इतिहास गवाह है
इतिहास गवाह है
इतिहास गवाह है..। यमुना अल्हड़ता का.. ये कैसे ताजमहल के आँगन में बनी-संवरी सी गुज़रती थी.. .और लाल किले की लाल दीवारों को कैसे उछल-उछल के छूके गुज़रती थी । कितनी शहज़ादियों ने लाल किले / ताजमहल के झँरोखों से इसके पानी में अपना अक़्स निहारा है और इसी का पानी जब उनके हमाम में नहाने के लिए जाता था तो उसमें इत्र महकता था । तब ये यमुना पूरी नज़ाकत से इतराती थी। कितनी कहानी /किस्सों की ये गवाह है मगर आज जब में दिल्ली में सुबह टहलने के बहाने इसका चेहरा देखने के लिए गया तो इसके आधे हिस्से को सूखा देखा । इसके दोनों तरफ के किनारे तो खो गए । ये कमज़ोर और पतली लगी । इंसानी कंक्रीट के जंगल ने इसके दोनों बाज़ू काट लिए थे ।
और तो और, हर रोज़ बिना इजाज़त, रेत खनन जारी है ।
ये वही नदी है जिसके किनारे बैठ के कितने प्रेमियों ने कसमें खाईऔर वायदे किये । जिसके किनारे पर आज पन्नियों का कूड़ा एवं धार्मिक पूजन की सामग्री बिखरी हुई है । नदी ने बहते आस्था के अवशेष ... ज़हरीला होता पानी... कितने कारखानों का ज़हरीला द्रव्य ये पी कर भी जीवन अमृत बाँट रही है।
कुदरत के इस तोहफे को आइये हम और आप जितना निहार सकें निहार लें। आने वाली नस्लों को एक कहानी सुनाई जाया करेगी," बेटा !.. यहां कभी यमुना नदी बहती थी !"