Swati Pandey

Romance

4.5  

Swati Pandey

Romance

ख्वाहिशें

ख्वाहिशें

4 mins
413



हाइवे पर कहीं एक चाय की टपरी। एक कुल्लहड़ चाय, तेज बरसात, और बारिश रुकने के इंतजार मे ज़ार ज़ार भीगे हम दोनों।रेडियो पर बजता एक पुराना गाना - "मैंने पूछा चांद से कि देखा है कहीं मेरे यार सा हसीं" । गाने की धुन में खोए हुए मेरी आंखें चाहती हैं चुपके से एक ख्वाब चुराना और तुम्हारे साथ उसे जी लेना। तुम्हारी आंखें कहीं दूर हाइवे पर बारिश की बूंदों को निहार रही हैं और यूं ही खोए हुए तुम्हारे हाथ मेरी उंगलियों से खेल रहे। छुड़ाने की कोशिश पे पकड़ और तेज़ हो जाती है। मानो तुम हाथ छोड़ोगे और मै अधूरे ख्वाब सी कहीं खो जाऊंगी। और तुम ये ख्वाब बिसराना नहीं चाहते। बारिश जरा धीमी हुई और हम चल पड़े फिर से अपनी मंज़िल की ओर। मेरा ध्यान सड़क पर और तुम्हारा हाथ मेरी कमर पे और ध्यान मेरे कानों की बालियों पर। सारे जहान की बातें कह रहे हो बस वही नहीं कह रहे जो कहना है!

खैर, सड़क भीगने के बाद कुछ ज्यादा ही साफ दिख रहा है ये सफर। भीगे जंगलों की खुशबू तुम्हारे शरीर की भीनी भीनी सी खुशबू के साथ मिक्स होकर मुझे पागल कर रही है। जी करता है बाइक यहीं रोक कर उतरूं और अपने होठ तुम्हारी गर्दन पर रख कर खो जाऊं कहीं। मगर शाम ढलने से पहले ये जंगल पार करना भी जरुरी है।

शाम के 7 बज रहे हैं। जंगल खत्म कर हम शहर मे दाखिल हो चुके है। और होटल के एक कमरे में मै सूखे कपड़े निकाल रही हूं बैग से। ताकि ये भीगे हुए लिबास बदले जा सकें बिकुल वैसे ही जैसे बदलना चाहती हूं मै हमारी तकदीर। तुम बाथरूम चेक कर के आकर पूछते हो, " तुम कम्फ़र्टेबल हो ना। अगर चाहो तो हम अलग अलग कमरे ले सकते हैं।"

"मुझे अकेले रात भर अजनबी जगह रुकने मे डर लगता है।"

"और मुझसे डर नहीं लगता? किसी भी डरावने भूत से ज्यादा खतरनाक हो सकता हूं मैं मैडम।"

"मुझे भरोसा है तुम पर ।"

तुम बिना कुछ कहे मुस्कुराते हुए गीजर ऑन करने चले जाते हो। मै उठ कर जल्दी से चल देती हूं बाथ रूम की तरफ। मै बाहर आती हूं। टेबल पर गर्म पानी की एक बॉटल और अदरक वाली चाय के साथ भीगे हुए तुम। पैरों मे चिपक चुकी पैंट और बिना शर्ट खड़े तुम टेबल की तरफ इशारा कर देते हो मगर बोलते कुछ नहीं। शायद बताना नहीं चाहते की मेरा खयाल है तुम्हे। मेरी पसंद ना पसंद जानते हो। मै बिना कुछ कहे बेड के कोने पर बैठ जाती हूं अपने बाल सुखाते हुए अपने खयाल मे खोई। तुम नहा कर बाहर आते हो लोअर पहने। शरीर पे और कोई कपड़ा नहीं कंधे पे रखे एक टॉवेल के सिवा। बालों मे उंगलियां फिराते आकर मेरे पास बैठ जाते हो। 

"मेरे भी बाल सुखा दो ना" 

दिमाग काम करना बंद कर चुका है मेरा। तुम्हे ऐसे देखना काफी अनेक्सपेक्टेड है। सोच से परे। मेरा दिल शर्म से लाल हुआ जा रहा। चेहरा तो कब का रंग चुका है शर्म से। मै सारे ख़यालो को एक डांट लगाते हुए चुप चाप तुम्हारे बाल सुखाने लग जाती हूं। तुम थक कर अपना सिर मेरी गोद मे टिका कर सो जाते हो। और मै बैठी अपलक तुम्हे निहारती रहती हूं। कब आंख लग गई पता ही नहीं चला। 

अलार्म बजने से आंख खुली। मेरे सामने तुम्हारा चेहरा। इतना करीब की पलकों से जुंबिश मुमकिन है। बिना हिले अलार्म बंद कर दिया। अब हया कह रही पीछे हो जा। हट जा। बेशर्म दिल कह रहा आंखें बंद कर और खो जा। इसी कशमकश मे जरा सा हिलती हूं मै कि तुम्हारी बाहें और टाईट हो जाती हैं मेरी कमर की इर्द गिर्द। और तुम कहते हो-

"ऐसे ही रहो ना। थोड़ा और सोना है। कितने सालों मे ऐसी नींद आई है।"

"जी"

मै शरमाई सकुचाई कुछ कह ही नहीं पाती और लेटी रह जाती हूं।

कुछ देर बीती है। तुम जाग गए हो। और काफी मंगाने से शुरू हो चुका है हमारा मॉर्निंग रूटीन। तैयार होकर निकलना है हमे ये खूबसूरत सा शहर देखने। मै आती हूं रूम में जींस टीशर्ट पहने। तुम्हारी ब्लैक शर्ट में कमाल लग रहे हो। कैसे कोई इतना हैंडसम हो सकता है। अभी इन्हीं सब ख़यालो मे खोई हुई हूं मैं कि तुम आकर मेरे बाल मेरे कान के पीछे धकेलते हुए कहते हो "इतनी खूसूरत सुबह नहीं हुई थी मेरी जिंदगी मे आज से पहले। तुम इतनी प्यारी लगती हो आज पता चला। देखा तुम्हे सौ बार है पहले भी। मगर जिस लिबास मे तुम सुबह उठती हो ना यकीन मानो सबसे हसीन है।" मेरा हाथ पकड़ कर चल देते हो। और निकाल पड़ते है हम ये शहर देखने जो आज और भी हसीन हो गया है।



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