झगड़े अच्छे हैं
झगड़े अच्छे हैं
"तूने फिर पासवर्ड बदल दिया, यार तेरा अकेले का फोन नहीं है वो, चल बता जल्दी क्या है पैटर्न" लड़की अपने भाई की तरफ देखते हुए बोली।
"ओए, चार्ज होने दे उसको, उसके बाद मेरा बैटल है" भाई ने कहा।
"जल्दी बता दे, नहीं तो मैं तो मम्मी से बोलने जा री, सुबह से तेरे पास ही था फोन, मैंने कुछ काम करना है" फोन उठाते हुए लड़की बोली।
"मैं बताऊंगा ही नहींं, जो मर्जी कर ले" लड़के ने कहा
"आज पापा से कहकर तेरा फ्री फायर डिलीट करवाउंगी मैं, ज्यादा अकड़ रहा है " लड़की ने कहा और फोन वापस चार्ज पर रखकर जाने लगी।
लड़का बड़ी तेजी से बोला "अबे, बता तो रहा हूँ, उल्टा जेड है"
"रहने दे अब, मैं तो जा रही पापा के पास" लड़की ने कहा और हॉल में आ गई जहां पापा अखबार पढ़ रहे थे।
"पापा वो भाई, उसने क्या हरकत की है पता है" लड़की ने कहा।
"किसका खून कर दिया, निशांत ने" अखबार का पेज पलटते हुए पापा ने भी मजाक की ठानी थी,
"खून नहीं किया, पैटर्न बदल दिया, और मुझे स्कूल का काम करना होता है। तो रोज पैटर्न बदल देता है, आज फिर बदल दिया।" लड़की ने कहा।
"किसका पैटर्न बदल दिया अब" अखबार को नीचे झुकाते हुए पापा बोले।
तभी माँ एक प्लेट में दो कप चाय के लाते हुए तीखे स्वर में इज्जत से डांटते हुए बोली- "सुनो जी, मैं कहती हूँ कि क्यो परेशान करते हो इतना, पंद्रह दिन हो गए ज्वेलर को मेरा मंगलसूत्र बनाने दिया है, और उसने बना भी दिया, तो ड्यूटी से आते आते लाना भूल क्यो जाते हो रोज"
"गुड़िया, ये लड़का सब कुछ बदल रहा है, इसे बोलो घर मे कोई बड़ा बदलाव लाये, मैं परेशान हो गया इस औरत से" पापा ने कहा।
माँ ने चाय का कप टेबल पर रखा और बोलना शुरू कर दिया- "बस यही रह गया, कर लो ना दूसरी शादी, मेरे से तंग आ गए हो आप, इतने बड़े बच्चे हो गए लेकिन शरम अब तक नहीं आई, बात बात पर झगड़ा करते है…….. (बिना रुके मां ने साढ़े चार मिनट तक बहुत सुनाया, तोता स्वर फॉर्मेट में)
पापा ने दोनो कान पर हाथ रखा और तेजी आंखे भींच ली।
लेकिन अब तक माँ शांत नहीं हुई तो टॉपिक बदलने के लिए आवाज देते हुए निशांत को बुलाया- "निशांत"
निशांत बहुत ही दुखी सा होकर, डरते डरते हॉल में आया।
"जी पापा"
हॉल में खड़े डरे हुए लड़के को पापा उपर से नीचे तक देख रहे थे।
"क्या हुआ निशांत, आज इतना क्यों है शांत"
"मेरे पास नहीं है फ्री फायर, ये देख लो" कहते हुए निशांत ने बिना कहे फोन पापा की तरफ बढ़ा दिया।
"फ्री फायर तो मेरे पास है बेटे, तेरा ठीक है जब मेरे पास लाता है मोबाइल तो अनइनस्टॉल कर दिया और फिर जाकर इंस्टाल कर लिया, लेकिन मैं क्या करूँ, मेरे पास तो ऐसा प्ले स्टोर ही नहीं है"
"बच्चे समझे ना समझे, मैं समझ रही हूँ कि तुम चाहते क्या हो, मैं जा रही अनइंस्टॉल होकर, तुम रहो यहीं कोई दूसरी इंस्टॉल कर लेना" "
"अरे यार, ले आऊंगा आज शाम को, पीछे ही पड़ जाती हो, एक तरफ गाड़ी की किश्त, ऊपर से घर बैठे इन बच्चों की फीस, इनकी ट्यूशन फीस, और तुम्हे एक मंगलसूत्र गले मे टाँककर एक और चाहिए, अभी तक तो चलो सुबह शाम चल रही थी इसकी क्लास, एक दो दिन में दोनो की टाइमिंग सेम ही जाएगी तो एक मोबाइल भी चाहिये होगा, मैं कब तक अपना मोबाइल घर छोड़कर जाऊंगा" इतना सब थोड़ी गुस्से में बोलने के बाद पापा थोड़ा शांत हुए और प्यार से बोले- "देखो, आर्डर दे दिया है , डिजाइन तुम्हारे पसंद की है तो जरूर वो लेकर आऊंगा, लेकिन समझा करो ना, हर चीज तत्काल कैसे करूँगा, महीने में एक सैलरी मिलती है वो भी पिछले दो महीनों से आधी आधी, इस वक्त दो वक्त की रोटी बहुत बड़ी बात है, गहने जरूरी नहीं"
मम्मी थोड़ा शर्मिंदा थी, और बच्चे भी। वैसे भी माँ पापा की लड़ाई में बच्चे तो बेचारे ही बन जाते है। क्योकि यहां किसी एक का पक्ष लेना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन होता है। लेकिन अगर एक दूसरे की परेशानी झगड़ने से पहले समझते हुए चलेंगे तो झगड़े नहीं होंगे। और झगड़े के बाद अगर समझ आ जाये तो…. झगड़े अच्छे है।