किन्तु सुधा को इस बात की जानकारी नहीं थी। 

तभी सुधा का बेटा आकर उससे कहता है......मम्मा, पापा घर आ चुके हैं और उन्होंने खाना बनाकर मुझे खिला भी दिया। बहुत ही टेस्टी खाना बनाया था। आपके लिए भी रखा है आप भी खा लेना मैं जा रहा हूंँ अपने कमरे में पढ़ाई करने।

बेटे की बात सुनकर सुधा को बहुत आश्चर्य हुआ। मन ही मन कहने लगी....... वाह, क्या बात है सुबह तो इतना गुस्सा हो गए थे और अब खाना भी बना दिया। सुबह ही अपनी गलती मान लेते तो पूरा दिन ऐसे बेकार नहीं गुजरता। खैर कोई बात नहीं देर आए दुरुस्त आए अब मुझे भी उनके लिए कुछ करना चाहिए। 

पर क्या करूँ? सुधा खुद से ही पूछने लगी........ तभी उसके दिमाग में आया ये बहुत अच्छा रहेगा, राजीव के लिए बढ़िया सी चाय बनाती हूंँ वैसे भी चाय के बड़े दीवाने हैं। कहा जाए तो चाय उसकी पहली मोहब्बत है। इतना कहकर सुधा किचन में चाय बनाने चली जाती है।

सुधा चाय लेकर जब कमरे में आती है तो‌ राजीव को पहले से ही चाय और नाश्ते के साथ वहांँ मौजूद देखकर आश्चर्यचकित रह जाती है। सुधा के हाथ में चाय की ट्रे देखकर राजीव मुस्कुराने लगता है। राजीव को देखकर सुधा के चेहरे पर भी हल्की सी मुस्कान आ जाती है।

फिर दोनों एक ही स्वर में बोलने लगते हैं...... सॉरी सुधा........... सॉरी राजीव। और इसी के साथ हंँसी के फव्वारे कमरे में एक अलग ही रंग बिखेर देते हैं। सारा गुस्सा सारी कड़वाहट पल में छूमंतर हो जाती है। 

तब राजीव सुधा से कहता अरे भाई अब ये दो दो प्याली चाय का क्या होगा? सुधा राजीव को छेड़ते हुए कहने लगती है क्यों तुम हो ना चाय पीने में मास्टर, रोज़ एक प्यारी पीते थे आज दो पी लो वैसे भी चाय से मोहब्बत तुम्हारी बड़ी गहरी है। मैं भी तुम्हारा साथ देते हुए आज दो प्याली चाय पी ही लेती हूँ।

राजीव और सुधा चाय पीते पीते भावुक हो जाते हैं। राजीव सुधा से कहता है सुधा मुझे माफ़ कर दो मुझे सुबह तुमसे ऐसी बात नहीं करनी चाहिए थी। मैं वादा करता हूंँ आज के बाद ऐसी गलती दुबारा कभी नहीं होगी। 

सुधा मुस्कुराते हुए कहती है ठीक है बाबा माफ़ किया। अब तुम भी मुझे माफ़ कर दो मैं भी ऐसी गलती दोबारा कभी नहीं करूंँगी। पर हाँ, एक वादा तो तुम्हें आज करना ही होगा‌ अब से हम जब भी साथ चाय पिएंगे तो बातें ज़रूर करेंगे। और हांँ सिर्फ बातें बहस बिल्कुल नहीं। 

तब राजीव हंँसते हुए सुधा से कहता है........ मंजूर है, वैसे मुझे चाय पर बात करना पसंद नहीं पर तुम्हारे लिए मैं अपनी इस आदत को बदलने के लिए भी तैयार हूँ। और हांँ तुमसे किसने कहा कि चाय से ही मेरी मोहब्बत गहरी है। तुम और हमारा बेटा मेरी जिंदगी में बहुत मायने रखते हो सुधा, मैं तुम दोनों से बहुत ज़्यादा प्यार करता हूंँ। हांँ, चाय मुझे प्यारी है पर तुम दोनों से बढ़कर नहीं।

राजीव की बात सुनकर सुधा मुस्कुराने लगी। दोनों सब कुछ दोनों ऐसे भूल गए जैसे कभी कुछ हुआ ही नहीं था। चाय की एक प्याली पर बिगड़ी थी जो बात चाय की उसी एक प्याली पर फिर बन गई बात।

कभी चर्चा, कभी बहस तो कभी मुलाकात है एक प्याली चाय,

कभी अहसास बयां करती तो कभी जज्बात, एक प्याली चाय,

दिन की शुरुआत, किसी की याद जुबां पर आए दिल की बात,

अगर मिल जाए कहीं से गरमा गरम, बस वो‌ एक प्याली चाय।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract