Saroj Verma

Crime

4.2  

Saroj Verma

Crime

खूनी जज़

खूनी जज़

9 mins
369


मैं बहुत खुश था क्योंकि मेरा सिलेक्शन आर्मी ट्रेनिंग कैंपस लैंसडाउन में हुआ था, वैसे भी मुझे पहाड़ी इलाका बहुत पसंद हैं और फिर अगर लैंसडाउन जैसी जगह थी तो ऐसा लगा कि जैसे मेरी तो करोडों की लॉटरी ही लग गई हो,उत्तराखण्ड की पहाड़ियों में बसा लैंसडाउन जो अंग्रेजों की मनपसंद जगहों में से एक थीं, पहले वहांँ का नाम कालूडाण्डा था फिर उसका नाम भारत के वायसराय लॉर्ड लैंसडाउन पर लैंसडाउन रख दिया गया....

       हाँ तो फिर मैंने आर्मी कैंप ज्वाइन कर लिया और अंदर ही अंदर बहुत खुशी भी मिल रही थी कि आखिर मुझे इतनी अच्छी जगह ट्रेनिंग के लिए मिली है,बहुत ही खूबसूरत जगह थीं वो, लेकिन उसे घूमने के लिए मेरे पास समय की कमी थी,सारा दिन ट्रेनिंग में ही चला जाता था लेकिन फिर भी समय निकाल कर कभी कभी मैं थोड़ा बहुत घूम ही लेता था, अंग्रेजों के पुराने बँगले जो कि अब जर्जर हो चुके थे वहांँ जाना मुझे बहुत पसंद था, पता नहीं उनमें टूटे फ़ूटे बंगलों और गिरिजाघर में ऐसा क्या आकर्षण था जिससे मैं प्रभावित हो उठता था और अनायास ही उनकी ओर खिंचा चला जाता था....

       समय की कमी तो बहुत होती थी मेरे पास,बिल्कुल ही समय नहीं मिलता था,इसलिए घूमना तो नहीं हो पाता था,इसलिए जब कभी समय मिलता तो मैं वहाँ की लाइब्रेरी में जा बैठता, मैंने पहले कभी किसी से बताया नहीं लेकिन पाठकों को बता रहा हूँ कि मेरी पसंदीदा जगहों में से एक जगह लाइब्रेरी भी है क्योंकि मुझे लगता है कि क़िताबें सबसे अच्छी दोस्त होतीं हैं जब भी बोरियत लगे तो इनसे रूबरू होकर देखिए कितना सुकून मिलता है,मुझे लगता है कि कोई भी लेखक अपने जीवन का अनुभव अपनी किताब में लिखता है,जिस अनुभव को जानने में उस लेखक को सालों लग जाते हैं और उस अनुभव को हम दो तीन घण्टे उस किताब को देकर प्राप्त कर सकते हैं.....

         हाँ!तो इसी तरह एक दिन मैं यूंँ ही बोर हो रहा था,कहीं जाने का मन भी नहीं था, तब सोचा चलो लाइब्रेरी ही हो आता हूंँ,मैं लाइब्रेरी पहुँचा, लाइब्रेरी में जाते ही मैं पढ़ने के लिए किताबें खोजने लगा,तभी मेरी नज़र ऊपर रखी एक किताब पर पड़ी, मैंने स्टूल पर चढ़कर उस किताब को निकाला लेकिन साथ में एक और किताब भी गिर पड़ी,तब मैंने उस नीचें गिरी हुई किताब को उठा लिया और मैनें उसे पलटकर देखा तो वो मुझे किसी की डायरी लगी, मैंने उसके पन्ने पलटकर देखें जहाँ लिखा था एरिक पौल, तो वो किसी एरिक पौल नाम के शख्स की डायरी थीं, मैंने दोनों किताबें इस्यू करवाने के लिए अपने हस्ताक्षर करके लाइब्रेरी कार्ड जमा किया और लाइब्रेरियन जो कि काफी बुजुर्ग थे उन से पूछा कि.....

क्या आप मुझे बता सकते हैं कि ये डायरी यहांँ कैसे आई क्योंकि ये तो किसी की निजी डायरी लगती है....?

       तब लाइब्रेरियन बोले....

मैं ये निश्चित तौर पर तो नहीं कह सकता, लेकिन इस लाइब्रेरी में काम करते करते मेरी उम्र बीत चुकीं हैं, ना जाने कितने सालों से मैं यहांँ काम रहा हूं, मुझे तो सिर्फ़ ये पता है कि यहांँ जो भी अंग्रेज रहें हैं,तो उनके मर जाने के बाद अगर कोई उनके सामान पर अधिकार जताने नहीं आता था तो उनके सामान को सरकारी दफ्तर में जमा करवा दिया जाता था और उनकी लाइब्रेरी की किताबों को भी सार्वजनिक पुस्तकालय में जमा करवा दिया जाता था,ताकि वें किताबें और भी लोग पढ़ सकें,उनमें से ये डायरी भी होगी किसी अंग्रेज अफसर की, मैं आपको बस इतनी ही जानकारी दे सकता हूंँ.....

       फिर मैं उनको धन्यवाद देकर, वहाँ से चला आया.....

     रात का खाना खाकर जब मैं अपने बिस्तर पर पहुँचा तो मैं ने सोचा जरा देखूं तो उस डायरी में ऐसा क्या लिखा है,शायद कुछ ऐसी जानकारी मिल जाए जो मेरे लिए अनमोल हो....

        मैंने वो डायरी पढ़ना शुरू किया___

डायरी पढ़कर ऐसा लगा कि उस अंँग्रेज अफसर को हिन्दी का बहुत ही गहरा ज्ञान था, हिन्दी के एक एक अक्षर मोती जैसे थे और लिखावट तो इतनी सुन्दर थी कि जैसे किसी हिन्दी के महाज्ञानी की हो, ताज्जुब वाली बात थी कि एक अंग्रेज को हिन्दी का इतना बारीकी ज्ञान था....

         सन् १९४६,चैत्र मास__

      मैं एरिक पौल, मैंने बहुत बड़ा अपराध किया है जो कि अक्षम्य है और आज मैं ये अपना अपराध स्वीकार करके इस पाप से मुक्त होना चाहता हूंँ.....

  फिर मैनें आगें पढ़ना शुरू किया....

           मेरे पिताजी बहुत साल पहले आर्मी के एक सरकारी अफ़सर बनकर भारत आए थे, कुछ सालों नौकरी करने के बाद, यही किसी अंग्रेज जज की बेटी से उन्हें प्यार हो गया फिर उन्होंने उससे विवाह कर लिया, फिर मैं पैदा हुआ, मेरी पढ़ाई भी यही भारत में हुई लेकिन आगे की पढ़ाई के लिए मुझे फिर से इंग्लैण्ड भेज दिया गया क्योंकि मेरे नानाजी मुझे खुद की तरह एक महान जज बनाना चाहते थे और कुछ सालों बाद मैं जज बनकर भारत वापस आ गया क्योंकि मेरे माता-पिता चाहते थे कि अब मैं उनके साथ भारत में ही आकर रहूंँ,अब मुझे भारत के एक बड़े शहर में जज का पद भी मिल गया और मैं उस जगह चला गया और मेरे पिता आर्मी से रिटायर होकर लैंसडाउन में ही एक सुंदर सा घर बनवाकर वहीं बस गए, मैं कभी कभी उनके पास छुट्टियों में जाता था....

          पिताजी के पड़ोस में एक परिवार और रहने आया उनकी एक बेटी थी जिसका नाम कैथरीन था,वो बहुत ही खूबसूरत थी, मुझे उसे एक ही नजर में प्यार हो गया, मैंने ये बात अपने घर में बताई और घरवालों ने इस बात से खुश होकर मेरा विवाह कैथरीन के साथ तय कर दिया, हमारी सगाई भी हो गई,शादी से पहले एक रात कैथरीन ने मुझे मिलने के लिए बुलाया, मैं उस रात बेहद खुश था लेकिन कैथरीन से बात करने के बाद मेरी खुशी ग़म में बदल गई,क्योंकि वो मुझसे बोली....

    मैं किसी और को चाहती हूंँ एरिक!लेकिन वो एक भारतीय हैं, इसी डर से आज तक अपने घरवालों से मैं ये बात कह ना सकीं ,लेकिन यदि तुम ये बात मेरे घरवालों से कहो तो मेरी शादी उससे हो सकती है और फिर अगर मैं तुमसे शादी कर भी लेती हूंँ तो मैं तुमसे कभी भी प्यार नहीं कर पाऊंँगी....

      मैंने उसकी ये बात सुनी और मैं भीतर ही भीतर अपमान से जल गया कि कैथरीन ने मुझे अस्वीकार कर दिया, फिर इस बात से अपमानित होकर मैंने उससे बदला लेने का मन बना लिया.....

      मैंने उसकी बात उसके परिवार तक नहीं पहुंँचाई और उससे विवाह कर लिया लेकिन वो इस बात को लेकर मुझसे इतनी नाराज हुई कि वो मुझे कभी स्वीकार ही नहीं कर पाई,वो मेरे साथ होते हुए भी मेरे साथ ना होती, मैंने उसका तन तो छू लिया था लेकिन उसके मन को कभी भी नहीं छू पाया,समय के साथ-साथ उसके दिल का जख्म भरने के वजाय गहरा होता जा रहा था.....

            हमारे उस बंगले में जहांँ नए शादीशुदा जोड़े की हंँसी गूंँजनी चाहिए थीं वहांँ मनहूसियत सी छाई रहती, इतना सुन्दर बाग-बगीचे वाला घर था लेकिन उस घर की शोभा यानि की कैथरीन उदास दिखाई देती,मैं उसे खुश रखना चाहता था लेकिन उसकी खुशी मुझ में नहीं थी....

      फिर एक दिन आफिस में एक नवयुवक नौकरी मांगने आया, मैंने उसे रख लिया, उसने मुझसे कहा कि.....

साहब !ये सब घर के काम मैं ठीक से नहीं कर पाता,लेकिन पेट भरने के लिए कुछ ना कुछ काम तो करना होगा,अगर कहीं कोई बाग फुलवारी वाली जगह हो तो मैं उसकी देखभाल ठीक से कर दूंँगा....

     मैंने कहा,

ठीक है, हमारे यहांँ पानी बहुत दूर से भरकर लाना पड़ता है और पेड़ पौधों को भी सींचना पड़ता है जिससे कि घर में मैं जो भी नौकर रखता हूंँ, तो वहांँ काम करने से मना कर देता है अगर तुम्हें कोई एतराज़ ना हो तो तुम मेरे घर में ये काम कर सकते हो....

        फिर उसने मेरे घर में काम करना मंजूर कर लिया,उसका नाम सुनील था, उसके आने से कैथरीन भी खुश रहने लगी थीं,मुझे लगा चलो कैथरीन उसके आने से कम से कम खुश तो हुई,मैं यहांँ कोर्ट आता और वो वहांँ घर पर काम करता ,उसके आने से कैथरीन के चेहरे की रंगत भी लौट आई थी,लेकिन एक दिन कोर्ट जाते वक्त मेरे कुछ जरूरी कागजात घर पर ही छूट गये, मैं उन्हें लेने घर पहुंँचा तो घर के दरवाजे के पास से मुझे कुछ आवाजें आई,मुझे माजरा कुछ समझ में नहीं आया इसलिए मैनें दरवाजे की ओट से छुपकर देखा तो कैथरीन,सुनील की बांँहों में थीं और उनकी बातों से पता चला कि सुनील और कोई नहीं वो ही उसका भारतीय प्रेमी था,अब मुझे सारा माजरा समझ आ गया कि कैथरीन अब क्यों खुश रहने लगी थी,वो मुझे मेरी आँखों के सामने ही धोखा दे रही थी और मैं धोखा खा रहा था,ये सब जानकार मेरा खून खौल उठा,

        लेकिन मैंने उस समय तो दोनों से कुछ नहीं कह और वापस कोर्ट लौट गया लेकिन एक दो दिन बाद रात में मैनें सुनील को अपने कोर्ट वाले आँफिस में रात का खाना लेकर आने को कहा,सुनील खाना लेकर आया,उस समय आँफिस में मेरे और सुनील के अलावा वहाँ कोई ना था, फिर मैनें सुनील से बाहर रूकने को कहा और उससे ये भी कहा कि मैं खाना खा लूँ फिर तुम खाली टिफिन लेकर घर चले जाना,वो बाहर जाकर वहाँ पड़ी बेंच पर बैठ गया,मैनें अपना खाना खतम किया और टिफिन लेकर बाहर बेंच पर बैठे सुनील के पीछे बिना आहट के पहुँचा और उस पीतल के कई डिब्बों वाले टिफिन से सुनील के सिर पर पीछे से वार किया,सुनील नीचे गिर गया और फिर मैनें सुनील के सिर पर अनगिनत वार किए और तब तक वार करता रहा जब तक कि मुझे यकीन ना हो गया कि वो अब बेहोश हो चुका है,उसके बेहोश होने के बाद उस रात के अँधेरे में मैनें उसे अपनी मोटर में डाला और ले जाकर रेलवे ट्रैक पर फेंक दिया,दूसरे दिन लोगों को उसकी लाश मिली ,कैथरीन को जब ये पता चला तो वो बहुत रोई,तब मैनें उससे कहा.....

कैथरीन!इतना दुख मत करो,वो हमारे घर का नौकर ही तो था,ना जाने उसने आत्महत्या क्यों कर ली...

तब कैथरीन बोली....

वही तो शक है मुझे,कि सुनील कभी आत्महत्या नहीं कर सकता था...

तब मैनें कैथरीन से पूछा.....

तुम इतने यकीन से कैसे कह सकती हो?

    मेरे सवाल को सुनकर फिर वो कुछ ना बोली और एक दो दिन बाद रात में सोते समय मैनें कैथरीन का भी गला घोंटकर उसकी लाश को छत से लटका कर आत्महत्या का रूप दे दिया,

  मैंने ये हत्यायें कर तो दी लेकिन बाद में मुझे बहुत आत्मग्लानि महसूस हुई,इसका पश्चाताप करने के लिए मैंने नौकरी और वो जगह भी छोड़ दी,उसके बाद भारत देश के आजाद होने की खबरें आने लगी और भारतीयों को भी बड़े बड़े पदों पर रखा जाने लगा,फिर मैं अपने माता-पिता के पास वापस लैंसडाउन लौट गया सालों तक खुद को अपराधबोध महसूस करता रहा, फिर जब भारत देश आजाद होने जा रहा था तो तब मेरे माता-पिता इंग्लैंड लौट गए, उन्होंने मुझसे भी उनके साथ चलने को कहा लेकिन मैं उनके साथ नहीं गया और आज मुझसे अपना वो अपराध सहन नहीं हो रहा है इसलिए इस डायरी में अपना अपराध लिखकर मैं किसी पहाड़ से कूदकर अपनी जान दे दूंँगा,मेरी यही अन्तिम इच्छा है कि मेरे मरने के बाद ये डायरी किसी पुस्तकालय को दान में दें दी जाए,ताकि लोंग मेरी जैसी गलती ना करें,मैं जज था और मुझे किसी का खून करने का कोई अधिकार नहीं था,मैं अपने क्रोध पर काबू नहीं रख पाया और एक खूनी जज बन गया.....

 सुनील और कैथरीन का अपराधी__

 एरिक पौल !!

 मेरा मन बहुत खराब सा हो गया था उस खूनी जज की दास्तांँ पढ़कर...!!

समाप्त___



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Crime