Umesh Shukla

Abstract

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Umesh Shukla

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गुरु नंदकिशोर

गुरु नंदकिशोर

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गुरु वही जो शिष्यों में सही मूल्य रोपे। ऐसे गुण विकसित करे जो उसके व्यक्तित्व को सही दिशा दे सके। कुछ ये ही सारे बातें अक्सर अपने बड़ों के मुख से सुनता रहता था रमेश। उसे इसका वास्तव में तब हुआ जब उसने कक्षा छह में अध्ययन के लिए उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के राजकीय इंटर कालेज में प्रवेश लिया। कालेज में जो समय सारिणी बनी उसके हिसाब से उसका दूसरा घंटा कृषि की पढ़ाई के लिए निर्धारित था। कृषि पढ़ाने की जिम्मेदारी श्रीनंद किशोर शुक्ल नामक शिक्षक के पास थी। अच्छी खासी लंबाई के साथ साथ ईश्वर ने उन्हें बुलंद आवाज का स्वामी भी बनाया था। वे कक्षा में नियमित रूप से आते और कुछ देर पढ़ाने के बाद पाठयक्रम से संबंधित विषय के बारे में इमला बोलकर सभी विद्यार्थियों को लिखाते। इसके पीछे उनका मजबूत तर्क था कि उनके विद्यार्थियों को सब कुछ कंठस्थ हो जाता है। इमला बोलते समय वो बड़ी तीखी नजर हर विद्यार्थी की कापी और उसकी गतिविधियों पर भी रखते थे। यह बात सामान्य तौर पर सभी विद्यार्थियों को पता नहीं होती थी। वो बोलते बोलते अचानक रुक जाते और किसी विद्यार्थी के सामने जाकर उसकी कापी देखते कि वह लिख भी रहा है अथवा नहीं।

रमेश को उनकी इस आदत के बारे में पता नहीं था। जाड़े के बड़े दिनों के अवकाश से पहले एक दिन कक्षा में नंदकिशोरजी इमला बोलकर लिखवा रहे थे। रमेश अनमने ढंग से वह कार्य कर रहा था। उसकी गति काफी धीमी थी। उसे इस बात का कतई अंदाजा नहीं था कि आज उसकी परीक्षा होनी है। कुछ बोलते बोलते अचानक गुरु रमेश के ठीक सामने आकर रुक गए। उन्होंने रमेश से वाक्य पूरा करने को कहा। रमेश की गति अपेक्षा से काफी कम थी सो वह तीन चार शब्द कम ही लिखे था। ऐसे में जो कुछ उसने कहा वो बोले हुए शब्दों में से कम था। इस पर गुरुजी ने उसकी कमजोरी पकड़ ली। बोले, अपनी जगह पर खड़े हो जाओ। बोलो, अब तक कितना लिखा है। उनके सवाल पर रमेश ने उन शब्दों का उच्चारण किया जिनको वो लिख चुुका था। उसे सुनकर पूरा क्लास हंसने लगा। इस पर गुरुजी ने कड़कदार आवाज में सभी को चुप कराया। रमेश का कान हौले से पकड़कर समझाया कि दुनिया की तरह तेज चलो वरना पिछ़ड़ जाओगे। क्या तुम पिछड़े रहना चाहते हो। कहो, अब पूरी संजीदगी से काम करेंगे। रमेश ने गुरुजी की बात में हामी जताई तो उन्होंने उसका कान छोड़ दिया। फिर वो इमला बोलने में जुट गए। उनकी ताकीद ने जादू सा असर दिखाया। आगे के दिनों में हर रोज रमेश उनके एक एक शब्द को गौर से सुनता और सबसे पहले लिखने का प्रयास करता। इससे रमेश में त्वरित ढंग से काम करने का जुनून पैदा हुआ जो पहले नहीं था।

रमेश को दूसरा सबक ईमानदारी का मिला था जिसका बीजारोपण भी कालांतर में नंदकिशोर जी ने किया था। उनका कहना था कि बच्चों को सदैव सत्य बोलना चाहिए। इससे उन्हें जीवन में कभी खुद को नीचे नहीं देखना पड़ता है। कृषि कक्षा के प्रयोगात्मक कार्य के लिए कक्षा आठ के विद्यार्थियों को कालेज परिसर में ही भूखंड आवंटित किए गए थे। सभी विद्यार्थी पूरे मनोयोग से अपने अपने क्षेत्र में सीजनल सब्जियों की फसलें बोते। शिक्षक समय समय पर उनकी निरीक्षण करते। फसलों की दशा के आधार पर प्रयोगात्मक के अंक दिए जाते। रमेश ने अपने भूखंड में मूली की फसल बोई थी। वो अच्छी खासी विकसित हुई। परीक्षा के दिन आने वाले थे। इसी बीच आसपास के कुछ लोगों ने उसके भूखंड से मूली को उखाड़कर उसका भोग लगा डाला। परीक्षा के दिन जब करीब आए तो रमेश को हालात का पता चला। बाकी विद्यार्थी मगन थे। लेकिन रमेश का मन सहमा हुआ था कि वह अपने खेत में क्या दिखाएगा। प्रयोगात्मक परीक्षा के पूर्व वह बात चुका था कि उसने मूली बोई है। उसकी फसल अच्छी है। बाकी दिनों में उसने यही रिपोर्ट शिक्षक को दी थी। परीक्षा के दिन अब वह क्या दिखाएगा इसी सोच से घिरा था। डरते डरते उसने अपनी समस्या कृषि शिक्षक को बताई। उसे डर था कि वह उसे फटकारेंगे या डांटेंगे लेकिन वैसा नहीं हुआ। बल्कि उन्होंने उसे पुचकारने के अंदाज में कहा कि कोई बात नहीं। तुमने ईमानदारी से अपनी समस्या बताई है। उस पर गौर किया जाएगा। हां, यह बात ध्यान रखो कि ईमानदारी की राह सदा सीधी होती है। उसे बोलने के लिए बार बार झूठ का सहारा नहीं लेना पड़ता है। कोई भी समस्या हो तो अपने गुरु से उसे साझा करो पूरी ईमानदारी के साथ। ऐसा करने से तुम्हें समस्या का सही समाधान मिलेगा। हुआ भी वहीं उन्होंने प्रयोगात्मक परीक्षा वाले दिन रमेश को अपना खेत गाजर की बोवाई की तैयारी करने के लिए कहा। कुछ सवाल पूछे और रमेश के ज्ञान की परख उन्होंने की। रमेश को उस परीक्षा में अच्छे अंक मिले। कुल मिलाकर वह कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करने में सफल रहा। वर्षों बाद भी वह अपने गुरु को मित्रों के साथ होने वाली बातचीत में याद करता है। वह मानता है कि गुरु नंदकिशोर जी ने न जाने कितने रमेशों के मन में अच्छे गुणों का विकास किया होगा। हालांकि आज नंदकिशोरजी जीवित नहीं हैं लेकिन उनके सुकर्मों के बिम्ब आज भी दिखाई देते हैं।



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