हरि शंकर गोयल

Crime Thriller

5.0  

हरि शंकर गोयल

Crime Thriller

मालपुए का झाड़

मालपुए का झाड़

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सरपंच साहब की हवेली पर शाम को खूब "हथाई" हुआ करती थी । ग्राम सेवक जी, पटवारी जी, मास्टर जी और रिटायर्ड थानेदार जी की महफिल जमती थी रोज । एक दो घंटे तक हंसी ठठ्ठा चलता रहता था । इसी बीच पूरे दिन की गतिविधियों पर चर्चा हो जाती थी । गांव में क्या हो रहा है, क्यों हो रहा है , इसकी भी जानकारी मिल जाती थी । इन बातों के अलावा जिन बातों में रस मिलता था, उन पर चर्चा ज्यादा चलती थी । मसलन, किस की औरत का किस आदमी से चक्कर चल रहा है । कौन आदमी किस खेत में "जुताई" करते हुए पकड़ा गया । ये बातें केवल रस के लिए ही नहीं होती थी , वरन इन बातों से उन सबके "उद्धार" का रास्ता भी मिल जाता था । पूरी मंडली इन बातों को रस लेकर सुनती थी । जहां कहीं पर थोड़ा सा भी मौका मिलता, एक एक करके पूरी टीम डुबकी लगाकर "मोक्ष" प्राप्त कर ही लेती थी । 

आज भी एक किस्सा ग्राम सेवक जी सुना रहे थे । कह रहे थे "सुनो , सब सुनो । आजकल हरिया के खेत में खिचड़ी पकने की सुगंध आने लगी है । हरिया की घरवाली का टांका पड़ोस के "लाला जी" से भिड़ रहा है । दो चार दिन से दोनों में पींगे बढ़ने लगी हैं । लालाजी आजकल हरिया के खेत में ज्यादा दिखाई दे रहे हैं । अभी तो बात हलकी फुलकी छेड़छाड़ तक ही सीमित है । मैंने अपना जासूस लगा रखा है दोनों के पीछे । जब कोई "अच्छा" समाचार आयेगा तब सबको बताऊंगा" । यों कहकर ग्राम सेवक जी ने सबकी ओर देखा । सब लोग "भूखे भेड़िये" की तरह लार टपकाये हुए खड़े थे । 

सरपंच साहब ने कहा "कब तक ऐसे ही सब्ज बाग दिखाते रहोगे ग्राम सेवक जी ? बहुत दिनों से कोई बढ़िया सी "दावत" नहीं हुई है । "बासी रोटियां" तोड़ते तोड़ते तंग आ चुके हैं हम तो । तो, जल्दी से कोई बढिया सा समाचार सुनाओ जिससे तन बदन में ताजगी का अहसास हो" । कहकर जोर का अट्टहास किया सरपंच साहब ने । पूरी महफिल में जैसे जान सी आ गई थी । 

पटवारी जी सरपंच साहब के थोड़ा और नजदीक आ गए । कहने लगे "मैंने सुना है कि अपने गांव में 'गंगा' आई है , हम जैसे पापियों का उद्धार करने के लिए । लगता है कि अब तो जल्दी ही सबको "डुबकी" लगाने को मिल जायेगी" । कुटिल मुस्कान बिखेरते हुए उन्होंने कहा था । 

सरपंच साहब बड़े कौतूहल से सुन रहे थे सारी बातें । मगर इशारों में बात करने की उनकी आदत नहीं थी इसलिए पटवारी पर वे गुर्राए "क्या पटवारी जी , आदत से मजबूर हो ? गोल गोल घुमाने की आदत जायेगी नहीं तुम्हारी ? अरे साले, कभी तो सीधी सट्ट बात कर लिया कर ? साफ साफ बता कौन सी गंगा और कैसी डुबकी ? पहेली मत बुझा" । 

"तो सुनो सरपंच जी, आज अपने गांव का गरीब दास कहीं से दो लाख रुपए में कोई गंगा नाम की लड़की लाया है शादी करके । सुना है कि बहुत सुंदर है और अभी तो वह "निर्मल" है । पता नहीं कब ये गरीब दास उसमें डुबकी लगाकर उसे "मैली" कर दे । अभी तो 18-19 की बताई जाती है वह । न जाने कहां से हूर की परी इस "लंगूर" के हाथ लग गई है । अगर कोई जुगाड़ बैठा लो तो सबके सब "गंगा" में डुबकी लगाकर जीवन सुफल कर लें" । पटवारी जी ने ऐसी बात कही थी जिसके लिये कौन मना करता ? सब तैयार थे डुबकी लगाने के लिए । 

मास्टर जी बोले "पटवारी जी सही कह रहे हैं । गरीब दास का ब्याह हो नहीं रहा था । जाति बिरादरी वाले ज्यादा खर्चा मांग रहे थे । बेचारा कहां से लाता ? 35-40 साल का तो हो गया था बेचारा । कब तक अपने हाथ रगड़ता ? इसलिए झारखंड से "गंगा" को दो लाख रुपये में ले आया । शादी तो एक बहाना है, बस । कहते हैं कि गंगा घर में सौतेली बेटी है । सौतेली मां ने दो लाख रुपये में बेच दी गरीब दास को । गंगा जैसी "हूर की परी" गरीब दास जैसे "लंगूरों" के लिए थोड़ी ही बनी है । फिर हमारे जैसे "कलियुगी देवताओं" को कौन "भोग" लगायेगा" ? 

अब बारी रिटायर्ड थानेदार जी की थी । गंगा का नाम सुनकर ही उनके मुंह में पानी आ गया था । कहते हैं कि "गंगाजल" के आचमन से ही सब पाप खत्म हो जाते हैं । यहां तो "गंगा" में "डुबकी" लगाने की योजना बन रही थी । यानी कि आगे पीछे की सात पीढ़ियां तर जानी थी । तो शुभ काम में देर क्यों ? फिर "गंगा" के मैली होने का खतरा भी तो है । वो गरीब दास कब से इंतजार कर रहा है अपने उद्धार का । अब जबकि उसके घर खुद "गंगा" उतर कर आई है तो वह तो जल्दी से जल्दी डुबकी लगायेगा ही । और आखिर उसके पास तो लाइसेंस भी है । कहने लगे "सरपंच साहब , अभी उस "गरीबड़े" को बुलवाओ और पहले तो उसे पाबंद करो कि वह अपने गंदे हाथों से गंगा को छूकर उसे अपवित्र ना करे । और फिर कोई ऐसी "जुगत" लगाओ कि हम सब "गंगा स्नान" कर स्वर्ग लोक का आनंद ले लें" । 

बात सबके भले की थी इसलिए सबको पसंद आ गई । सेवक "भौंदू" को बुलवाया और कहा "जाकर तुरंत गरीबड़े" को लेकर आ । अभी की अभी । अपने संग ही लेकर आना । समझ गया" । सरपंच साहब भौंदू पर दहाड़े । 

"जो हुकुम, अन्नदाता" । और भौंदू चला गया । 

उधर गरीब दास को तो आज "कारूं का खजाना" मिल गया था । इसलिए आज के दिन को "सेलिब्रेट" करने की तैयारी कर रहा था वह । आज तो "इंगलिश" की बोतल मंगवाई थी उसने । चखने के साथ "मुर्गे" की भी व्यवस्था की थी । वह अभी तैयारियों को अंतिम रूप दे ही रहा था कि भौंदू राम ने उसे सरपंच साहब के यहां अभी चलने का हुकुम सुना दिया । रंग में भंग डाल दिया साले ने । 

उधर "गंगा" की स्थिति बड़ी विचित्र थी । पैदा होने के साल भर बाद ही उसकी मां चल बसी थी । बेचारी को पड़ोसियों ने ही संभाला । उसका बाप शराबी हो गया । दो तीन साल बाद उसने दूसरी शादी कर ली । सौतेली मां क्या होती है ये गंगा को तब पता चला , जब उसकी नई मां घर में आई । नन्ही सी जान और उस पर इतने जुल्म ? वो भी एक औरत के द्वारा ? लोग मर्दों को बहुत कोसते हैं कि वे निर्दयी हैं, अत्याचारी हैं मगर औरतों पर जितने जुल्म औरतों ने ही ढाये हैं उसके मुकाबले में मर्दों ने बहुत कम जुल्म ढ़ाये हैं । 

खाने के लाले पड़ गए गंगा के लिए । घर का सारा काम गंगा से ही कराया जाने लगा । गंगा उस परिवेश में बड़ी हो रही थी । धीरे धीरे गंगा में जवानी का झरना फूटने लगा । भगवान भी सबको कंगाल नहीं रखता है , कुछ न कुछ तो अवश्य देता है । गंगा को निर्मल सौंदर्य दे दिया । जबसे गंगा जवान हुई थी उसकी सौतेली मां ने उस पर अत्याचार करने कम कर दिये थे । उसका दिल पसीजने वाली कोई बात नहीं थी । वह तो इतना जानती थी कि अब पिटाई से गंगा के शरीर पर निशान पड़ जायेंगे और फिर उसे मुंहमांगी रकम नहीं मिलेगी । इसलिए उसने गंगा के प्रति थोड़ी नरमी बरतनी शुरू कर दी थी । गंगा इतने अत्याचार सहन करते करते थक चुकी थी । अब उसका मन विद्रोही होने लगा था । जब उसका सौदा दो लाख रुपए में गरीब दास से किया जा रहा था तब एक बार तो वह मर जाना चाहती थी । मगर गरीब दास की भोली शक्ल देखकर उसने अपना इरादा बदल दिया था । सौतेली मां के अत्याचार सहने से अच्छा है एक अधेड़ आदमी की पत्नी बनकर रहना । ऐसे व्यक्ति अपनी कम उम्र की पत्नियों को "रानी" बनाकर रखते हैं और खुद उसके "हुक्म के गुलाम" होते हैं । तो गंगा ने महसूस किया कि अब "रानी" बनकर राज करने का अवसर आ गया है । इसलिए वह खुशी खुशी गरीब दास के साथ आ गई थी । 

जैसे ही भौंदू राम ने सरपंच का आदेश सुनाया, गंगा को दाल में कुछ काला लगा । उसने इशारे से गरीब दास को अपने पास बुलवाया और सरपंच के बुलावे का कारण पूछा तो गरीब दास ने अनभिज्ञता जाहिर की । उसे अचानक याद आया कि जब वह घर में प्रवेश कर रही थी तो उसकी पड़ोसन एक औरत से कुछ कह रही थी । उसने अपने कान उधर ही लगा दिये थे । औरतों की सुनने और सूंघने की शक्ति बहुत होती है । वह कह रही थी "गरीबड़ा" लुगाई तो बहुत शानदार लायो है पर इसे सरपंच और दूसरे लोगों से कैसे बचायेगा" ? और वे दोनों खिलखिलाकर हंस पड़ी । गंगा को लगा कि बुलावे का कारण शायद वही है । उसने गरीब दास के कान में कहा "अगर मेरे बारे में कुछ भी पूछे तो कह देना कि आजकल गंगा में 'बाढ़' आई हुई है और अभी डुबकी नहीं लगाई जा सकती है" । सिखा पढ़ा कर उसने गरीब दास को भेज दिया । 

वहां पर दरबार सजा था । सरपंच साहब राजगद्दी पर विराजमान थे बाकी लोग दरबारियों की तरह दोनों ओर बैठे हुये थे । ग्रामसेवक महामंत्री बने बैठे थे । गरीब दास को अपराधी की तरह पेश किया गया । 

महामंत्री ने कहा " क्यों रे गरीबड़े, तेरी इतनी हिम्मत कि तू बिना राज दरबार को बताए "बींदणी" ले आया और वह भी झारखंड से । बहुत बड़ा अपराध कर दिया है तूने" । 

गरीब दास दोनों हाथ जोड़कर बोला "रहम, अन्नदाता रहम । मुझे पता नहीं था । अगर पता होता तो मैं अवश्य सूचना देता" । 

"तुझे पता नहीं था इससे तेरा अपराध खत्म नहीं हो जाता है । इसका दंड अवश्य मिलेगा तुझे । और दंड यही है कि तुझे अपनी औरत को राजा जी की खिदमत में सात दिन के लिए भेजना पड़ेगा । राजाजी और बाकी दरबारी लोग "गंगा" में "डुबकी" लगाकर स्नान करेंगे तब जाकर तेरा अपराध क्षम्य होगा । समझ गया" ? 

"समझ गया हुकुम । पर मेरी इतनी सी अरज है कि आजकल "गंगा में बाढ़" आई हुई है । पाणी साफ कोन्या है । बाकी जैसा आपका हुकुम" ? 

पूरे दरबार में कानाफूसी शुरू हो गई । राजा जी ने कड़क कर पूछा "तुझे कैसे पता कि गंगा में बाढ़ आई हुई है" ? 

"हुकुम, गंगा ही कह रही थी" । 

थोड़ी देर सन्नाटा छाया रहा । फिर महामंत्री जी बोले "जैसे ही बाढ़ का पानी उतर जाये, तू हमको फौरन इत्तिला देना । क्यों अन्नदाता" ? उसने आंख मारते हुए सरपंच की ओर देखा । 

"बिल्कुल सही बात । अब तू जा सकता है । और हां । एक बात कान खोलकर सुन ले । गंगा अब तेरे घर में हमारी अमानत के रूप में रहेगी । इसलिए उसे छूने की गलती मत कर देना । ध्यान रखना कि वह "मैली" ना हो जाये । अगर ऐसा हुआ तो तेरी वो गत होगी कि तेरी रूह भी कांप उठेगी" । और गरीब दास को धक्के मारकर निकाल दिया गया । 

घर आकर गरीब दास निढ़ाल सा गिर पड़ा चारपाई पर । गंगा ने उसे ठंडा पानी पिलाया और अपने आंचल से उसका मुंह साफ किया । आंचल से ही उसकी हवा करने लगी । गरीब दास ने सब बात बता दी । गंगा का अनुमान सही साबित हो गया । "बाढ़" के बहाने से उन्हें कुछ समय मिल गया था । गंगा अपनी सौतेली मां के व्यवहार से वैसे ही दुखी थी और यहां भी भेड़िए उसे नोंचने पर आमादा थे । उसने गरीब दास के चेहरे को देखा । एकदम भोला भाला, मासूम सा चेहरा था उसका । आज गंगा को उस पर पहली बार प्यार आया था । आज उसने उसे दिल से पति माना था । मन ही मन उसने कोई संकल्प किया और गरीब दास को अपनी योजना बताई । गरीब दास से पूछा कि क्या वह इस योजना में उसका साथ देगा ? गरीब दास को महसूस हो गया था कि सरपंच क्या चाहता है ? उसने योजना में साथ देने की स्वीकृति दे दी । 

योजना के मुताबिक गरीब दास और गंगा अपने मकान के चारों ओर खाली पड़ी जमीन खोदने में लग गये । पड़ोसियों ने पूछा कि ये क्या कर रहे हो तब गंगा ने बता दिया कि रात गरीब दास को एक सपना आया था जिसमें किसी देवता ने इस जमीन में धन गढ़े होने के बारे में बताया था । देवता कह रहा था कि जिस रात मालपुआ के झाड़ में मालपुआ लग जायें उस दिन खुदाई करने से यहां धन मिलेगा । गंगा ने बहुत से मालपुए बनाये और बड़ी खूबसूरती से एक झाड़ पर चिपका दिये । अपनी पड़ोसनों के साथ वह झाड़ के पास गई तो दोनों पड़ोसनें चिल्ला उठीं । "अरे, उस झाड़ पर मालपुए आ रहे हैं" । 

गंगा की बांछें खिल उठी । उसकी योजना सफल हो रही थी । उसने वे सब मालपुए इकट्ठे कर लिये और दोनों में बांट दिये । 

खुदाई का काम जोर शोर से चला । रात दिन । 25-30 फुट गहरी खुदाई की गई । एक बक्से में 500, 500 की गड्डियां डाल दी । ऊपर नीचे असली और अंदर नकली नोट भर दिये । पडोसियों को दिखाया और अंदर रख दिया । 

दूसरे दिन गरीब दास बाजार गया । वहां पर पटवारी जी, ग्राम सेवक जी और मास्टर जी बैठे हुए थे एक किराने की दुकान पर । गंगा ने खूब सिखा पढ़ा कर भेजा था गरीब दास को । उन्हें देखकर गरीब दास बोला 

"राम राम जी । सुना है कि गंगा में बाढ़ का पानी उतर गया है । आप लोग हरिद्वार जाकर गंगा में डुबकी लगाने वाले थे न ? तो कब जा रहे हो हरिद्वार" ? 

वे लोग उसका इशारा समझ गये । बोले "जब तू कहे तब चले जायें । बता गंगा मैया कब बुला रही है" ? 

"गंगा तो हरदम बुलाती रहती है, अन्नदाता । आज पुष्य नक्षत्र है । बहुत पवित्र दिन है । आज ही चले जाओ , अच्छा रहेगा । और हां, सब एक साथ ही डुबकी लगाना । बड़ा पुण्य मिलेगा" । गरीब दास वहां से आ गया और गंगा को सारी बातें बता दी । 

गंगा तैयारी में जुट गई । नहा धोकर बढिया सा श्रंगार कर इत्र फुलेल लगाकर बैठ गई । सबके लिए "इंगलिश" मंगवाई गई । दूसरी चीजों का भी बंदोबस्त किया गया । एक हॉल में बैठने की व्यवस्था की गई । रात के दस बज रहे थे । पूरा "दरबार" हाजिर हो गया था । 

गंगा ने झीना सा घूंघट निकाल रखा था । दीपक की रोशनी में झीने घूंघट से वह किसी अप्सरा की तरह लग रही थी । सरपंच तो उसे देखकर पागल सा हो गया था और उसका हाथ पकड़ कर उसे अपनी गोदी में बैठाने लगा था । गंगा ने उसका हाथ झिड़क कर उसे नैनों से ही बरज दिया था और हौलै से उसके कानों में फुसफुसा कर कहा "इतनी बेताबी ठीक नहीं है राजाजी ! आज की रात मैं तुम्हारी ही हूं । जी भरकर डुबकी लगाना । पर पहले डुबकी लगाने लायक तो हो जाओ । और उसने एक एक गिलास दारु सबको पकड़ा दी । वह गिलास खत्म भी नहीं हुआ था कि सब के सब दरबारी कुर्सियों पर ही लुढ़क गये थे । 

गंगा दौड़कर घर से "दरांती" ले आई । गरीब दास ने आज ही उस पर धार धरी थी । गरीब दास ने जोर से एक वार सरपंच की गर्दन पर किया । सिर कट कर अलग गिर पड़ा । गंगा उसे उठाकर पीछे खुदी जमीन में डाल आई । 

गरीब दास ने बारी बारी से सभी दुष्टों के सिर धड़ से अलग कर दिये और पीछे 30 फुट गहरे गाड़ दिये । दोनों ने मिलकर उनके शवों को भी ठिकाने लगा दिया । रात भर वे दोनों गड्ढे भरते रहे । सुबह उसमें पालक बो दिया । खून के सब निशान साफ कर दिये । दरांती तालाब में फेंक दी । जिन कपड़ों पर खून के दाग लग गये थे उन्हें केरोसिन डालकर जला दिया और राख को पालक में डाल दिया । 

सात आठ दिनों में पालक काफी बड़ा हो गया था । पूरे गांव में राज दरबार के हरिद्वार जाने के चर्चे हो रहे थे । पंद्रह दिन तक भी जब वे नहीं लौटे तो सबको चिंता हुई । पुलिस में रिपोर्ट की गई । पुलिस की जैसी कछुआ चाल होती है , वैसे जांच होती रही । 

घूमते घूमते पुलिस गरीब दास के पास आई और पालक की खेती के बारे में पूछताछ करने लगी । पड़ोसियों ने बताया कि जिस दिन मालपुए के झाड़ में मालपुए आए थे उस दिन खुदाई हुई थी । खुदाई में 500-500 के नोटों का एक बक्सा मिला था । उस दिन पालक बोया था । पुलिस वाले पड़ोसियों को कह रहे थे "तुम लोग पागल तो नहीं हो ? मालपुए का भी कोई झाड़ होता है क्या" ? 

"होता है, जरूर होता है । हमने देखा है और हमने उस झाड़ के मालपुए खाए भी हैं" । 

थानेदार जोर से चिल्लाया "अरे, किन मूर्खों के बीच ले आए हो यार ? जल्दी से घर की तलाशी लो कि घर में कोई नोटों से भरा कोई बक्सा है क्या" ? 

घर का चप्पा चप्पा छान मारा मगर कुछ नहीं मिला । पुलिस पैर पटकती हुई चली गईं । गरीब दास और गंगा की जिंदगी अब जहन्नुम बन गई थी । 



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