मिली साहा

Inspirational

4.8  

मिली साहा

Inspirational

बिगुल

बिगुल

7 mins
343


"अरे! कित जारी हैं ये छोरियांँ..... ये हरिया... जा जाकर देख तो ज़रा।"साथ में कापी, किताब भी है। इन छोरियों की इतनी हिम्मत माहरे ख़िलाफ़ जाकर स्कूल जावेगी।


"ये सब उस मास्टरनी का किया धरा है। जब से इस गांँव में आई है सारी की सारी छोरियांँ और लुगाइयों का दिमाग ख़राब हो गया है।" 


"अरे........के कर लेवेगी पढ़ लिख के, ब्याह के बाद तो चूल्हा चौका ही करना है।" 


आज़ादी के 75 साल गुज़र चुके हैं किंतु आज भी कुछ कस्बे, गांँव ऐसे हैं जहांँ बेटियों को पढ़ने की आज़ादी नहीं। उन्हें बेटों से कम आंका जाता है। और स्कूल जाना तो दूर की बात है घर की दहलीज तक लांघने की इजाज़त नहीं होती। 


घनपत चौधरी एक ऐसे ही गांँव का मुखिया जहांँ बेटियों को पढ़ाना उन्हें घर से बाहर जाने देना पाप समझा जाता था। और यह बात घनपत चौधरी ने प्रत्येक ग्राम वासियों के दिमाग में इस कदर बैठा दिया था कि वो भी इस बात पर विश्वास करने लगे थे कि लड़कियों का पढ़ना आगे बढ़ना, घर की दहलीज लांघना भी अनुचित है। पूरा का पूरा गांँव गणपत चौधरी की बातों पर ही चलता था। 


स्कूल तो थे किंतु केवल लड़कों के लिए। लड़कियों को तो उस स्कूल के आसपास तक जाने की इज़ाजत नहीं थी। अगर गलती से कोई लड़की वहांँ देख ली जाती तो उसे कड़ी से कड़ी सजा दी जाती थी। और सजा के तौर पर उसका दाना पानी तो उठी जाता था परिवार सहित गांँव से भी निकाल दिया जाता था। 


गांँव में किसी की भी इतनी हिम्मत नहीं थी कि चौधरी के ख़िलाफ़ जाकर उस परिवार की मदद करे। चौधरी के अत्याचार के सामने गांँव वासी बेबस और लाचार थे।


चौधरी के ख़िलाफ़ ना बोलने का एक और कारण भी था.......... सभी गांँव वालों की तो चौधरी के पास ही गिरवि पड़ी थी।


चौधरी घनपत जो लड़कियों की पढ़ाई के सख़्त खिलाफ़ था। उसका कहना था......... लड़कियों के नसीब में चूल्हा चौका तो उनके जन्म से पहले ही लिख दिया जाता है। तो भगवान के लिखे इस नसीब को बदलने वाले हम कौन होते हैं। और ऐसे भी छोरियांँ ज़्यादा पढ़ लिख जावेगी तो मर्दों के सर पे नाचेगी, हुकुम चलावेगी और ये म्हारे से बिल्कुल बर्दाश्त न होवेगा। 


गांँव के भोले भाले अनपढ़ लोग चौधरी की बातों में आसानी से आ जाते थे। चौधरी ने गांँव वालों से कह रखा था.... गर इस गांँव की एक भी छोरी चोरी छुपे पढ़ने के वास्ते गई तो उसको कड़ी से कड़ी सजा दी जाएगी। दाना पानी तो उठ ही जाएगा उसका और उसके परिवार का जान से भी हाथ धो बैठेंगे। और जिसने अपनी जान प्यारी वो म्हारी ये बात अच्छे से गांँठ बांँध लो।


किंतु कहते हैं न अत्याचार जब हद से अधिक बढ़ जाता है तो कोई न कोई मसीहा बनकर ज़रूर आता है। ऐसी ही एक मसीहा बनकर पहूँची शीला जो एक महिला संगठन चलाती थी। शीला ने महिला संगठन की कुछ औरतों से ही उस गांँव में लड़कियों और गांँव वालों के साथ हो रहे इस बर्ताव के बारे में सुना था। तक्षशिला ने खा लिया था इस अन्याय के खिलाफ बिगुल तो वो बजाकर रहेगी। बस उसे सही मौके की तलाश थी।


और यह मौका शीला को जल्द ही मिला। शीला महिला संगठन के कार्य हेतु कुछ महिलाओं के साथ उसी गांँव में पहुंँची। शीला ने सोचा जब इस गांँव में आ ही गई है तो चौधरी का काला चिट्ठा भी खोला जाए। 


शीला मन ही मन कहने लगी........ मुझे गांव की औरतों से और लड़कियों से बात तो करनी होगी। तभी इस गांँव के हालातों के बारे में कुछ जानकारी मिल पाएगी।


तब शीला ने एक-एक कर सबके घर जाकर उनके मन की बात जाननी चाही किंतु कोई भी चौधरी के ख़िलाफ़ जाकर कुछ भी बताने को तैयार नहीं था। सबकी चुप्पी देखकर शीला को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वो क्या करें कैसे यहांँ के लोगों की मदद करे। 


यही सब सोचते हुए गांँव की गली से जब शीला गुज़र रही थी। डरी सहमी सी एक लड़की चुपके से शीला के पास आती है। और उसका हाथ खींच कर उसे एक कोने में ले जाती है। 


और कहने लगती है......"दीदी आप यहांँ से चले जाओ। यहांँ कोई आपका साथ नहीं देगा। हम जैसे जी रहे हैं वैसे ही जी लेंगे। अगर आप हमारे लिए कुछ भी करेंगे तो चौधरी के आदमी आपकी जान भी ले सकते हैं।"


शीला ने उस लड़की के सर पर हाथ लेते हुए कहा.... "देखो..... तुम्हें इतना घबराने की कोई ज़रूरत नहीं। और तुम मेरी चिंता मत करो मुझे किसी से डर नहीं लगता।" 


शीला ने फिर उस लड़की से पूछा...."अच्छा एक बात बताओ क्या तुम्हें पढ़ना अच्छा नहीं लगता?"


"अच्छा लगता है न दीदी...... पर चाह कर भी हम नहीं पढ़ सकते स्कूल जाना तो दूर उस ओर देखना भी हमारे लिए पाप समझा जाता है। अगर कोई छोरी गलती से वहाँ चली भी गई तो बहुत बुरी सजा देते हैं।"


उस लड़की ने शीला को गांँव में लड़कियों और औरतों के साथ हो रहे अन्याय के बारे में शीला को सब कुछ विस्तार पूर्वक बताया।


सारी बात सुनकर शीला बोली....." इस अन्याय के ख़िलाफ़ बिगुल तो बजाना ही होगा। मैं इस प्रकार तुम लोगों का भविष्य अंँधकार की ओर जाते हुए नहीं देख सकती। बस तुम मेरा एक काम करो गांँव की सभी लड़कियों और औरतों को किसी भी प्रकार एक जगह एकत्रित करो।"


शीला के बताए अनुसार उस लड़की ने गांँव की सभी लड़कियों और औरतों को किसी प्रकार एक जगह एकत्रित होने के लिए मना लिया। क्योंकि सभी कहीं ना कहीं इस अन्याय से मुक्ति पाना चाहते थे।


अगले दिन शीला गांँव की औरतों से मिली। उसने उन औरतों को साक्षरता का महत्व बताते हुए कहा......... "शिक्षा एक ऐसा धन है जो तुमसे कभी कोई छीन नहीं सकता। शिक्षा से तुम्हारे अंदर सोचने समझने और सही रहा चुनने की शक्ति आएगी। जिससे तुम चौधरी जैसे लोगों का मुकाबला करने में भी सक्षम हो जाओगी। अगर स्वयं पर विश्वास है और हिम्मत साथ है तो कोई तुम्हें आगे बढ़ने से नहीं रोक सकता। आज तुम लोगों ने अगर अपनी हिम्मत नहीं दिखाई तो चौधरी जैसे लोग तुम्हारे अधिकारों से वंचित रखेंगे। इससे पहले कि तुम्हारा जीवन अंधकारमय हो जाए प्रकाश की ओर बढ़ने की कोशिश करो। अपनी ताकत पहचानो तुम किसी से कम नहीं।"


फिर शीला ने अपनी बात ख़त्म करते हुए कहा...........".तुम लोग अपनी बच्चियों के साथ बिना किसी डर मेरे पास पढ़ने के लिए आ सकती हो।"


और रही बात चौधरी की तो मैंने यहांँ के जिला पुलिस से बात कर ली है अगर चौधरी हमें नुकसान पहुंँचाने की कोशिश भी करेगा तो पुलिस उसके खिलाफ़ एक्शन ज़रूर लेगी। 


किंतु डर तो गांँव वालों के मन में इस क़दर हावी था। कि वो चौधरी के ख़िलाफ़ जाने की सोच भी नहीं सकते थे। खैर शीला ने चिंगारी को छोड़ ही दी थी। उसके मसाल बनने का इंतजार करने लगी‌। शीला की मेहनत रंग लाई कमला नाम की एक औरत जो उसी गांँव में रहती थी अपनी बेटी के साथ शीला के पास पढ़ने आई। 


दो-तीन दिन के पश्चात कमला ने शीला से कहा........... "दीदी मुझे नहीं लगता गांँव के बाकी लोग भी आएंगे। "


शीला ने कहा......."तुम चिंता मत करो। इस क्रांति की चिंगारी को हवा लगने की बस देर है।"


और ऐसा ही हुआ । धीरे-धीरे गाँव की सभी बेटियांँ और औरतें शीला के पास पढ़ने के लिए आने लगी। चौधरी को जब इस बात की भनक लगी तो गुस्से से आगबबूला हो गया। उसने शीला के स्कूल पर हमला करने के लिए गुंडों को भेजा। किंतु सभी महिलाओं ने एकजुट होकर उन गुंडों को वहांँ से खदेड़ दिया।


यह सब देखकर चौधरी का गुस्सा तूफ़ान बन गया। उसने एक नहीं कई बार हमले करवाए पर हर बार उसे मुंँह की खानी पड़ी। सभी महिलाओं ने शीला के साथ मिलकर चौधरी के खिलाफ मोर्चा निकाला। और वहांँ की जिला पुलिस ने सभी महिलाओं का साथ दिया यह सब देखकर गांँव के सभी मर्द भी अपनी-अपनी पत्नियों का साथ देने के लिए तैयार हो गए अब चौधरी के पास वहांँ से भागने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा। 


इस प्रकार शीला के साथ और गांँव वालों की हिम्मत के कारण आज उस गांँव की सभी बेटियाँ स्वतंत्र होकर स्कूल जाती हैं। और गांँव वासी भी बेखौफ होकर अपनी अपनी जिंदगी जी रहे। चौधरी ने धोखे से जो उनकी जमीन अपने पास गिरवी रख पाई थी वह सब उन्हें वापस मिल गई।


कोई चौधरी नाम की रुकावट अब साक्षरता की ओर उनके बढ़ते कदमों को नहीं रोक सकती। अन्याय के ख़िलाफ़ ये बिगुल बजा स्वयं उनकी हिम्मत और हौसले से। गर वो आज हिम्मत न दिखाती तो ज़िन्दगी दहलीज से बाहर भी कुछ है कभी समझ ही नहीं पाती। 



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational