Akshat Garhwal

Crime Thriller

5  

Akshat Garhwal

Crime Thriller

ट्वाईलाईट किलर भाग -4

ट्वाईलाईट किलर भाग -4

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मुंबई के कत्लेआम के ठीक बाद, दिल्ली

प्रधानमंत्री भवन

प्रधानमंत्री का यह सरकारी भवन था, बस कहने को सरकारी था पर जब बात आलीशान होने की हो तो बड़े-बड़े अमीरों के घर भी फीके पड़ जाते है। ऐसा नहीं है कि ये भवन बहुत ही ज्यादा बड़ा है पर उसकी सुंदरता और भव्यता की बात ही अलग थी। रात के करीब 2 बज रहे थे, उस वक्त अक्सर लोग सोये रहते है, जबकि प्रधानमंत्री के भवन के ठीक सामने आकर एक ‘थार’ जीप रुकती है, उसका लाल रंग छत पर लगे लाइट्स की कतारों के बेमिसाल और जगमग हो गया था। उसके दरवाजे के खुलते ही एक रौबदार और भरे हुए शरीर वाला आदमी बाहर आता है जिसकी उम्र करीब 35 साल की लग रही थी। लंबा सा शरीर आसानी से 6 फुट का तो होगा ही, हल्का सा गोरा रंग लिए हुए चॉकलेटी चेहरा, रंग किये हुए सुनहरे बाल, आंखों पर छोटा गोल रिम वाला चश्मा, हल्के नीले रंग का सूट पेंट, अंदर की तरफ स्ट्रिप वाली सफेद टीशर्ट जिस पर पीले धब्बे वाली टाई लगी हुई थी। इतना प्रभावशाली व्यक्तित्व आसानी से देखने को नहीं मिलता! उसे देख कर एक ही नजर में कहा जा सकता था कि ‘ये बहुत ताकतवर है’ उसका चेहरा गर्व से ऊंचा था और चाल में एक अलग ही धौंस थी जैसे जंगल में शेर चल रहा हो........उसका नाम हिमांशु राणा था!

उसके दरवाजे पर आते ही प्रधानमंत्री का सेक्रेट्री खुद आवाजाही करने के लिए बाहर आया और यह कहते हुए जल्दी से उसे अंदर ले गया कि ‘प्रधान जी ने बहुत ही जरूरी काम के लिए आपको बुलाया है’ एक बार के लिए हिमांशु ने चारों तरफ नजरें मारी.......पहरा बहुत ही जबरदस्त था, कैमरों से लेकर 50 हथियार बंद ट्रेन किये हुए सिपाही। कुछ ही देर में दरवाजों को पार करते हुए हिमांशु और सेक्रेटरी उस कमरे में पहुंच गए जहाँ पर सफेद कुर्ता पहने हुए प्रधानमंत्री जी खड़े हुए थे, उसके सफेद बाल और दाढ़ी पर वो कुर्ता जच रहा था। हिमांशु और प्रधामनमंत्री को अकेला छोड़ कर वोसेक्रेट्री वहाँ से चल दिया, दरवाजा बंद कर दिया गया।

“तुम्हारे बिजी शेड्यूल में से समय निकलने के लिए शुक्रिया.” प्रधानमंत्री जी की आवाज में दृढ़ता थी।

“मैं बिजी नहीं था प्रधान जी, बस आपके दिए हुए काम को थोड़ा जांच रहा था” हिमांशु ने ताने हुए शरीर को लेकर कहा

“अरे हाँ, मैंने तुन्हें कौन सा काम दिया था?”

“क्या प्रधान जी? इतनी जल्दी भूल गए क्या.......न्यूयॉर्क में हुए हादसे को लेकर आपने अमेरिका के रक्षा मंत्री से बात करने और केस की डिटेल्स को जांचने के लिए कहा था। सच कहूं तो वो बहुत ही इंटरेस्टिंग केस था,अफसोस वैसे केस हर किसी को सॉल्व करने को नहीं मिलते.......हम्म....” हिमांशु के शब्दों में थोड़ी निराशा थी

“इसलिए तो तुम्हारे टेस्ट के हिसाब से एक केस लेकर आया हूँ तुम्हारे लिए” प्रधानमंत्री हिमांशु की ओर मुड़े और टेबल पर रखी हुई एक फ़ाइल आगे की ओर सरका दी “हमारे बहुत ही प्रतिभाशाली रिसर्चर मिस्टर नवल सरकार की हत्या के केस के बारे में तो सुना ही होगा न?”

“हां, ये वहीं केस है ना जिसमे हत्या करने वाला जय अग्निहोत्री नवल का ही सबसे अच्छा दोस्त था। मुझे लग ही था कि पुलिस के लिए वो केस हैंडल करना थोड़ा मुश्किल होगा। क्या है ना कि उन्हें आराम की आदत हो गयी है”

“वो केस दरअसल सी बी आई को सौंप दिया गया था......, वहाँ के कलेक्टर के आदेश के कारण!”

सी बी आई का नाम सुनते ही हिमांशु को थोड़ा अजीब लगा क्योंकि सी बी आई ऐसे सामान्य केसों में आसानी से नहीं आती। ऊपर से ऐसी कोई भी खबर हिमांशु को नहीं थी कि यह केस सी बी आई चला रही है।

“दरअसल अभी-अभी खबर आई है कि जय अग्निहोत्री ने मुंबई के एक बंगले में कत्लेआम कर दिया है? और वह भी इतना भयानक कि पूरी पुलिस फोर्स की रूह कांप गयी है” प्रधानमंत्री जी की बात सुनकर हिमांशु ने चुपचाप सर हिलाया।

“इसलिए मैं आज से यह केस तुम्हें सौंपता हूँ, सी बी आई के साथ मिलकर या अकेले, जैसे तुम्हे ठीक लगे काम करो पर इस केस की गहराई तक पहुंचो। और ‘हाँ’ जय अग्निहोत्री के सर पर खून सवार है...उसे किसी भी हालत में रोको”

“पर सर आपने मुझे ही यह केस क्यों सौपा?” हिमांशु ऐसे सवाल करता तो नहीं था पर वो ज्यादातर इंटरनेशनल और अंडरवर्ल्ड से रिलेटेड खतरनाक केस पर काम करता था, उसके लिए ये केस मामूली था। आखिर हिमांशु राणा सीधे प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के अधीन काम करने वाला बेस्ट अफसर था, उस से बेहतर अफसर पूरे भारत या कह लो कि आधे विश्व में भी न हो? ऐसे अफसर को इस बात पर सवाल तो होगा ही कि उसे एक शहर का केस दिया जा रहा है।

प्रधानमंत्री जी हिमांशु को अच्छे तरह से जानते थे, इसलिए मुस्कुराते हुए बहुत ही जोशीली आवाज में उन्होंने कहा

“क्योंकि मुझे लगता है ये अब तक का सबसे मुश्किल और खतरनाक केस होने वाला है”............ हिमांशु के लिए यह लाइन काफी थी, केस पर लगने के लिए!

वर्तमान; सी बी आई हेड आफिस

मुंबई

हिमांशु राणा ने राजन के चल रहे इंटेरोगेशन को रोकते हुए एंट्री मारी थी। हालांकि राजन को इस बात से कोई भी फर्क नहीं पड़ता था कि वो कौन है? अगर हिमांशु शेर था तो राजन भी जहरीले नाग से कम नहीं था। वह रुका और थोड़ा आगे बढ़ कर बोला

“मैंने तुम्हें नहीं पहचाना...... तुम हो कौन?...और मुझे रोकने वाले कौन होते हो?” आवाज वैसी ही ठंडी थी पर अभिमान की ध्वनि तब भी हिमांशु के कानों तक पहुंच गई थी

हिमांशु ने अपना पर्स जैसा बैच निकाला जिसके ऊपर सिल्वर रंग का स्टार बना हुआ था, उसे ऊपर करके सामने दिखा दिया जिसमें हिमांशु की डिटेल्स भी थी,

“हिमांशु राणा, स्पेशल अफसर ऑफ सिल्वर स्टार फोर्स, डिरेक्टरली अंडर प्राइम मिनिस्टर(Special officer of Silver Star Force, directly under Primeminister)....मेरे पास यह केस हाथ में लेने का ना सिर्फ आर्डर है बल्कि यह मेरा भी फैसला है”

ऐसा लगा जैसे हिमांशु की बातों का राजन पर कोई भी प्रभाव नहीं पड़ा, वह थोड़ा और आगे बढ़ा और हिमांहसु से एक हाथ की दूरी पर खड़ा होकर कुटिल मुस्कान के साथ बोला

“मुझे नहीं लगता कि तुम्हारे जैसे बड़े अफसर को इस केस में इन्वॉल्व होने की जरूरत है, मैं इस केस को हैंडल भी कर लूंगा और...1 हफ्ते में पूरा केस सॉल्व करके तुम्हारे हाथों में सौंप दूंगा....”

“ठीक वैसे ही जैसे जय का केस सॉल्व कर दिया था...मुझे तो सुनने में आया था कि जय ने तुम सब की बैंड बजा कर यहाँ से कल्टी मार ली थी। .....और तुम अब भी कह रहे हो कि तुम यह केस सॉल्व कर सकते हो,...एक सिविलियन तो तुम से संभल नहीं और पूरा केस संभालने की बात कर रहे हो?....औकात है इतनी?”

“तेरी इतनी हिम्मत हरामजादेssssss.....” राजन गुस्से में हिमांशु की ओर बढ़ा, उसका चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था। बात तो सत्य थी कि जय ने इन की धुलाई भी की थी और भागा भी था और यह इंसल्ट अब बर्दाश्त के बाहर थी। राजन ने जाकर हिमांहसु की कॉलर पकड़ ली। सभी सी बी आई अफसर अपनी कुर्सियों को छोड़ कर इस ओर भागे....पर हिमांशु, कम थोड़े ही था।

हिमांशु ने कुछ भी नहीं किया, राजन को हाथ भी नहीं लगाया पर उसकी आवाज में जैसे बहुत सारा दबाव आ गया “सुन बे मादर*द!sss... यह गर्मी कहीं और जाकर दिखाना, मेरे सामने ज्यादा उछला तो काट कर फेंक दिया जाएगा और तेरा तो पक्ष लेने वाला भी कोई नहीं होगा...”

“अच्छा,...तो काट कर दिखा। मैं भी तो देखूँ किस बात का स्पेशल अफसर है तू...” राजन के चेहरे पर कुटिल हंसी थी। असल में वह हिमांशु की गर्मी को पसंद कर रहा था और एक मुकाबला चाहता था, राजन किसी भी मामले में हिमांशु के बराबर नहीं तो उस से कम भी नहीं था।

अगले ही पल सी बी आई का स्टाफ आ गया और दोनों को एक दूसरे से अलग किया गया, दोनों ने ही को पंगा नहीं किया और यह झगड़ा यहीं पर खत्म हुआ। हिमांशु ने अपनी कोट के जेब से एक लेटर निकाला और राजन के हाथ में थमा दिया

“आज से यह केस मेरा हुआ? अब जो भी बात करनी है.....प्रीमेमिनिस्टर से कर लेना” हिमांशु ने अकड़ में आंख मारी।

यह सार नजारा शुरू से आखिर तक आसुना और निहारिका देख रहीं थी, निहारिका को आश्चर्य हो रहा था कि जय का केस एक स्पेशल अफसर लेने वाला है और वहीं आसुना ने चैन की सांस ली...क्योंकि उसे हिमांशु के अंदर का अच्छा व्यक्तित्व दिख गया था।

“उन दोनों के हाथ खोलो, इसी वक्त” हिमांशु की बात मानकर सी बी आई के स्टाफ ने उन दोनों की हथकड़ियां खोल दी, उसने उन दोनों को बाहर चलने का इशारा किया और वह भी उनके पीछे-पीछे जाने लगा

“जल्दी ही मुलाकात होगी...मिस्टर हिमांशु राणा!” राजन की आवाज में एक बार फिर ठंडक थी पर चुभने वाली...

हिमांशु एक पल के लिए रुका पर पलटा नहीं.....

“जरूर!” वह मुस्कुरा कर बोला “बस अगली बार मिलने तक जिंदा रहना” यह आखिरी लाइन उसने आसुना के गाल पर थप्पड़ देखते हुए कहा था और वो चल दिया।

सी बी आई के आफिस से बाहर निकलते ही निहारिका और आसुना ने चैन की सांस ली, निहारिका को डर था कि अगर हिमांशु वहाँ पर समय पर नहीं आता तो राजन पता नहीं आसुना का क्या हाल करता? ऐसा लग रहा था जैसे किसी गैस चैम्बर से बाहर निकल गए हों.... सामने टैक्सी नहीं खड़ी थी, शायद सी बी आई के लोगों ने उसे डर कर भगा दिया था।

“तुम दोनों ठीक हो?...” हिमांशु ने नरमी के साथ पूछा

“मैं तो ठीक हूँ, उसने आसुना को बहुत तेज मारा था” निहारिका ने आसुना के गाल पर अपनी जेब से निकाल कर एक रुमाल रखते हुए कहा

“चिंता मत करो, अब वह तुम्हें परेशान नहीं करेगा......” हिमांशु की आवाज में आश्वासन था, पर वह उन दोनों से कुछ दूरी पर खड़ा होकर उसी रास्ते की ओर देख रहा था जहां से वो टैक्सी लेकर आया था

“आप पैदल ही आये थे क्या?” निहारिका की आवाज में थोड़ा व्यंग भर हुआ था

“अरे नहीं! आया तो टैक्सी में था पर लगता है इन लोगों ने उसे डरा कर भगा दिया” वह निहारिका को देख कर मुस्कुराया, उन दोनों ने एक हंसी का आदान-प्रदान किया। उन दोनों को देख कर आसुना ने होंठों को कुछ ऐसे हिलाया जिस से छोटी सी मुस्कान बन गयी।

कुछ दूरी से किसी गाड़ी के इस ओर आने की आवाज आई और सभी ने उसी ओर देखा, एक लाल बत्ती वाली ‘डस्टर’ इसी ओर आ रही थी। उस कर को गौर से देख कर हिमांशु मुस्कुराया, यह अतुल की पुलिस वाली गाड़ी थी। गाड़ी उन लोगों के सामने आकर रुकी, अतुल बाहर निकला और हिमांशु तो बाहें खोले ही खड़ा हुआ था

“आ आकर झप्पी तो दे दे जरा, बेटेsssssss.... उफ....!” हिमांशु ने बहुत ही उत्साहित और गिलगिले स्वर में कहा था, पर अतुल ने आकर सीधे उसकी पसलियों में छोटा सा मुक्का मार दिया

“हरामखोर, क्या बोल रहा था तू.... कि अगली बार जब भी गोआ आउंगा तो तुझ से जरूर मिलूंगा” अतुल ने बनावटी स्वर में कहा “साहबजादे पिछले 3 सालों में कम से कम 10 बार गोआ आये होंगे और हर बार यह कह कर गायब हो जाते थे कि ‘काम बहुत है यार!’...अब चल जरा घर तेरी खबर लेता हूँ”

“हाँ, हाँ.. भी ले लेना खबर। पर सच कह रहा हूँ, ये प्रधानमंत्री का कारनामा है जो बार-बार कहीं न कहीं फस जाता हूँ वरना मैं अपने बेस्ट फ्रेंड से मिलने क्यों नहीं आता” हिमांशु ने अतुल को एक हाथ से अपनी तरफ चिपकते हुए कहा। उन दोनों का यह बर्ताव वो दोनों ही देख रहीं थी और एक पल के लिए उन्हें देख कर दोनों की आंखे भर गई जैसे किसी अतीत की प्यारी सी याद ने घर कर लिया हो, कुछ ऐसा अहसास जो ह्रदय को सुकून भी दे रहा था और हृदयघात भी। वो दोनों जैसे जय और नवल की जोड़ी के प्रतिबिम्ब थे......उन दोनों की आंखें नम देख कर अतुल ने आगे बढ़ कर कहा

“माफ कर देना आसुना। कानून का हिस्सा होने के बावजूद मैं तुम्हारी और जय की समय पर मदद नहीं कर पाया” अतुल की आवाज में गहराई थी

“तुम्हारी गलती नहीं है अतुल, कम से कम तुम हमारे लिए जो बन पड़ रहा था वह तो कर ही रहे थे” हल्की सी मुस्कान के साथ वो बोली

इस बात से माहौल ढलने सा लगा था, ऐसा लग रहा था जैसे कंधों पर अदृश्य बोझ जम गया हो।

“उहूँssss... अब चले घर, सभी को काफी भूख लग रही होगी” हिमांशु ने वो दुख वाला महौल तोड़ते हुए कहा और उसके इतना कहते ही सभी लोग कार में बैठ गए और निकल पड़े अतुल के घर की ओर। अतुल ने अपना फ़ोन निकाल कर एक कॉल किया

“हेलो, श्यामलाल”

“हाँ मैं आज ड्यूटी पर नहीं आउंगा, अगर कोई जरूरी काम आए तो ही कॉल करना.... बाकी जूनियर संभाल ही लेंगे”

“ठीक है, बाद में मिलते है”

पुलिस स्टेशन से बहुत ज्यादा दूर नहीं था उसका घर। पर वाशी गांव के बहुत भी आउटर में जहाँ पर गिनती के ही घर थे और सेक्टर 31 वहाँ के साफ दिखता था..... उस पुराने से दिखने वाले घर में दो मंजिलें थी, उस घर की बनावट थोड़ी गोल सी थी, छत पर एक गुम्बज जैसा कुछ था और वहीं बालकनी भी थी। घर के आसपास बांस की बहुत सारी झाड़ियां थी जिसकी सूखी हुई पत्तियां उड़ कर घर के आंगन में बैठ गयी थी, वहीं से 100 मीटर की दूरी पर एक छोटा सा घर था जिसमे एक बूढ़ा और उसकी पत्नी रहा करते थे....पेंशन तो आती ही थी और वो एक चोटी सी किराने की दुकान भी रखते थे जो घर में ही थी। अतुल की पत्नी अकेली ही उनकी सबसे बड़ी ग्राहक थी...और उन लोगन ने भी अतुल के परिवार के लिए ही यह दुकान खड़ी रखी थी। उन दोनों वृद्धों की तो संतान थी नहीं, इसलिए वे अतुल के परिवार जो ही अपना मानते थे।

“चलो भाई..... घर आ गया” गाड़ी रुकी और सभी उतरे उस पुराने से घर के सामने

“सरकारी अफसर की वैल्यू इतनी गिर गयी है क्या?” हिमांशु ने आते ही टोन्ट मारा

“अंदर तो चल, बाहर से जैसा दिखता है उस से कहीं ज्यादा अच्छा है”

अतुल ने कार के ड्राइवर को वहाँ से जाने के लिए कह दिया, वैसे भी अतुल की पर्सनल ऑडी घर के बरामदे में खड़ी ही हुई थी जिस पर कवर चढ़ा हुआ था। अतुल ने जाकर दरवाजा खटखटाया, जो अगले ही पर एक सुंदर सी लड़की के द्वारा खुल गया। उसने हरे रंग की साड़ी पहन रखी थी, गोरा रंग..छरहरा बदन और पीछे बंधे हुए बाल और ‘हाँ’ हाथ में एक झरिया भी था, अभी रसोई से निकली कि मालूम हो रही थी।

“आ गए, मैं तुम सभी का ही इंतजार कर रही थी...चलो मैंने खाना लगा दिया है”

“अरे वाह रेशमा! आज पूरा काम खुद ही कर लिया, ऐसे तो पूरा खाना मुझ से परस वाती थी...” अतुल ने मुँह बनाते हुए कहा

“ओ महाराज, आज तो हिमांशु के कारण बच गए वरना अभी तुम से ही पूरा खाना बनवा लेती” इठलाती हुई वो अंदर चली गयी।

सभी ने उन्ही का अनुसरण किया, वे लो अंदर बढ़ने लगे तो खाने की खुशबू ने उनका मन रिझा लिया। हिमांशु के मुँह में तो पानी ही आ गया, वो खाने की टेबल की ओर ऐसे भागा जैसे उसे सालों से इसी पल का इंतजार हो! पर आख़िर में सभी ने हाथ धोए और अतुल ने जबरदस्ती उसे खींच र उसके हाथ धुलवाए। खाने में बटर पनीर, बूंदी रायता, पुलाव, लस्सी, नान, सलाद और पापड़ बने रखे थे और साथ ही छोंक लगा कर लायी हुई दाल की खुशबू ने सभी का मन मोह लिया। आज तो मजा ही आ जाने वाला था

सभी ने खाना खाया, आसुना ने ज्यादा नहीं खाया क्योंकि उसके चेहरे पर कुछ सवाल और एक तरह से किसी और का ख्याल घूम रहा था पर निहारिका ने जिद की तो वह भी मान ही गयी। सभी ने अच्छे से खाना खाया और रेशमा खाने के बाद बर्तन धोने लग गयी, निहारिका और आसुना ने हजार मन करने के बाद भी बर्तन धुलवा ही दिए। और अब बारी आ गयी थी असली बात की, हिमांशु उन दोनों से क्या चाहता था? रेशमा जरा लेटने चली गयी थी, इतने बड़े घर में काम करने से थकावट तो होती ही थी।

वो चारों अब सोफे वाली कुर्सियों पर बैठे हुए थे.......मुख्य हाल में! हिमांशु ने उन दोनों को संभलने का मौका दिया और अतुल की सहमति के साथ ही उसने सवाल किया

“मैंने फ़ाइल तो पढ़ी है पर उस से कोई खास फर्क नहीं पड़ता क्योंकि मुझे उस पर भरोसा नहीं है....इसलिए मैं तुम दोनों से जानना चाहता हूँ कि आखिर नवल की मौत कैसे हुई?”

“बहुत लंबी कहानी सुनना चाहोगे या सीधी” निहारिका ने पूछा

“पहले सीधी वहीं से सुनाइये जहाँ जय नवल से मिलने गया था”

“ठीक है.....वहीं से शुरू करते है”..........

                                                                                                                   



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