कातिल कौन, भाग 23
कातिल कौन, भाग 23
जैसे ही सरकारी वकील ने अपनी बहस समाप्त की , अदालत में शोरगुल होने लगा । सरकारी वकील की जोरदार बहस से कुछ लोग आनंदित होने लगे "अब पता चलेगा इन लैला मजनुओं को । जिंदगी भर तक जेल में सड़ते रहेंगे दोनों" । कुछ लोग कह रहे थे "सक्षम बहुत होशियार समझता था खुद को । शिकार करने आया था पर खुद शिकार हो गया । सच ही कहा है भैया कि जो औरों के लिए गड्ढा खोदता है वह उसी गड्ढे में गिरता है । अब ये भी जिंदगी भर जेल में सड़ता रहेगा" ।
कुछ लोग जो सक्षम, अनुपमा और अक्षत से सहानुभूति रखते थे वे सरकारी वकील नीलमणी त्रिपाठी की बहस से बहुत चिढे हुए थे । वे कह रहे थे "ये वकील है या स्टोरी राइटर ? बहस तो ऐसे कर रहा है जैसे किसी मैच की कमेंटरी कर रहा हो ? जैसे कि इसने सब कुछ अपनी आंखों से देखा हो जिसे यहां कोर्ट में सुना रहा हो । इसे तो वकालत के बजाय कहानी लेखक बन जाना चाहिए । बहुत बढिया कहानी सुनाता है यह वकील । या फिर इसे फिल्म निर्माता बन जाना चाहिए । इसकी बनाई हुई सारी फिल्में सुपर डुपर हिट होंगी" । जितने मुंह उतनी बातें । नीलमणी के चेहरे पर आत्म विश्वास का प्रकाश फैला हुआ था । उसने उड़ती सी निगाह अदालत में बैठे लोगों पर डाली और अपनी कुर्सी पर बैठ गया ।
अदालत का समय समाप्त हो रहा था । इस केस में अभी तक केवल एक पक्ष की ही बहस हो पाई थी । हीरेन को तो आज बहस करने का मौका मिला ही नहीं था । सरकारी वकील की बहस खत्म होने के बाद वह अपनी सीट से उठकर खड़ा हुआ और जज साहब से बोला
"योर ऑनर, अगर इजाजत हो तो मैं बहस आरंभ करूं" ?
जज ने घड़ी देखते हुए कहा "अदालत का समय समाप्त हो गया है आज । अब कल अपनी बहस सुनाना । ठीक है" ?
"आपका आदेश सिर माथे पर, हुजूर । पर एक निवेदन है कि जितने भी गवाह सरकारी वकील साहब ने आज प्रस्तुत किये हैं उन्हें कल भी आने के लिए पाबंद करना होगा क्योंकि उनसे मुझे कल जिरह करनी होगी" । हीरेन ने कहा ।
जज साहब ने आदेश सुना दिया "सभी गवाहान को कल भी अदालत में उपस्थित रहना है । अगर कोई भी गवाह कल उपस्थित नहीं हुआ तो उसे गिरफ्तार कर कोर्ट में लाया जायेगा । इसलिए सब लोग प्रात: 10 बजे हाजिर हो जायें" ।
आज की अदालती कार्यवाही खत्म हो चुकी थी । एक एक कर लोग जाने लगे । अदालत खाली होने लगी । मीडिया में खबरें चलने लगी "सक्षम, अनुपमा और अक्षत के खिलाफ गवाही हुई पूरी । सरकारी वकील ने अपनी दलीलों से अभियुक्तों को फांसी के फंदे तक पहुंचाने का इंतजाम किया । बचाव पक्ष के वकील ने दिन भर चुप्पी साधे रखी" ।
सक्षम, अनुपमा और अक्षत तीनों ही बहुत हताश और निराश नजर आ रहे थे । सामान्यत: सरकारी वकील ऐसी बहस कहां करते हैं ? वे तो बस खानापूर्ति ही करते हैं । पर नीलमणी त्रिपाठी ने तो उनकी सजा का पुख्ता इंतजाम कर दिया था । उन्हें जासूस हीरेन दा से यह उम्मीद नहीं थी कि वह दिन भर अदालत में बैठा बैठा पान चबाता रहेगा ? कितनी उम्मीदें थी उससे ? पर वह इतना ढपोर निकलेगा यह पता नहीं था उन्हें ? "क्या से क्या हो गया , हीरेन तुझ पे विश्वास कर के" । यही सोच रहे थे तीनों । पर अब क्या हो सकता है । अब तो सजा निश्चित ही है ।
मीना को हीरेन पर बड़ा गुस्सा आ रहा था । एक भी प्रश्न नहीं पूछा उसने । फिर वह कैसे बचाव करेगा इनका ? उसने अब तक क्या जासूसी की ? क्या सबूत इकठ्ठा किये हैं उसने ? ऐसा लगता है कि इसने इस अवधि में केवल पान ही खाये हैं और कुछ नहीं किया है । जब देखो तब "बकर बकर" पान चबाए जा रहा था । उसने नाहक ही उसे दिल दे दिया था । वह दिल देने लायक था ही नहीं । पता नहीं कैसे वह उसके प्रेम जाल में फंस गई थी ? पर अभी भी क्या बिगड़ा है ? वह अपना रास्ता अलग से अख्तियार करेगी ।
अदालत का समय खत्म हुआ तो मीना चुपचाप उठी और चुपचाप ही निकल गई । हीरेन की तेज निगाहों से वह खुद को छुपा नहीं सकी । हीरेन दौड़कर उसके सामने आ गया और रास्ता रोककर खड़ा हो गया ।
"छोड़ो मेरा रास्ता" ? मीना ने गुस्से से कहा
हीरेन उसके गुस्से में लाल हुए गालों को देखकर हंस दिया और कहने लगा "कोई हसीना जब रूठ जाती है तो और भी हसीन हो जाती है । हाय, क्या खूब लगती हो , बड़ी सुन्दर दिखती हो"
मीना चुपचाप रही और चुपचाप ही चलती रही । वह सड़क पर कोई तमाशा खड़ा करना नहीं चाहती थी । पर हीरेन कहां मानने वाला था । वह अपनी ही धुन में पान से रंगे हुए लाल लाल होठों को गोल गोल करते हुए हौले हौले से सीटी बजाता हुआ गाने लगा
"यूं रूठो ना हसीना मेरी जान पे बन जायेगी , मेरी जान पे बन जायेगी । यू रूठो ना हसीना" ।
हीरेन की इन हरकतों पर मीना दिल ही दिल में खुश हो रही थी । उसे बड़ा आनंद आने लगा था । जब जब हीरेन उसे इस तरह मनाता था तो उसे ऐसा लगता था कि वह जिंदगी भर ऐसे ही रूठी रहे और हीरेन उसे ऐसे ही मनाता रहे । वह नकली रौद्र रूप बनाकर चुपचाप चलती रही ।
अबकी बार हीरेन ने अपने तरकश से एक और तीर निकाला और उसे मीना पर छोड़ दिया
"मान जाइए मान जाइए, बात मेरे दिल की मान जाइए ।
इस जवां रात का, मुलाकात का क्या है मतलब पहचान जाइए"
मीना अभी भी टस से मस नहीं हुई तो हीरेन ने एक पैंतरा और चला
"जानूं मेरी जान, मैं तेरे कुर्बान
अरे मैं तेरा तू मेरी जाने सारा हिन्दुस्तान"
मीना तनिक कृत्रिम गुस्से से बोली
"मेरा पीछा करना छोड़ दो । नहीं तो" ?
"नहीं तो क्या ? जेल भेज दोगी ? भेज दे चाहे जेल में , प्यार के इस खेल में , दो दिलों के मेल में । तेरा पीछा ना , मैं छोडूंगा मीना रे, भेज दे चाहे जेल में , प्यार के इस खेल में"
वह दिवानों की तरह गाये जा रहा था । उसे यह याद ही नहीं रहा कि यह दिल्ली की सड़कें हैं , उसका नवाबखाना नहीं । इतनी देर में हीरेन की बहुत सारी फैन उसे इस तरह सड़क पर "इश्क के पेंच" लड़ाते हुए देखकर उसके इर्द-गिर्द इकठ्ठी हो गईं और उसके साथ छेड़छाड़ करने लगी । मीना सब कुछ सहन कर सकती थी पर हीरेन से किसी और की छेडछाड बिल्कुल बर्दाश्त नहीं कर सकती थी । उसने देखा कि चार पांच लड़कियां हीरेन को घेरकर खड़ी हैं तो उसने आव देखा न ताव और हीरेन का हाथ पकड़कर उसे जबरन खींचते हुए दौड़ने लगी । सड़क पर बड़ा गजब का नजारा था । लोगों ने अब तक लड़के द्वारा लड़की को भगाते हुए देखा था लेकिन यहां तो एक लड़की एक लड़के को सरेआम भागकर ले जा रही थी । लोग अचंभित होकर यह अद्भुत दृश्य देखने लगे ।
मीना और हीरेन दोनों भागते हुए एक पार्क में आ गए । मीना हीरेन की बांहों में समा गई । हीरेन के होठों से सीटी की आवाज में गीत निकलने लगा "दो दिल मिल रहे हैं मगर चुपके चुपके । सबको हो रही है खबर चुपके चुपके" ।
थोड़ी देर में वह हीरेन से अलग हो गई और तनिक तुनक कर बोली "दिन भर वह सरकारी सांड अदालत में 'काल्पनिक कहानियां' सुनाता रहा और आप मुंह बंद कर बैठे रहे ? बहुत नाराज हैं हम आपसे" । मीना अपनी भावनाओं पर ज्यादा देर तक काबू नहीं रख सकी और उसने अपने दिल की बात बोल ही दी
"अच्छा , ये बात है ? दरअसल बात ये है मीना कि अदालत के तौर तरीके ऐसे ही होते हैं । बीच बीच में टोकना ठीक नहीं होता है । अब कल देखना कि मैं क्या करता हूं" ?
"कल क्या करोगे" ?
"अभी नहीं बता सकता । कल खुद ही देख लेना । अभी तो मुझे जाना है और जो आज गवाह पेश हुए हैं उनकी जासूसी करनी है । अच्छा, अब मैं चलूंगा । हां, एक बात और, कल खूब सारे शरबती पान तैयार करवा कर लेती आना और थोड़ी थोड़ी देर में मुझे देती रहना फिर देखना इस शरबती पान का असर । समझ गई ना" ?
"जी, समझ गई" ।
मीना हीरेन को जाते हुए देखती रही । जब तक वह आंखों से ओझल नहीं हो गया, तब तक वह उसे देखती रही । बहुत प्यार करती थी वह उससे । यह बात हीरेन भी जानता था । हालांकि वह कहता नहीं था पर वह भी जान छिड़कता था उस पर ।
हीरेन को अभी बहुत काम करना था । आज दो गवाह पेश किए थे त्रिपाठी ने । एक सुभाष और दूसरा रुस्तम भाई । इनकी हकीकत पता करनी थी उसे । वह अपने काम पर लग गया ।